भारतीय एकता को दिखाने के लिए हम अलग-अलग हो 5 अप्रैल की रात्रि 9 बजे सिर्फ़ 9 मिनट के लिए सभी देशवासी दुनिया में इसी सप्ताह नए-नए शब्दों का इज़ाद हुए व हो रहे हैं । भारत में 'जनता कर्फ़्यू' शब्द के ईजाद के बाद उनका क्रियान्वयन भी हुआ, जो कि 22 मार्च 2020 की रात्रि 9 बजे तक रही । राजस्थान सरकार ने 9 बजे रात्रि के बाद 31 मार्च तक के लिए पूरे राज्य में 'लॉकडाउन' की घोषणा की । इसतरह से यह आधिकारिक घोषणा कर राजस्थान पहला राज्य बन गया है । फिर 24 मार्च की बारह बजे रात्रि से पूरे देश में लॉकडाउन कड़ाई से लागू हो गई । इसके बाद से देश में लॉकडाउन का पालन-अनुपालन कड़ाई से हो रहा है, जो कि बहरहाल 14 अप्रैल की 12 बजे रात्रि तक रहेंगे ! दरअसल, यह लॉकडाउन का उद्देश्य कोरोना विषाणुजनित महामारी से लोगों को, भारतीयों को बचाने के लिए 'सोशल डिस्टेंसिंग' में रहना है, घर पर संयमित और सुरक्षित रहकर ! बीते 'रामनवमी' के पूर्व ही 'हनुमान चालीसा' के प्रसंगश: कवि-लेखक डॉ. सदानंद पॉल ने समय का सदुपयोग करते हुए 'कोरोना चालीसा' की रचना की । आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखित कोरोना वायरस के विषाणुत्व और उनके संक्रमणत्व पर 'कोरोना चालीसा'.....
कोरोना चालीसा
दोहा :
श्रीशुरु कोरन रोज रज, निज में पकड़ू कपारी;
नरनारू रहबर मल-मूत्र, जो दाई कुफल मारी।
बुद्धिहीन मन जानकर, सुमिरन वुहान-कुमार;
बल बुद्धि विदया लेहु मोहिं, काहु वयरस-विकार।
चौपाई :
जय कोरूमान विपद सप्तसागर;
जय कोरिस तिहुं परलोक उजागर।
मृत्युदूत अतुलनीय बल धामा;
वुहानपुत्र चीनसुत नामा।
अहा ! वीर पराक्रम रंगी-बिरंगी;
मति मार कुबुद्धि के संगी।
कोरन वरण महीराज उबेसा;
आनन-फानन कुंडल गंदगी लेशा।
हाथमिलाऊ औ सजा विराजै;
कांधे मौत साँसउ आजै।
अंकड़-बंकड़ चीनीनंदन;
तेज ताप भगा जगरुदन।
विद्यावान गुणी आ चातुर;
मातम काज करिबे को आतुर।
मृत्युचरित सुनबे रंगरसिया;
इक मीटर निके मन बसिया।
अतिसूक्ष्म रूपधरि सिंह कहावा;
प्रकट रूपधरि कलंक करावा।
बीमा रूपधरि मौत दिलारे;
यमचंद्र के राजदुलारे।
लाय सजीवन कोरन भगायो;
पल-पल मौत अट्ठहास करायो।
मृत्युपति इन्ही बहुत बड़ाई;
तुम अप्रिय सगा नहीं भाई।
सहस बदन तुमसे नाश गवावै;
अस रही प्रेमीपति अंटशंट कहावै।
सनकी बहकी कह मरीजसा;
गारद ज्यों भारत सहित लेशा।
जम कुबेर अमरीका योरप जहाँ ते;
कवि इंटरनेट डब्ल्यूएचओ कहाँ ते।
तुम उपकार जो टीका खोजिन्हा;
कौन बचाय राज पद लीन्हा।
तुम्हरो मंत्र सरकारन माना;
नोरथ कोरियन भी कोरोना जाना।
युग सहस्र कोरन पर भानू;
लील्यो जान मधुर फल जानू।
ना हस्तिका ना मिलाय मुख माहीं;
जलधि लांघि आये अचरज नाहीं।
दुर्गम लाज जगत को देते;
सुगम समाजक दूरे तुम्हरे जेते।
आराम अंगारे हम रखवारे;
होत न इलाज बिन पैसारे।
सब सुख गए तुम्हारी करणा;
तुम भक्षक तुहु कोरोना।
आपन तेज बुखारो आपै;
तीनों लोक तुमसे काँपै।
भूत पि-चास वायरस नहीं आवै;
सोशल डिस्टेंसिंग नाम सुनावै।
नाशक रोग तबे जब शीरा;
जपत निरंतर संयम अउ समीरा।
संकट पे लोकडाउन छुड़ावै;
मन कम वचन ध्यान जो दिलावै।
सब पर वजनी कोरोना राजा;
काम-काज ठपल गिरी गाजा।
और मनोरथ कछु नहीं पावै;
सोई किस्मत रोई कल जावै।
कलियुग में संताप तुम्हारा;
है कुसिद्ध संसार उजियारा।
हंता-अंत भी नाश हुआरे;
घृणित तुम अँगार कहाँरे।
अष्ट सिद्धि नौरात्र सुहाता;
असीस लीन हे शक्तिमाता।
दुर्लभ एन्टीडॉट किनके पासा;
क्यों सदा रह्यो तुम्हरे दासा।
तुम्हरे भजन मृत्यु को पावै;
जनम-जनम के दुख दिलावै।
अन्तकाल मानव क्या आई;
जहां जनम तहाँ मौत कहाई।
और सोवता छोड़ तु भगई;
कोरोना सेइ सब सुख जई।
संकट कटै मिटै कब पीड़ा;
किसे सुमिरै कि महामइरा अधीरा।
जै जै जै कोरोना वायरसाई;
कृपा करहु मुझपर हे साई।
जो संयम दूरी बरत मास्क लगाई;
छूटहि व्याधिमहा तब सुख होई।
जो यह पढ़ै कोरोना वुहान चालीसा;
कोविड नाइन्टीन से हुए दूरीसा।
पाल नंद सदा कर्फ़्यू संयम के चेरा;
कीजै नाथ अ-हृदय अहम ने डेरा।
दोहा :
वुहान तनय कब विकट हरन, मंगल तु शक्तिरूप;
मम परिवार मित्र जगतसहित, दुरहु शीघ्र हउ भूप।
डॉ. सदानंद पॉल |
दोहा :
श्रीशुरु कोरन रोज रज, निज में पकड़ू कपारी;
नरनारू रहबर मल-मूत्र, जो दाई कुफल मारी।
बुद्धिहीन मन जानकर, सुमिरन वुहान-कुमार;
बल बुद्धि विदया लेहु मोहिं, काहु वयरस-विकार।
चौपाई :
जय कोरूमान विपद सप्तसागर;
जय कोरिस तिहुं परलोक उजागर।
मृत्युदूत अतुलनीय बल धामा;
वुहानपुत्र चीनसुत नामा।
अहा ! वीर पराक्रम रंगी-बिरंगी;
मति मार कुबुद्धि के संगी।
कोरन वरण महीराज उबेसा;
आनन-फानन कुंडल गंदगी लेशा।
हाथमिलाऊ औ सजा विराजै;
कांधे मौत साँसउ आजै।
अंकड़-बंकड़ चीनीनंदन;
तेज ताप भगा जगरुदन।
विद्यावान गुणी आ चातुर;
मातम काज करिबे को आतुर।
मृत्युचरित सुनबे रंगरसिया;
इक मीटर निके मन बसिया।
अतिसूक्ष्म रूपधरि सिंह कहावा;
प्रकट रूपधरि कलंक करावा।
बीमा रूपधरि मौत दिलारे;
यमचंद्र के राजदुलारे।
लाय सजीवन कोरन भगायो;
पल-पल मौत अट्ठहास करायो।
मृत्युपति इन्ही बहुत बड़ाई;
तुम अप्रिय सगा नहीं भाई।
सहस बदन तुमसे नाश गवावै;
अस रही प्रेमीपति अंटशंट कहावै।
सनकी बहकी कह मरीजसा;
गारद ज्यों भारत सहित लेशा।
जम कुबेर अमरीका योरप जहाँ ते;
कवि इंटरनेट डब्ल्यूएचओ कहाँ ते।
तुम उपकार जो टीका खोजिन्हा;
कौन बचाय राज पद लीन्हा।
तुम्हरो मंत्र सरकारन माना;
नोरथ कोरियन भी कोरोना जाना।
युग सहस्र कोरन पर भानू;
लील्यो जान मधुर फल जानू।
ना हस्तिका ना मिलाय मुख माहीं;
जलधि लांघि आये अचरज नाहीं।
दुर्गम लाज जगत को देते;
सुगम समाजक दूरे तुम्हरे जेते।
आराम अंगारे हम रखवारे;
होत न इलाज बिन पैसारे।
सब सुख गए तुम्हारी करणा;
तुम भक्षक तुहु कोरोना।
आपन तेज बुखारो आपै;
तीनों लोक तुमसे काँपै।
भूत पि-चास वायरस नहीं आवै;
सोशल डिस्टेंसिंग नाम सुनावै।
नाशक रोग तबे जब शीरा;
जपत निरंतर संयम अउ समीरा।
संकट पे लोकडाउन छुड़ावै;
मन कम वचन ध्यान जो दिलावै।
सब पर वजनी कोरोना राजा;
काम-काज ठपल गिरी गाजा।
और मनोरथ कछु नहीं पावै;
सोई किस्मत रोई कल जावै।
कलियुग में संताप तुम्हारा;
है कुसिद्ध संसार उजियारा।
हंता-अंत भी नाश हुआरे;
घृणित तुम अँगार कहाँरे।
अष्ट सिद्धि नौरात्र सुहाता;
असीस लीन हे शक्तिमाता।
दुर्लभ एन्टीडॉट किनके पासा;
क्यों सदा रह्यो तुम्हरे दासा।
तुम्हरे भजन मृत्यु को पावै;
जनम-जनम के दुख दिलावै।
अन्तकाल मानव क्या आई;
जहां जनम तहाँ मौत कहाई।
और सोवता छोड़ तु भगई;
कोरोना सेइ सब सुख जई।
संकट कटै मिटै कब पीड़ा;
किसे सुमिरै कि महामइरा अधीरा।
जै जै जै कोरोना वायरसाई;
कृपा करहु मुझपर हे साई।
जो संयम दूरी बरत मास्क लगाई;
छूटहि व्याधिमहा तब सुख होई।
जो यह पढ़ै कोरोना वुहान चालीसा;
कोविड नाइन्टीन से हुए दूरीसा।
पाल नंद सदा कर्फ़्यू संयम के चेरा;
कीजै नाथ अ-हृदय अहम ने डेरा।
दोहा :
वुहान तनय कब विकट हरन, मंगल तु शक्तिरूप;
मम परिवार मित्र जगतसहित, दुरहु शीघ्र हउ भूप।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
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