ज़िंदगी चलने का नाम है...
आइये, हम भी चलते हुए ज़िंदगी के भाग बनते हैं और मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री सरोज जोशी की कविता...
ऐ हवाओं !
पुरजोर कोशिशें
हैं तुम्हारी
जड़ों से हमें उखाड़ने की...
झुलसते
तन-बदन से
छीनने की
छाँव हमसे...
छनकर आती
बरगदों से
वो सुहानी
धूप हमसे...
आँधियों में
तब्दील होकर
करती हो
जब तुम सफ़ाया...
छोड़ जाती हो
निशां तुम
तबाहियों की
पीछे अपने...
पर मैं मनुज
डरता नहीं अब
तुम्हारी इन
भभकियों से...
गिरकर उठना
फिर सम्हलना
खूब आता है
मुझे अब...
छीन लो तुम
जमीं मेरी
इतना भी
कमजोर नहीं मैं...
अनगिनत
झंझावतों से
रोज ही
टकराता हूँ मैं...
सीख गया हूँ
फिर-फिर उखड़कर
फिर-फिर जमाना
पैर अपने !
आइये, हम भी चलते हुए ज़िंदगी के भाग बनते हैं और मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री सरोज जोशी की कविता...
सुश्री सरोज जोशी |
ऐ हवाओं !
पुरजोर कोशिशें
हैं तुम्हारी
जड़ों से हमें उखाड़ने की...
झुलसते
तन-बदन से
छीनने की
छाँव हमसे...
छनकर आती
बरगदों से
वो सुहानी
धूप हमसे...
आँधियों में
तब्दील होकर
करती हो
जब तुम सफ़ाया...
छोड़ जाती हो
निशां तुम
तबाहियों की
पीछे अपने...
पर मैं मनुज
डरता नहीं अब
तुम्हारी इन
भभकियों से...
गिरकर उठना
फिर सम्हलना
खूब आता है
मुझे अब...
छीन लो तुम
जमीं मेरी
इतना भी
कमजोर नहीं मैं...
अनगिनत
झंझावतों से
रोज ही
टकराता हूँ मैं...
सीख गया हूँ
फिर-फिर उखड़कर
फिर-फिर जमाना
पैर अपने !
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
Lovely! Mann khush ho gaya, Sundar kala ko paarkhi nazar mile toh uska Aanand do guna badh jaata hai!
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