कुछ साल पहले हिंदी फ़िल्म 'भूतनाथ रिटर्न्स' काफी चर्चा में रहे, क्योंकि इस फ़िल्म पर दो बड़े लेखकों ने अपनी कहानी चुराने का आरोप लगाए ! पहले लेखक हैं, डॉ. सदानंद पॉल, जिनका दावा है कि उनकी भारत सरकार की कॉपीराइट नाट्यपटकथा 'लव इन डार्विन' पर फ़िल्म 'भूतनाथ रिटर्न्स' आधारित है, तो दूजे लेखक हैं, श्री सुशांत सुप्रिय, जिन्होंने 'भूतनाथ' नामक स्टोरी लिखी है, जो उनके अनुसार किसी पत्रिका में यह फ़िल्म प्रसारण के पहले ही छपी है ! हालाँकि 'भूतनाथ' शीर्षक से स्व. देवकीनंदन खत्री के तिलिस्मी उपन्यास भी पूर्वप्रकाशित हैं । खैर, मैसेंजर ऑफ आर्ट में वर्णित लेखक-त्रय में श्री सुशांत सुप्रिय के अद्वितीय कविताओं को पढ़ते हैं । आइये, सुप्रिय जी की कविताओं से रूबरू होइए.....
इंस्पेक्टर मातादीन के राज में
( हरिशंकर परसाई को समर्पित )
जिस दसवें व्यक्ति को फाँसी हुई
वह निर्दोष था
उसका नाम उस नौवें व्यक्ति से मिलता था
जिस पर मुक़दमा चला था
निर्दोष तो वह नौवाँ व्यक्ति भी था
जिसे आठवें की शिनाख़्त पर
पकड़ा गया था
उसे सातवें ने फँसाया था
जो ख़ुद छठे की गवाही की वजह से
मुसीबत में आया था
छठा भी क्या करता
उसके ऊपर उस पाँचवें का दबाव था
जो ख़ुद चौथे का मित्र था
चौथा भी निर्दोष था
तीसरा उसका रिश्तेदार था
जिसकी बात वह टाल नहीं पाया था
दूसरा तीसरे का बॉस था
लिहाज़ा वह भी उसे 'ना' नहीं कह सका था
निर्दोष तो दूसरा भी था
वह उस हत्या का चश्मदीद गवाह था
किंतु उसे पहले ने धमकाया था
पहला व्यक्ति ही असल हत्यारा था
किंतु पहले के विरुद्ध
न कोई गवाह था , न सबूत
इसलिए वह कांड करने के बाद भी
मदमस्त साँड़-सा
खुला घूम रहा था
स्वतंत्र भारत में...
•••
कैसा समय है यह
कैसा समय है यह
जब हल कोई चला रहा है
अन्न और खेत किसी का है
ईंट-गारा कोई ढो रहा है
इमारत किसी की है
काम कोई कर रहा है
नाम किसी का है
कैसा समय है यह
जब भेड़ियों ने हथिया ली हैं
सारी मशालें
और हम
निहत्थे खड़े हैं
कैसा समय है यह
जब भरी दुपहरी में अँधेरा है
जब भीतर भरा है
एक अकुलाया शोर
जब अयोध्या से बामियान तक
ईराक़ से अफ़ग़ानिस्तान तक
बौने लोग डाल रहे हैं
लम्बी परछाइयाँ !
•••
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
इंस्पेक्टर मातादीन के राज में
( हरिशंकर परसाई को समर्पित )
जिस दसवें व्यक्ति को फाँसी हुई
वह निर्दोष था
उसका नाम उस नौवें व्यक्ति से मिलता था
जिस पर मुक़दमा चला था
निर्दोष तो वह नौवाँ व्यक्ति भी था
जिसे आठवें की शिनाख़्त पर
पकड़ा गया था
उसे सातवें ने फँसाया था
जो ख़ुद छठे की गवाही की वजह से
मुसीबत में आया था
छठा भी क्या करता
उसके ऊपर उस पाँचवें का दबाव था
जो ख़ुद चौथे का मित्र था
चौथा भी निर्दोष था
तीसरा उसका रिश्तेदार था
जिसकी बात वह टाल नहीं पाया था
दूसरा तीसरे का बॉस था
लिहाज़ा वह भी उसे 'ना' नहीं कह सका था
निर्दोष तो दूसरा भी था
वह उस हत्या का चश्मदीद गवाह था
किंतु उसे पहले ने धमकाया था
पहला व्यक्ति ही असल हत्यारा था
किंतु पहले के विरुद्ध
न कोई गवाह था , न सबूत
इसलिए वह कांड करने के बाद भी
मदमस्त साँड़-सा
खुला घूम रहा था
स्वतंत्र भारत में...
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कैसा समय है यह
कैसा समय है यह
जब हल कोई चला रहा है
अन्न और खेत किसी का है
ईंट-गारा कोई ढो रहा है
इमारत किसी की है
काम कोई कर रहा है
नाम किसी का है
कैसा समय है यह
जब भेड़ियों ने हथिया ली हैं
सारी मशालें
और हम
निहत्थे खड़े हैं
कैसा समय है यह
जब भरी दुपहरी में अँधेरा है
जब भीतर भरा है
एक अकुलाया शोर
जब अयोध्या से बामियान तक
ईराक़ से अफ़ग़ानिस्तान तक
बौने लोग डाल रहे हैं
लम्बी परछाइयाँ !
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