आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते सुश्री मधुलता त्रिपाठी की स्नेहिल कविता...
'चाहत'
सुनो...
तुम्हारे परिवार का हिस्सा बनने की चाहत रही
जब से तुम्हें पहली बार देखा था
जब से तुम्हें जानने लगी थी
ना जाने क्यों
आज भी तुम उतने ही अपने से लगते हो
जितना तब लगे थे
जब मैंने चाहा था
कि तुमसे कुछ यूं रिश्ता हो मेरा
कि हक से तुम्हें अपना कह सकूँ
तमाम चीजें बदल गयी
इन दिनों
मगर ये एहसास नहीं बदला
ये चाहत नहीं बदली
कि
मैं भी हिस्सा बनूँ
तुम्हारे परिवार का
माँ-पापा,
भाई-बहन
और तुम
सब कुछ चाहिए तुमसे
काश...
कि मैं तुमसे मांग पाती
या फिर तुम मुझे दे पाते
बिना मांगे ही
इन रिश्तों की तमाम दौलत
बेशकीमती उपहार
फिर
कुछ भी ना मांगती मैं तुमसे
पूरी जिंदगी
ये वादा रहा !
सुश्री मधुलता त्रिपाठी |
'चाहत'
सुनो...
तुम्हारे परिवार का हिस्सा बनने की चाहत रही
जब से तुम्हें पहली बार देखा था
जब से तुम्हें जानने लगी थी
ना जाने क्यों
आज भी तुम उतने ही अपने से लगते हो
जितना तब लगे थे
जब मैंने चाहा था
कि तुमसे कुछ यूं रिश्ता हो मेरा
कि हक से तुम्हें अपना कह सकूँ
तमाम चीजें बदल गयी
इन दिनों
मगर ये एहसास नहीं बदला
ये चाहत नहीं बदली
कि
मैं भी हिस्सा बनूँ
तुम्हारे परिवार का
माँ-पापा,
भाई-बहन
और तुम
सब कुछ चाहिए तुमसे
काश...
कि मैं तुमसे मांग पाती
या फिर तुम मुझे दे पाते
बिना मांगे ही
इन रिश्तों की तमाम दौलत
बेशकीमती उपहार
फिर
कुछ भी ना मांगती मैं तुमसे
पूरी जिंदगी
ये वादा रहा !
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
0 comments:
Post a Comment