लघुकथाएं छोटी-छोटी होकर भी बड़ी बातें कह जाती हैं ! आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, बिहार के लघुकथाकार श्रीमान आलोक कौशिक की लघुकथा 'डॉग लवर'...
ओमप्रकाश भारतीय उर्फ पलटू जी शहर के सबसे बड़े उद्योगपति होने के साथ ही फेमस डॉग लवर अर्थात् प्रसिद्ध कुत्ता प्रेमी भी थे। पलटू जी ने लगभग सभी नस्ल के कुत्ते पाल रखे थे। उन्हें कुत्तों से इतना प्रेम था कि कुत्तों के मल-मूत्र भी वे स्वयं साफ किया करते थे। उनके श्वान प्रेम पर अखबार एवं पत्रिकाओं में सैकड़ों लेख प्रकाशित हो चुके थे।
करीब एक दर्जन नौकर पलटू जी के यहां काम करते थे। लेकिन मोहन मुख्य नौकर था। तबीयत ठीक ना होने की वजह से आज मोहन ने अपनी जगह अपनी पत्नी मालती को काम पर भेजा था। मालती अपने साथ अपने ढाई वर्षीय बेटे को साथ लेकर पलटू जी के यहां काम करने आ गयी। भोजन कक्ष के फर्श पर अपने बेटे को बिठाकर मालती अपना काम करने लगी। दो घंटे बीत गये। उधर मालती अपने काम में मशगूल थी और इधर उसका बेटा खेलते-खेलते पलटू जी के शयनकक्ष में जा पहुंचा और उनके बिस्तर पर खेलने लगा। उस समय पलटू जी अपनी बालकनी में बैठकर कुकुर प्रेम पर कविता लिख रहे थे। अपनी कविता पूरी करने के पश्चात जब वो अपने शयनकक्ष में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मालती का बेटा उनके बिस्तर पर मल त्याग कर रहा था। तब तक मालती भी अपने बेटे को ढूंढते हुए पलटू जी के शयनकक्ष तक पहुंच चुकी थी। बिस्तर पर मल त्याग करता हुआ देखकर पलटू जी आग बबूला हो गये और भारत में औरतों को दी जाने वाली सारी गालियां कुछ ही पलों में मालती को दे डाली। तब तक मालती डर के मारे अपने बेटे को अपनी पीठ पर लादकर अपने हाथों से मल को उठा चुकी थी। अपने शब्दकोश की सारी गालियां दे डालने के पश्चात पलटू जी ने मालती को तुरंत घर से निकल जाने का आदेश दे डाला और साथ ही मोहन को काम से निकाले जाने का फरमान जारी कर दिया।
अगले दिन सुबह मोहन काम की तलाश में निकल पड़ा। इधर पलटू जी अपनी बालकनी में बैठकर अखबार में छपी कुकुर प्रेम पर लिखी गई अपनी कविता को देखकर मुस्कुरा रहे थे।
श्रीमान आलोक कौशिक |
ओमप्रकाश भारतीय उर्फ पलटू जी शहर के सबसे बड़े उद्योगपति होने के साथ ही फेमस डॉग लवर अर्थात् प्रसिद्ध कुत्ता प्रेमी भी थे। पलटू जी ने लगभग सभी नस्ल के कुत्ते पाल रखे थे। उन्हें कुत्तों से इतना प्रेम था कि कुत्तों के मल-मूत्र भी वे स्वयं साफ किया करते थे। उनके श्वान प्रेम पर अखबार एवं पत्रिकाओं में सैकड़ों लेख प्रकाशित हो चुके थे।
करीब एक दर्जन नौकर पलटू जी के यहां काम करते थे। लेकिन मोहन मुख्य नौकर था। तबीयत ठीक ना होने की वजह से आज मोहन ने अपनी जगह अपनी पत्नी मालती को काम पर भेजा था। मालती अपने साथ अपने ढाई वर्षीय बेटे को साथ लेकर पलटू जी के यहां काम करने आ गयी। भोजन कक्ष के फर्श पर अपने बेटे को बिठाकर मालती अपना काम करने लगी। दो घंटे बीत गये। उधर मालती अपने काम में मशगूल थी और इधर उसका बेटा खेलते-खेलते पलटू जी के शयनकक्ष में जा पहुंचा और उनके बिस्तर पर खेलने लगा। उस समय पलटू जी अपनी बालकनी में बैठकर कुकुर प्रेम पर कविता लिख रहे थे। अपनी कविता पूरी करने के पश्चात जब वो अपने शयनकक्ष में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मालती का बेटा उनके बिस्तर पर मल त्याग कर रहा था। तब तक मालती भी अपने बेटे को ढूंढते हुए पलटू जी के शयनकक्ष तक पहुंच चुकी थी। बिस्तर पर मल त्याग करता हुआ देखकर पलटू जी आग बबूला हो गये और भारत में औरतों को दी जाने वाली सारी गालियां कुछ ही पलों में मालती को दे डाली। तब तक मालती डर के मारे अपने बेटे को अपनी पीठ पर लादकर अपने हाथों से मल को उठा चुकी थी। अपने शब्दकोश की सारी गालियां दे डालने के पश्चात पलटू जी ने मालती को तुरंत घर से निकल जाने का आदेश दे डाला और साथ ही मोहन को काम से निकाले जाने का फरमान जारी कर दिया।
अगले दिन सुबह मोहन काम की तलाश में निकल पड़ा। इधर पलटू जी अपनी बालकनी में बैठकर अखबार में छपी कुकुर प्रेम पर लिखी गई अपनी कविता को देखकर मुस्कुरा रहे थे।
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'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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