आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री भारती शर्मा जी की सादगीपूर्ण रचना....
रही हैं ये निगाहें अश्क़बार मुद्दत से
दबा है दिल में किसी का वो प्यार मुद्दत से
तमाम रात कसीदे सुनाये तारों ने
फ़लक पे बैठे हैं नगमा निगार मुद्दत से
वो जो कह के गये थे लौट के मैं आऊँगा
रहा है उनका हमें इन्तजार मुद्दत से
बुजुर्ग देते हैं सदका मेरे कलामों पे
करम करे है ये परवरदिगार मुद्दत से
वफ़ा के नाम पे वारी है मैंने उल्फ़त सब
दयार मेरा है क्यूँ सोगवार मुद्दत से
कली जो शौख़ सी महकी हुई हो गुलशन में
गिरी है उस पे ही बिजली हज़ार मुद्दत से
सुनाये क्या तुम्हें अपना फसाना उल्फ़त का
दबा है राख के नीचे शरार मुद्दत से !
नमस्कार दोस्तों !
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