आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के आज की कड़ी में पढ़ते हैं, कवयित्री अनुलता राज नायर जी की अद्भुत कविता......
कवयित्री अनुलता राज नायर |
बहते पानी पर तिरती धूप
नहीं बहती पानी के साथ,
ठहरी रहती है वहीं
कूलों की उँगलियाँ थामे
धूप सूरज की है
सूरज के साथ बहती है
सांझ ढले टिक जाती है
आकाश के सीमान्त में
जैसे प्रेम नहीं जाता प्रेमी के साथ
वो टिक जाता है
यहीं
मन की आख़री दीवार पर !
नमस्कार दोस्तों !
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