इश्क़ भी अजीब है, इन्हें शब्दों में व्याख्या करना बड़ी टेढ़ी बात है, किंतु मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं कवयित्री विभा परमार को और जानने की कोशिश करते हैं इश्क़ व प्यार के बारे में....
प्रिय
उन्मुक्त हो प्रिय तुम
बिल्कुल उस उड़ते बादल की तरह
जो अपने मन मुताबिक
गरजता भी है
और
भरपूर बरसता भी है।
लेकिन मैं,
मैं उन्मुक्त नहीं हो पाती या फिर यह कहो कि
होना नहीं चाहती !
कभी कभी लगता है कि एक झटके में छोड़ दो
या फिर
ज़िंदगी भर के लिए तुम्हें थाम लो
क्या ऐसा हो सकता है ?
कहीं ज़िंदगी भर थामने की कोशिशें
और तुम्हारे उन्मुक्त स्वभाव से
भला संभव हो सकता है।
कितना अंतर है
कितनी दूरी है
विचारों में
और अपने अपने विचलनपन में
मानों ये विचार, विचलनपन
अनंत को तो छूते हैं
वो अनंत
जिसको हमने
एक दूसरे के सामने गढ़ा है
रोज़ गढ़ते भी हैं,
लेकिन एक दूसरे की गहराई को छू नहीं पाते
या फिर छूना ही नहीं चाहते !
कवयित्री विभा परमार |
प्रिय
उन्मुक्त हो प्रिय तुम
बिल्कुल उस उड़ते बादल की तरह
जो अपने मन मुताबिक
गरजता भी है
और
भरपूर बरसता भी है।
लेकिन मैं,
मैं उन्मुक्त नहीं हो पाती या फिर यह कहो कि
होना नहीं चाहती !
कभी कभी लगता है कि एक झटके में छोड़ दो
या फिर
ज़िंदगी भर के लिए तुम्हें थाम लो
क्या ऐसा हो सकता है ?
कहीं ज़िंदगी भर थामने की कोशिशें
और तुम्हारे उन्मुक्त स्वभाव से
भला संभव हो सकता है।
कितना अंतर है
कितनी दूरी है
विचारों में
और अपने अपने विचलनपन में
मानों ये विचार, विचलनपन
अनंत को तो छूते हैं
वो अनंत
जिसको हमने
एक दूसरे के सामने गढ़ा है
रोज़ गढ़ते भी हैं,
लेकिन एक दूसरे की गहराई को छू नहीं पाते
या फिर छूना ही नहीं चाहते !
नमस्कार दोस्तों !
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