आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के प्रस्तुतांक में पढ़ते हैं श्री सुहास भटनागर जी के फ़ेसबुक वॉल से साभार ली गयी दिल छूती कविता....
अब शहर की इमारतें आसमान छूने लगीं हैं
श्रीमान सुहास भटनागर |
अब शहर की इमारतें आसमान छूने लगीं हैं
इंसानियत में भी मिट्टी की महक गुम गयी है
मुझे सरहद एक काली सड़क नज़र आती है
एक मुद्दत बीत गयी इंसान को संग दिल हुए
जो हमदर्दों की बस्ती थी पूरी उजड़ चुकी है
शायद अब दिल को दर्द का एहसास ही नहीं
इंसानियत का सोचा ज़माने ने दूर कर दिया
कल शाम मैंने हमदर्दी को आहें भरते देखा
मैंने भी उससे किनारा किया आगे बढ़ गया !
नमस्कार दोस्तों !
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