आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, ज़िन्दगी से जुड़ी कही-अनकही सच्चाई लिए मर्मभेदी कथा सुश्री सुरेखा अग्रवाल जी की लेखनी से.....
'७१साल का वचन'
यूँ ही बातों-बातों में उर्वी ने भी हामी भर दी, करती भी क्या ?
अक्सर मजाक में अमु उर्वी को छेड़ दिया करता था कि "सुनो तुम मुझें पहले क्यों नहीं मिली ?"
औऱ उर्वी अनसुना कर देती औऱ विषय बदल आगे बढ़ जाती।
यह रोज का ही था बातों-बातों में अक्सर अमु उसे कुछ न कुछ कह देता, जिसकी वजह से उर्वी पल भर निःशब्द हो जाती। जानती थी इन बातों का कोई मतलब नहीं, एक मुस्कान हल्का रेस्पांड भी दोनों के लिए सही नहीं था, क्योंकि ईश्वर कुछ भी गलत नहीं करता।
पर होनी का क्या ?
एक अरसा बीत चुका था कि आफिस से घर जाते वक्त वह बारिश खत्म होने का इंतजार कर रही थी कि अमु बोला "कब तक इंतज़ार करोगी उर्वी ,चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ !"
देर तो हो ही रही थी औऱ फिर साधन भी नहीं था कोई मना नहीं कर सकी थी। चल दी थी साथ, सफ़ऱ थोड़ लम्बा था, हल्की-फुल्की बातचीत के साथ अमु का अचानक से वही सवाल परिस्थिति से औऱ स्त्री मन उलझ गया।
नहीं अमु यह नहीं हो सकता औऱ ना ही यह क़भी होगा सुन रहे हों न तुम।
"अरे उर्वी कभी तो मिलोगी, कभी तो तरस आएगा मुझपर, सुनो कभी तो विश्वास करोगी।
मैं इंतज़ार करूँगा उस पल का" 70 साल तक औऱ इकहत्तर में अचानक उर्वी के मुँह से न जाने यह कैसे निकल गया, तो सुनो यह वादा करो कि इकहत्तर वे साल में तुम !
जानती हो तब ज़िस्म की, ज़रूरत नहीं होती, मन की जरूरत होती है औऱ मैंने हमेशा तुम्हें मन से चाहा है।
वचन दो अपने इकहत्तर वे साल में तुम मुझे जरूर मिलोगी !
अमु के आँखो से अश्रुधारा निरन्तर बह रही थी। उर्वी उसे वचन दे चुकी थी । घर की तरफ़ बढ़ती उर्वी कभी अमु को सोचती तो क़भी अपनी मेडिकल रिपोर्ट को जिसमें उसको कैंसर डायग्नोस हुआ था।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
सुश्री सुरेखा अग्रवाल |
यूँ ही बातों-बातों में उर्वी ने भी हामी भर दी, करती भी क्या ?
अक्सर मजाक में अमु उर्वी को छेड़ दिया करता था कि "सुनो तुम मुझें पहले क्यों नहीं मिली ?"
औऱ उर्वी अनसुना कर देती औऱ विषय बदल आगे बढ़ जाती।
यह रोज का ही था बातों-बातों में अक्सर अमु उसे कुछ न कुछ कह देता, जिसकी वजह से उर्वी पल भर निःशब्द हो जाती। जानती थी इन बातों का कोई मतलब नहीं, एक मुस्कान हल्का रेस्पांड भी दोनों के लिए सही नहीं था, क्योंकि ईश्वर कुछ भी गलत नहीं करता।
पर होनी का क्या ?
एक अरसा बीत चुका था कि आफिस से घर जाते वक्त वह बारिश खत्म होने का इंतजार कर रही थी कि अमु बोला "कब तक इंतज़ार करोगी उर्वी ,चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ !"
देर तो हो ही रही थी औऱ फिर साधन भी नहीं था कोई मना नहीं कर सकी थी। चल दी थी साथ, सफ़ऱ थोड़ लम्बा था, हल्की-फुल्की बातचीत के साथ अमु का अचानक से वही सवाल परिस्थिति से औऱ स्त्री मन उलझ गया।
नहीं अमु यह नहीं हो सकता औऱ ना ही यह क़भी होगा सुन रहे हों न तुम।
"अरे उर्वी कभी तो मिलोगी, कभी तो तरस आएगा मुझपर, सुनो कभी तो विश्वास करोगी।
मैं इंतज़ार करूँगा उस पल का" 70 साल तक औऱ इकहत्तर में अचानक उर्वी के मुँह से न जाने यह कैसे निकल गया, तो सुनो यह वादा करो कि इकहत्तर वे साल में तुम !
जानती हो तब ज़िस्म की, ज़रूरत नहीं होती, मन की जरूरत होती है औऱ मैंने हमेशा तुम्हें मन से चाहा है।
वचन दो अपने इकहत्तर वे साल में तुम मुझे जरूर मिलोगी !
अमु के आँखो से अश्रुधारा निरन्तर बह रही थी। उर्वी उसे वचन दे चुकी थी । घर की तरफ़ बढ़ती उर्वी कभी अमु को सोचती तो क़भी अपनी मेडिकल रिपोर्ट को जिसमें उसको कैंसर डायग्नोस हुआ था।
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