कोरोना कहर की जस की तस स्थिति, पर लॉकडाउन-5 और अनलॉक-1 की अंतिम स्थिति के बीच 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के बहुचर्चित साक्षात्कार स्तम्भ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' की इस माह की कड़ी में जिस व्यक्तित्व और कृतित्व को सम्मानित की जा रही है, उस शख़्सियत के शब्दों में ही आप पाठकबन्धु खुद ही हृदयग्राह्य होइए, यथा- "नाम- वर्षा गुप्ता 'रैन'। कचनारा नाम के छोटे से गाँव में जन्म हुई और गरोठ कस्बे में शादी। मैं एक गृहिणी होने के साथ ही अध्यापिका भी हूँ और छुट्टियों में बच्चों के डांस क्लास चलाती हूँ। लेखन मेरी ज़िंदगी है, तो शौक़ भी । कलात्मक कार्य में सम्मिलित होना मुझे बेहद पसंद है । साथ ही संगीत सुनना और फ़ोटोग्राफ़ी भी मेरी रुचि में शामिल है। कविताओं से मुझे पहचान मिली, फिर कहानियाँ गढ़नी शुरू की और अब उपन्यास । मैं चाहती हूँ कि पाठकगण मेरे लेखन से कुछ सीख लें, तो मेरी रचनाधर्मिता सफल हो !"
प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल व प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
वर्ष 2012 में शादी के बाद से मैंने लिखना शुरू की और सन् 2016 में मेरी पहली किताब आई । इस बीच जो सफर रहा, वह रोचक तो थी, पर बहुत उतार-चढ़ाव आए। मैं एक गृहिणी भी हूँ और साथ में अध्यापिका भी, तो लेखन का कार्य अक्सर रात को ही कर पाती हूँ और यह भी होते रहे हैं कि व्यस्तता के चलते दिमाग में आई ऐसी कई ख़याल जो पन्नों पर उतारना चाहती थी, उन्हें व्यस्तता की आँधी उड़ा ले गई । ख़ैर अब तक मैंने जो भी पन्नों के हवाले की, उनमें सच्चाई उड़ेलने की कोशिश की हैं।
प्र.(2.)आप किस तरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं एक संयुक्त परिवार से आई हूँ । मेरे लिए मेरे पापा हमेशा से मार्गदर्शक रहे । उनका मानना है कि बेटियाँ पिता का गौरव होती हैं । उनके हिस्से जो कमाना नहीं पड़ती है,भाग्य या ईश्वर देता हैं । वो खुद लक्ष्मी होती है । उनकी इस सोच ने मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित किया। एक सीमित परिवार में शादी के बाद कुछ अतिरिक्त वक्त और अतिरिक्त अनुभव मिले, जो ऐसी दिशा की और ले गई, जिसके बारे में कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकती ! यह पूर्णतः मेरे लिए ईश्वर का उपहार (गॉड गिफ्ट) की तरह हैं ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आम लोग किस तरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मेरी पहली किताब "सफ़र रेशमी सपनों का" से मेरी एक छात्रा प्रभावित हुई। निरन्तर प्रयास कर वह वो सवाल कुछ ही वक्त में हल कर पाई, जिसके लिए वह हार माननेवाली थी। इस तरह हर कविता, कहानी और लेख के माध्यम से एक संदेश देने की कोशिश की है, ताकि पाठक लाभान्वित हो सके !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
मुझे और मेरे प्रकाशक को इतनी समस्याओं का सामना करना पड़ा कि कोई और लेखक या प्रकाशक होते, तो कब के हार मान चुके होते ! पर "हार मान लेने से ही हार होती है" यही सोचकर हमने सपना पूरे किये, मेरी इस किताब को पाठकों तक पहुँचाने का और प्रकाशक को भी अपनी पहली किताब प्रकाशित करने का। इतनी समस्या आई एक हिंदी किताब की टाइपिंग एडिटिंग में की तकनीकी ख़राबी की वजह से जो हर बार ख़राब हो जाती थी कि इसके बाद आई किताब पहले प्रकाशित हो गई। दूसरी समस्या यह थी कि तकदीर ने कलम तो थमा दी, पर लिखने के अतिरिक्त मुझे कुछ और नहीं पता कि किताब कैसे और कहाँ प्रकाशित होती हैं ? सब सोशल मीडिया के माध्यम से जाना, समझा और सीखने के इस जज्बे ने सब कुछ सीख दिया। मेरे लिखे को किताब में बदलने का विचार (आइडिया) भी मेरे एक मित्र को आया, जो बाद में मेरे लिए अप्रतिम सपना बनकर आई । मंज़िल तक पहुँचने के लिए जितनी दिक़्क़तों से रूबरू होनी पड़ी कि उस पर किताब लिखी जा सकती है, जिनकी कुछ झलकियाँ मेरी आगामी किताबों में देखने को मिल सकती है !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब नहीं है, पर जहाँ तक किताबों पर ख़र्च करने की बात आती है, तो कुछ लोग इसे फ़िजूलखर्ची मानते हैं, लेकिन आत्मनिर्भरता और पति के मदद से इस समस्या से आखिर उबर ही गई।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
मुझे ऐसी महसूस होती है कि मुझसे पहले इस क्षेत्र ने ही मुझे चुन ली। मैं जब कविता क्या है, कहानी कैसे और क्यूँ लिखी जाती है ? ये सब जान पाती, तकदीर ने कलम थमा दी । इससे पहले कभी इस बारे में सपने में भी ख़याल नहीं आती थी, पर जब से लिखना शुरू की, यह जिंदगी ही बन गयी ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
मेरे मायके में सब इस बात से अनभिज्ञ थे कि मैं लिखती हूँ, क्योंकि मैंने लेखन शादी के बाद शुरू की है। मैं इस खुशखबरी को सरप्राइज के तौर पर अपनी किताब को तोहफे में देना चाहती थी । यही कारण रहा कि किताब में आई सारी परेशानियाँ मुझे अकेले ही झेलनी पड़ी, क्योंकि किसी से मदद या सलाह नहीं ले सकी ! भाई-बहन मेरे इस कार्य में हमेशा मेरे साथ रहे हैं ! उनके मोरल सपोर्ट ने कभी भी मुझे हारने व टूटने नहीं दी। ससुराल में किसी को दिक्कत नहीं थी, पर किसी को इस बारे में कुछ जानकारी नहीं थी। संक्षिप्त में कहा जाए, तो कुछ लोग साथ रहे, पर कुछ मुकर गए और कुछ तो तटस्थ रहे !
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मैंने हिंदी कहने पर ज़ोर दी, क्योंकि यह भाषा मातृभाषा है । हमारी मातृभाषा दूसरी भाषाओं का अनादर करना नहीं सिखाती, तो सभी भाषाओं का सम्मान करना सिखाती है । कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो अपनी भाषा के सम्मान में दूसरी भाषाओं का अपमान करते है, ऐसे लोगों से मुझे दिक्कत होती हैं । मेरी आगामी किताबों में शुद्ध हिंदी में आम बोलचाल की भाषा सम्मिलित की गई है, ताकि पाठक ज्यादा ही जुड़ सकें !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
मेरा मानना है कि जब तक व्यक्ति किसी बात की जड़ व नींव तक न पहुँच जाते, उसे उस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए । यही कारण रहा है कि मैंने इस बारे में अब तक कुछ नहीं लिखा है । कोशिश की जारी है कि अपने ऐसे विचारों को जल्द साझा कर पाऊँ !
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
मोरल सपोर्ट में भाई बहन और एक मित्र रहे, पति ने आर्थिक रूप से साथ दिए ।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
अबतक तो ऐसी किसी परेशानी से नहीं जुझनी पड़ी है । पर हाँ, एक समाचार पत्र ने गलतफहमी के चलते मेरी एक कहानी को किसी और लेखक के नाम से छाप दी थी और उस लेखक की लघुकथा मेरे नाम से ! इसके लिए सोशल मीडिया के माध्यम से आवाज भी उठाई गई, पर ग़लती अनजानें में हुई थी और तकनीकी थी, सो बाद में माफ़ कर दिए गए !
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
मेरी पहली किताब "सफ़र रेशमी सपनों का" प्रकाशित हुई। दूसरी कहानी-संग्रह "मेला जंक्शन" (किंडल) जो कि इंटरनेट पर प्रकाशित हुई। तीसरी और चौथी किताब उपन्यास है, जिसे जल्द प्रकाशित करवाना चाहूँगी !
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
अच्छे लेखन का पुरस्कार मुझे विमोचन के वक्त ही मिल गया था। उसके बाद एक क्षेत्रीय प्रोग्राम में मुझे सम्मानित की गई । शील्ड तथा प्रमाण पत्र से नवाजी गई । पाठकों के प्यार और सम्मान भी किसी पुरस्कार से कम नहीं है। उनकी खतें, तोहफ़े और किताबों ने मेरी आलमारी से ज़्यादा मेरे दिल में जगह बना ली है।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मेरी पहली किताब Damick Publication, Delhi से प्रकाशित हुई। प्रकाशक लेखक की समस्या अपनी समझकर उन्हें सहयोग करते हैं। समाज को कहना चाहूँगी कि किसी भी दकियानूसी सोच को बदलें तथा रूढ़िवादिता को पनपने न दें। साथ ही कहना चाहूँगी कि लोग अपने लिखे को समय दें, ताकि उनमें निखार आएं, प्रकाशित होने की जल्दबाजी में बहुत सारी त्रुटियाँ रह जाती हैं। सच लिखें, बेबाक लिखें, समाज और राष्ट्र को बेबाक लेखकों की ज़रुरत है !
आप यूं ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
श्रीमती वर्षा गुप्ता 'रैन' |
प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल व प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
वर्ष 2012 में शादी के बाद से मैंने लिखना शुरू की और सन् 2016 में मेरी पहली किताब आई । इस बीच जो सफर रहा, वह रोचक तो थी, पर बहुत उतार-चढ़ाव आए। मैं एक गृहिणी भी हूँ और साथ में अध्यापिका भी, तो लेखन का कार्य अक्सर रात को ही कर पाती हूँ और यह भी होते रहे हैं कि व्यस्तता के चलते दिमाग में आई ऐसी कई ख़याल जो पन्नों पर उतारना चाहती थी, उन्हें व्यस्तता की आँधी उड़ा ले गई । ख़ैर अब तक मैंने जो भी पन्नों के हवाले की, उनमें सच्चाई उड़ेलने की कोशिश की हैं।
प्र.(2.)आप किस तरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं एक संयुक्त परिवार से आई हूँ । मेरे लिए मेरे पापा हमेशा से मार्गदर्शक रहे । उनका मानना है कि बेटियाँ पिता का गौरव होती हैं । उनके हिस्से जो कमाना नहीं पड़ती है,भाग्य या ईश्वर देता हैं । वो खुद लक्ष्मी होती है । उनकी इस सोच ने मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित किया। एक सीमित परिवार में शादी के बाद कुछ अतिरिक्त वक्त और अतिरिक्त अनुभव मिले, जो ऐसी दिशा की और ले गई, जिसके बारे में कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकती ! यह पूर्णतः मेरे लिए ईश्वर का उपहार (गॉड गिफ्ट) की तरह हैं ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आम लोग किस तरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मेरी पहली किताब "सफ़र रेशमी सपनों का" से मेरी एक छात्रा प्रभावित हुई। निरन्तर प्रयास कर वह वो सवाल कुछ ही वक्त में हल कर पाई, जिसके लिए वह हार माननेवाली थी। इस तरह हर कविता, कहानी और लेख के माध्यम से एक संदेश देने की कोशिश की है, ताकि पाठक लाभान्वित हो सके !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
मुझे और मेरे प्रकाशक को इतनी समस्याओं का सामना करना पड़ा कि कोई और लेखक या प्रकाशक होते, तो कब के हार मान चुके होते ! पर "हार मान लेने से ही हार होती है" यही सोचकर हमने सपना पूरे किये, मेरी इस किताब को पाठकों तक पहुँचाने का और प्रकाशक को भी अपनी पहली किताब प्रकाशित करने का। इतनी समस्या आई एक हिंदी किताब की टाइपिंग एडिटिंग में की तकनीकी ख़राबी की वजह से जो हर बार ख़राब हो जाती थी कि इसके बाद आई किताब पहले प्रकाशित हो गई। दूसरी समस्या यह थी कि तकदीर ने कलम तो थमा दी, पर लिखने के अतिरिक्त मुझे कुछ और नहीं पता कि किताब कैसे और कहाँ प्रकाशित होती हैं ? सब सोशल मीडिया के माध्यम से जाना, समझा और सीखने के इस जज्बे ने सब कुछ सीख दिया। मेरे लिखे को किताब में बदलने का विचार (आइडिया) भी मेरे एक मित्र को आया, जो बाद में मेरे लिए अप्रतिम सपना बनकर आई । मंज़िल तक पहुँचने के लिए जितनी दिक़्क़तों से रूबरू होनी पड़ी कि उस पर किताब लिखी जा सकती है, जिनकी कुछ झलकियाँ मेरी आगामी किताबों में देखने को मिल सकती है !
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब नहीं है, पर जहाँ तक किताबों पर ख़र्च करने की बात आती है, तो कुछ लोग इसे फ़िजूलखर्ची मानते हैं, लेकिन आत्मनिर्भरता और पति के मदद से इस समस्या से आखिर उबर ही गई।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
मुझे ऐसी महसूस होती है कि मुझसे पहले इस क्षेत्र ने ही मुझे चुन ली। मैं जब कविता क्या है, कहानी कैसे और क्यूँ लिखी जाती है ? ये सब जान पाती, तकदीर ने कलम थमा दी । इससे पहले कभी इस बारे में सपने में भी ख़याल नहीं आती थी, पर जब से लिखना शुरू की, यह जिंदगी ही बन गयी ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
मेरे मायके में सब इस बात से अनभिज्ञ थे कि मैं लिखती हूँ, क्योंकि मैंने लेखन शादी के बाद शुरू की है। मैं इस खुशखबरी को सरप्राइज के तौर पर अपनी किताब को तोहफे में देना चाहती थी । यही कारण रहा कि किताब में आई सारी परेशानियाँ मुझे अकेले ही झेलनी पड़ी, क्योंकि किसी से मदद या सलाह नहीं ले सकी ! भाई-बहन मेरे इस कार्य में हमेशा मेरे साथ रहे हैं ! उनके मोरल सपोर्ट ने कभी भी मुझे हारने व टूटने नहीं दी। ससुराल में किसी को दिक्कत नहीं थी, पर किसी को इस बारे में कुछ जानकारी नहीं थी। संक्षिप्त में कहा जाए, तो कुछ लोग साथ रहे, पर कुछ मुकर गए और कुछ तो तटस्थ रहे !
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मैंने हिंदी कहने पर ज़ोर दी, क्योंकि यह भाषा मातृभाषा है । हमारी मातृभाषा दूसरी भाषाओं का अनादर करना नहीं सिखाती, तो सभी भाषाओं का सम्मान करना सिखाती है । कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो अपनी भाषा के सम्मान में दूसरी भाषाओं का अपमान करते है, ऐसे लोगों से मुझे दिक्कत होती हैं । मेरी आगामी किताबों में शुद्ध हिंदी में आम बोलचाल की भाषा सम्मिलित की गई है, ताकि पाठक ज्यादा ही जुड़ सकें !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
मेरा मानना है कि जब तक व्यक्ति किसी बात की जड़ व नींव तक न पहुँच जाते, उसे उस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए । यही कारण रहा है कि मैंने इस बारे में अब तक कुछ नहीं लिखा है । कोशिश की जारी है कि अपने ऐसे विचारों को जल्द साझा कर पाऊँ !
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।
उ:-
मोरल सपोर्ट में भाई बहन और एक मित्र रहे, पति ने आर्थिक रूप से साथ दिए ।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
अबतक तो ऐसी किसी परेशानी से नहीं जुझनी पड़ी है । पर हाँ, एक समाचार पत्र ने गलतफहमी के चलते मेरी एक कहानी को किसी और लेखक के नाम से छाप दी थी और उस लेखक की लघुकथा मेरे नाम से ! इसके लिए सोशल मीडिया के माध्यम से आवाज भी उठाई गई, पर ग़लती अनजानें में हुई थी और तकनीकी थी, सो बाद में माफ़ कर दिए गए !
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
मेरी पहली किताब "सफ़र रेशमी सपनों का" प्रकाशित हुई। दूसरी कहानी-संग्रह "मेला जंक्शन" (किंडल) जो कि इंटरनेट पर प्रकाशित हुई। तीसरी और चौथी किताब उपन्यास है, जिसे जल्द प्रकाशित करवाना चाहूँगी !
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
अच्छे लेखन का पुरस्कार मुझे विमोचन के वक्त ही मिल गया था। उसके बाद एक क्षेत्रीय प्रोग्राम में मुझे सम्मानित की गई । शील्ड तथा प्रमाण पत्र से नवाजी गई । पाठकों के प्यार और सम्मान भी किसी पुरस्कार से कम नहीं है। उनकी खतें, तोहफ़े और किताबों ने मेरी आलमारी से ज़्यादा मेरे दिल में जगह बना ली है।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मेरी पहली किताब Damick Publication, Delhi से प्रकाशित हुई। प्रकाशक लेखक की समस्या अपनी समझकर उन्हें सहयोग करते हैं। समाज को कहना चाहूँगी कि किसी भी दकियानूसी सोच को बदलें तथा रूढ़िवादिता को पनपने न दें। साथ ही कहना चाहूँगी कि लोग अपने लिखे को समय दें, ताकि उनमें निखार आएं, प्रकाशित होने की जल्दबाजी में बहुत सारी त्रुटियाँ रह जाती हैं। सच लिखें, बेबाक लिखें, समाज और राष्ट्र को बेबाक लेखकों की ज़रुरत है !
आप यूं ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
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