महिलाओं को समझना आसान नहीं हैं ! आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में जानते हैं, महिलाओं के बारे में सुश्री आकांक्षा प्रिया जी के फ़ेसबुक वॉल से साभार ली गयी अनुपमेय कविता के माध्यम से....
'सजती-सँवरती है औरत'
सजती-सँवरती है
औरत
मगर कुछ का संवरना
जल्द ही बदल जाता है
झुर्रियों में !
जवाँ होती है जब,
हरा देती है समय को
नहीं चला पाता जीजिविषा के चेहरे पर
काल अपना हल !
तब दिल पर कब्ज़ा जमाता है
जीने की हर उमंग में घोल देता है वह
उपेक्षा का विष !
और फिर उम्र से कम होकर भी
चिंताओं में घुलती जाती है जीवेषणा
झुर्रियां ही तब बयाँ करती हैं सच
सुख-दुख का अंदाजा
लगता है चेहरे की सिलवटों से
हमउम्र होती है पत्नी फिर भी
जाने कितनी बूढ़ी दिखने लगती है
पति की अपेक्षा !
खुद के दु:ख-दर्द को छुपाकर
मायके ससुराल के संघर्ष से लेकर
बच्चों के लालन-पालन से शुरू हो
शादी-ब्याह की जिम्मेदारी
फिर बँटवारे की कहानी
सब बयाँ कर जाती हैं झुर्रियां !
कुछ जिंदगियों को शब्द नहीं
झुर्रियां ही कर सकती हैं बयाँ
बस
सीखनी होती है झुर्रियों की भाषा
सब पढ़ भी तो नहीं सकते !
तजुर्बों की पोटली होती हैं ये
चेहरे की आड़ी तिरछी रेखाएं
जो खिलता चेहरा ही कई बार
जीते-जी मरने लगता है
जब वेवक्त ही सुंदर रूप
झूर्रियों से भरने लगता है !
जिन औरतों को
आजादी नहीं होती
अपनी दास्तान बयां कर सकने की
उम्र के अंतिम पड़ाव पर उनकी कहानी
बयाँ करती हैं झुर्रियां !
सुश्री आकांक्षा प्रिया |
सजती-सँवरती है
औरत
मगर कुछ का संवरना
जल्द ही बदल जाता है
झुर्रियों में !
जवाँ होती है जब,
हरा देती है समय को
नहीं चला पाता जीजिविषा के चेहरे पर
काल अपना हल !
तब दिल पर कब्ज़ा जमाता है
जीने की हर उमंग में घोल देता है वह
उपेक्षा का विष !
और फिर उम्र से कम होकर भी
चिंताओं में घुलती जाती है जीवेषणा
झुर्रियां ही तब बयाँ करती हैं सच
सुख-दुख का अंदाजा
लगता है चेहरे की सिलवटों से
हमउम्र होती है पत्नी फिर भी
जाने कितनी बूढ़ी दिखने लगती है
पति की अपेक्षा !
खुद के दु:ख-दर्द को छुपाकर
मायके ससुराल के संघर्ष से लेकर
बच्चों के लालन-पालन से शुरू हो
शादी-ब्याह की जिम्मेदारी
फिर बँटवारे की कहानी
सब बयाँ कर जाती हैं झुर्रियां !
कुछ जिंदगियों को शब्द नहीं
झुर्रियां ही कर सकती हैं बयाँ
बस
सीखनी होती है झुर्रियों की भाषा
सब पढ़ भी तो नहीं सकते !
तजुर्बों की पोटली होती हैं ये
चेहरे की आड़ी तिरछी रेखाएं
जो खिलता चेहरा ही कई बार
जीते-जी मरने लगता है
जब वेवक्त ही सुंदर रूप
झूर्रियों से भरने लगता है !
जिन औरतों को
आजादी नहीं होती
अपनी दास्तान बयां कर सकने की
उम्र के अंतिम पड़ाव पर उनकी कहानी
बयाँ करती हैं झुर्रियां !
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
0 comments:
Post a Comment