आदरणीय पाठकगण !
आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के प्रस्तुतांक में पढ़ते और समझते हैं, ज़िंदगी की हक़ीक़त को कवि रोहित सुकुमार जी की कविता के माध्यम से......
कवि रोहित सुकुमार |
अपना ही गुरुर
अनसुनी करने लग जाता है
जब अपनी ही बातें,
धिक्कारती है
एक-एक रूह
सिसकियां भरती है
हर एक साँस
काटने दौड़ता है
सेकण्ड का काँटा
और-
महसूस होती है घुटन
पल-पल
इन सबको दबाये भी
जब इंसान में
चल रही होती हैं
आवाजाही साँसों की,
तब मरे होने
और मरे जैसे होने का
हो जाता है अन्तर खत्म
क्योंकि-
घर की बात घर में ही रखने
वाली सीख दे दी जाती है
हमें जन्मघुट्टी में ही !
नमस्कार दोस्तों !
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