कोरोना कहर अबतक जारी है। भारत में आगामी 30 जून तक के लिए लॉकडाउन 5.0 की घोषणा हो चुकी है, किन्तु रात में ही कर्फ़्यू रहेंगे, दिवसों में लोगों को 50 प्रतिशत आजादी मिल गयी है, लेकिन सुरक्षित व संयमित जीवनयापन के साथ अर्थात मास्क लगाना और फिजिकल डिस्टेंसिंग तो निश्चित ही ! लॉकडाउन में 50 प्रतिशत ढील देने का कारण आर्थिक कठिनाइयां भी है, क्योंकि मार्च माह से व्यवसाय प्रभावित हैं । लोग जमापूँजी को ही खा-पका रहे हैं, ऐसे में बौद्धिकता भी प्रभावित हो रही है । इसके बावजूद 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' निरंतर रचनाएँ और स्थायी स्तम्भ प्रकाशित कर रही हैं। मई 2020 के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए उच्च शिक्षित-प्रशिक्षित और हिंदी के प्रतिभाशाली रचनाकार सुश्री अर्चना उपाध्याय, जो अतिसामयिक यूट्यूबर भी हैं-- से रूबरू होते हैं । आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट की 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में अर्चना जी के 14 बोधगम्य उत्तरों को जानकर हम सभी प्रबुद्ध पाठकजन रोमांचित होते हैं.....
प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल मीडिया व यूट्यूब के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
सबसे पहले तो आपका हार्दिक आभार कि आपने मुझे अपने मंच से जोड़ा। मैं अर्चना उपाध्याय 'टेक्सटाइल मिनिस्ट्री' व 'उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन 'में डिज़ाइनर हूँ, साथ ही अपने यूट्यूब चैनल 'अंतरा द बुकशेल्फ' पर किताबों से जुड़ी बातें करती हूँ। हिंदी भाषा और साहित्य कभी मेरा विषय तो नहीं रहा, लेकिन मन में अपनी मातृभाषा के प्रति लगाव और सम्मान ने मुझे हमेशा साहित्य की दुनिया से जोड़े रखा। एक डिज़ाइनर के रूप में जहाँ मैं देश भर के हैंडीक्राफ्ट्स से जुड़े लोगों के जीवन और कलाओं को पढ़ पाती हूँ वहीं दूसरी तरफ किताबों के माध्यम से हर उस वर्ग तक पहुंचना चाहती हूँ, जिनके लिए साहित्य जीवन का हिस्सा है।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैंने वाराणसी के BHU से पेंटिंग ऑनर्स किया है, फिर टेक्सटाइल डिजाइनिंग,पर सहित्य और किताबों के नजदीक रहने की इस ललक ने न सिर्फ मेरी पढ़ाई जारी रखी, बल्कि मैं कई साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हूँ, तो एक त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन भी की और इन दिनों मास्टर इन लाइब्रेरी साइंस कर रही हूँ, ताकि पुस्तकों से जुड़ी यह रिश्ता और मजबूत हो सके !
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
एक डिज़ाइनर के तौर पर तो हम फोक अर्टिसन्स को हुनरमंद बनाते ही हैं पर अपने ग्रुप अंतरा को मैंने दो भागों में बांट रखा है। 'अंतरा द रिदम ऑफ कलर्स' के जरिये हर विशेष वर्ग के बच्चों और महिलाओं को हुनर सिखाने के लिये कई तरह की वर्कशॉप और क्लासेस आयोजित करना। 'अंतरा द बुकशेल्फ' में बेहतरीन पुस्तकों की समीक्षा तो करती ही हूँ, साथ ही परीक्षाओं से जुड़ी पुस्तक को महत्वपूर्ण पॉइंट्स के साथ संक्षेप में समझाती हूँ, ताकि जिन विद्यार्थियों को जितनी मदद मिल सके उतनी ही मुझे खुशी मिलती है और जो पुस्तक खरीद नहीं सकते उनके लिये उपलब्ध कराती हूँ।
तो कला और साहित्य से जुड़े लोग जिस भी प्रकार की मदद चाहते हैं वो मुझसे जुड़ सकते हैं,मेरे यू ट्यूब चैनल के माध्यम से भी और निजी तौर पर भी !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
अभी तक तो कोई दिक्कत नहीं आई, बल्कि मेरे परिवार के साथ-साथ सभी ने मेरा उत्साह वर्धन ही किया है।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
विशेष कोई आर्थिक दिक्कत तो नहीं हुई, लेकिन इन दोनों क्षेत्रों में कम पूंजी या हुनर-समझ के माध्यम से आगे बढ़ा जा सकता है।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
कला ,साहित्य और समाज सेवा तीनों ही मेरे परिवार से मिले संस्कार हैं, जो समय के साथ परिष्कृत होती गई और शादी के बाद भी ये क्रम रुकी नहीं, अपितु बढ़ती ही जा रही है ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
मेरे परिवार और मेरे मित्रों से सहयोग सदा-सर्वदा प्राप्त हुई । अपने कार्यों और साहित्य से जुड़े लोगों ने इन वर्षों में साथ नहीं छोड़े, अपितु मेरे सफर को आसान किए और गर्व करने तक पहुंचाए, परंतु सबसे ज्यादा साथ मेरे परिवारजनों ने दिए, क्योंकि मैं हमेशा टेक्नोलॉजी से भागने वाली प्राणी रही हूँ । ऐसे में मुझे वीडियो एडिटिंग वगैरह सीखने का धैर्य और एतदर्थ साथ देना इतना आसान नही था, पर मैं आजीवन विद्यार्थी रही हूँ और रहना चाहूंगी।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
कला और साहित्य दोनों भारतीय संस्कृति का ही हिस्सा हैं, जितनी बेहतर होंगी, उतनी ही संस्कृति सम्मानित होंगी ! चोट पहुंचाने का तो कोई अर्थ ही नहीं निकलता।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
व्यक्ति जितने पढ़ते हैं, उतने सीखते भी हैं और जो सीखते हैं, उनसे ही बेहतर समाज बनाने का प्रयास करते हैं । फिर वो चाहे स्त्री हो या पुरुष, किसी भी उम्र वर्ग के हो । इसे एक उदाहरण देकर समझाती हूँ। मैं 'पहल एक प्रयास' संस्था से जुड़ी हूँ, जो सफाई और सौंदर्यीकरण का अभियान चलाती है, इसमें डॉक्टर, आई ए एस, टीचर, स्टूडेंट्स इत्यादि शामिल हैं, कोई भेदभाव नहीं ! इसी तरह कितनी गरीब लड़कियां जो बर्तन मांजने के अलावे अन्य कुछ नही जानती थी, आज मेरे सहयोग से अपने पैरों पर खड़ी हैं । शेरोज़ संस्था की एसिड अटैक पीड़िताओं को भी साहित्य और कला से जोड़ा है। किताबों और पढ़ाई से बच्चों-बड़ों को शिक्षित करना, एक आदर्श राष्ट्र का रूप ही तो हैं।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
जी ! जो जैसा सहयोग दे सकता है, वो सामर्थ्य अनुसार देता है, कभी पुरानी किताबों के माध्यम से, तो कभी टीचर की तरह ! .....यानी जैसी जिसकी सुंदर भावना !
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
जी नहीं ! ईश्वरिय कृपा से हमेशा इस काम मे अच्छे अनुभव मिलते रहे हैं।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
भाव- कलश व आगमन पत्रिका, वनिता, कादम्बिनी एवं कई समाचार पत्रों में कविता, कहानी प्रकाशित हुए हैं, इसके अतिरिक्त मेरे पेज अंतरा द बूकशेल्फ़ व अंतरा द रिदम ऑफ कलर्स एवं उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन आदि के फ़ेसबुक पेज से कई जानकारियां मिल सकती हैं। पिछले दिनों वाराणसी में आयोजित हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कार्यक्रम 'काशी एक : रूप अनेक' व प्रकाशित स्मारिका के माध्यम से मेरे कार्य को विस्तार से जाना जा सकता है, जिसके संक्षिप्त वीडियो भी मैंने अपने चैनल में पोस्ट किए हैं।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
साहित्य एवं कला के क्षेत्र में मुझे कई सम्मान मिल चुके हैं।
●राष्ट्रीय किंकर सम्मान, दिल्ली
●आगमन तेजस्विनी सम्मान, दिल्ली
●नारी गौरव सम्मान-द वुड रिसोर्ट, रुड़की
●अभिनव नृत्यशाला सम्मान, मेरठ
●मातृ शक्ति सम्मान- गीतांजलि वेलफेयर, ग़ाज़ियाबाद
●प्राइड ऑफ वोमेन- आगमन, दिल्ली
●पहल स्वच्छता सम्मान, नोएडा
इत्यादि।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
इन दिनों मैं मुरादबाद शहर में हूँ और अपने इन सभी कार्यों को आप सभी सुधीजनों के सहयोग से आगे बढ़ाना चाहती हूँ। सच तो ये है कि इस छोटे से जीवन मे बहुत कुछ करना बाकी है। जब भी आप ईमानदारी और दिल से काम करते हुए किसी भीड़ में शामिल नहीं होते, तो निःसन्देह काम ही आपको सही दिशा देता है, जो जीवन को सार्थकता प्रदान करती है, इसलिये हर परिस्थिति में खुश और संतुष्ट होना सीखें ! रास्ते अपने आप बनते चले जाएंगे।
सधन्यवाद ।
आप यूं ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
यूट्यूबर अर्चना उपाध्याय |
प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल मीडिया व यूट्यूब के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
सबसे पहले तो आपका हार्दिक आभार कि आपने मुझे अपने मंच से जोड़ा। मैं अर्चना उपाध्याय 'टेक्सटाइल मिनिस्ट्री' व 'उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन 'में डिज़ाइनर हूँ, साथ ही अपने यूट्यूब चैनल 'अंतरा द बुकशेल्फ' पर किताबों से जुड़ी बातें करती हूँ। हिंदी भाषा और साहित्य कभी मेरा विषय तो नहीं रहा, लेकिन मन में अपनी मातृभाषा के प्रति लगाव और सम्मान ने मुझे हमेशा साहित्य की दुनिया से जोड़े रखा। एक डिज़ाइनर के रूप में जहाँ मैं देश भर के हैंडीक्राफ्ट्स से जुड़े लोगों के जीवन और कलाओं को पढ़ पाती हूँ वहीं दूसरी तरफ किताबों के माध्यम से हर उस वर्ग तक पहुंचना चाहती हूँ, जिनके लिए साहित्य जीवन का हिस्सा है।
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैंने वाराणसी के BHU से पेंटिंग ऑनर्स किया है, फिर टेक्सटाइल डिजाइनिंग,पर सहित्य और किताबों के नजदीक रहने की इस ललक ने न सिर्फ मेरी पढ़ाई जारी रखी, बल्कि मैं कई साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हूँ, तो एक त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन भी की और इन दिनों मास्टर इन लाइब्रेरी साइंस कर रही हूँ, ताकि पुस्तकों से जुड़ी यह रिश्ता और मजबूत हो सके !
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
एक डिज़ाइनर के तौर पर तो हम फोक अर्टिसन्स को हुनरमंद बनाते ही हैं पर अपने ग्रुप अंतरा को मैंने दो भागों में बांट रखा है। 'अंतरा द रिदम ऑफ कलर्स' के जरिये हर विशेष वर्ग के बच्चों और महिलाओं को हुनर सिखाने के लिये कई तरह की वर्कशॉप और क्लासेस आयोजित करना। 'अंतरा द बुकशेल्फ' में बेहतरीन पुस्तकों की समीक्षा तो करती ही हूँ, साथ ही परीक्षाओं से जुड़ी पुस्तक को महत्वपूर्ण पॉइंट्स के साथ संक्षेप में समझाती हूँ, ताकि जिन विद्यार्थियों को जितनी मदद मिल सके उतनी ही मुझे खुशी मिलती है और जो पुस्तक खरीद नहीं सकते उनके लिये उपलब्ध कराती हूँ।
तो कला और साहित्य से जुड़े लोग जिस भी प्रकार की मदद चाहते हैं वो मुझसे जुड़ सकते हैं,मेरे यू ट्यूब चैनल के माध्यम से भी और निजी तौर पर भी !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
अभी तक तो कोई दिक्कत नहीं आई, बल्कि मेरे परिवार के साथ-साथ सभी ने मेरा उत्साह वर्धन ही किया है।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
विशेष कोई आर्थिक दिक्कत तो नहीं हुई, लेकिन इन दोनों क्षेत्रों में कम पूंजी या हुनर-समझ के माध्यम से आगे बढ़ा जा सकता है।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
कला ,साहित्य और समाज सेवा तीनों ही मेरे परिवार से मिले संस्कार हैं, जो समय के साथ परिष्कृत होती गई और शादी के बाद भी ये क्रम रुकी नहीं, अपितु बढ़ती ही जा रही है ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
मेरे परिवार और मेरे मित्रों से सहयोग सदा-सर्वदा प्राप्त हुई । अपने कार्यों और साहित्य से जुड़े लोगों ने इन वर्षों में साथ नहीं छोड़े, अपितु मेरे सफर को आसान किए और गर्व करने तक पहुंचाए, परंतु सबसे ज्यादा साथ मेरे परिवारजनों ने दिए, क्योंकि मैं हमेशा टेक्नोलॉजी से भागने वाली प्राणी रही हूँ । ऐसे में मुझे वीडियो एडिटिंग वगैरह सीखने का धैर्य और एतदर्थ साथ देना इतना आसान नही था, पर मैं आजीवन विद्यार्थी रही हूँ और रहना चाहूंगी।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
कला और साहित्य दोनों भारतीय संस्कृति का ही हिस्सा हैं, जितनी बेहतर होंगी, उतनी ही संस्कृति सम्मानित होंगी ! चोट पहुंचाने का तो कोई अर्थ ही नहीं निकलता।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
व्यक्ति जितने पढ़ते हैं, उतने सीखते भी हैं और जो सीखते हैं, उनसे ही बेहतर समाज बनाने का प्रयास करते हैं । फिर वो चाहे स्त्री हो या पुरुष, किसी भी उम्र वर्ग के हो । इसे एक उदाहरण देकर समझाती हूँ। मैं 'पहल एक प्रयास' संस्था से जुड़ी हूँ, जो सफाई और सौंदर्यीकरण का अभियान चलाती है, इसमें डॉक्टर, आई ए एस, टीचर, स्टूडेंट्स इत्यादि शामिल हैं, कोई भेदभाव नहीं ! इसी तरह कितनी गरीब लड़कियां जो बर्तन मांजने के अलावे अन्य कुछ नही जानती थी, आज मेरे सहयोग से अपने पैरों पर खड़ी हैं । शेरोज़ संस्था की एसिड अटैक पीड़िताओं को भी साहित्य और कला से जोड़ा है। किताबों और पढ़ाई से बच्चों-बड़ों को शिक्षित करना, एक आदर्श राष्ट्र का रूप ही तो हैं।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
जी ! जो जैसा सहयोग दे सकता है, वो सामर्थ्य अनुसार देता है, कभी पुरानी किताबों के माध्यम से, तो कभी टीचर की तरह ! .....यानी जैसी जिसकी सुंदर भावना !
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
जी नहीं ! ईश्वरिय कृपा से हमेशा इस काम मे अच्छे अनुभव मिलते रहे हैं।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
भाव- कलश व आगमन पत्रिका, वनिता, कादम्बिनी एवं कई समाचार पत्रों में कविता, कहानी प्रकाशित हुए हैं, इसके अतिरिक्त मेरे पेज अंतरा द बूकशेल्फ़ व अंतरा द रिदम ऑफ कलर्स एवं उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन आदि के फ़ेसबुक पेज से कई जानकारियां मिल सकती हैं। पिछले दिनों वाराणसी में आयोजित हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कार्यक्रम 'काशी एक : रूप अनेक' व प्रकाशित स्मारिका के माध्यम से मेरे कार्य को विस्तार से जाना जा सकता है, जिसके संक्षिप्त वीडियो भी मैंने अपने चैनल में पोस्ट किए हैं।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
साहित्य एवं कला के क्षेत्र में मुझे कई सम्मान मिल चुके हैं।
●राष्ट्रीय किंकर सम्मान, दिल्ली
●आगमन तेजस्विनी सम्मान, दिल्ली
●नारी गौरव सम्मान-द वुड रिसोर्ट, रुड़की
●अभिनव नृत्यशाला सम्मान, मेरठ
●मातृ शक्ति सम्मान- गीतांजलि वेलफेयर, ग़ाज़ियाबाद
●प्राइड ऑफ वोमेन- आगमन, दिल्ली
●पहल स्वच्छता सम्मान, नोएडा
इत्यादि।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
इन दिनों मैं मुरादबाद शहर में हूँ और अपने इन सभी कार्यों को आप सभी सुधीजनों के सहयोग से आगे बढ़ाना चाहती हूँ। सच तो ये है कि इस छोटे से जीवन मे बहुत कुछ करना बाकी है। जब भी आप ईमानदारी और दिल से काम करते हुए किसी भीड़ में शामिल नहीं होते, तो निःसन्देह काम ही आपको सही दिशा देता है, जो जीवन को सार्थकता प्रदान करती है, इसलिये हर परिस्थिति में खुश और संतुष्ट होना सीखें ! रास्ते अपने आप बनते चले जाएंगे।
सधन्यवाद ।
आप यूं ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
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