आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट की टटका कड़ी में पढ़ते हैं, सुश्री इरा टाक की विचारफलक...
उपन्यासकार इरा टाक |
ख़ुश रहने के लिए दिमाग की बंद खिड़कियां खोलनी होती हैं। बंद दिमाग ठीक उसी तरह है, जैसे बंद कमरों में सिर्फ़ घुटन होती है। जो ऐसा नहीं कर पाते वो डरे हुए दुखी रहने की जायज़ वजहें गिनते-गिनाते रहते हैं। अपने डर को जीत कर खुशी का दरवाज़ा खोल सकते हैं पर अफ़सोस ! ज़्यादातर लोग उस दरवाज़े को छू भी नहीं पाते !
नमस्कार दोस्तों !
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