आइये मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान अमित गुप्ता जी की वर्त्तमान परिदृश्य लिखी हुई दिलमयी रचना...
श्रीमान अमित गुप्ता |
यह सुबह की हवा चल रही है
साहब !
सेहद के लिए फायदेमंद भी है
और नाजुक होने पर
हानिकारक भी,
क्योंकि गाँव के सभी
मुहल्ले के लोग
टहलने जाते हैं
ताकि पूरी दिनचर्या
सार्थक और अनुकूल बन सके
ये सुबह की हवा चल रही है
साहब !
कब कहाँ से यह ठंडी
हवा मुड़ जाएगी
यह किसी को पता नहीं
यह मौसम का प्रतिरूप है
साहब !
पुनः मेरे गाँव से पाँच किलोमीटर की दूरी पर
राजातालाब जक्शन से
गुजराती हुई वह मालगाड़ी
अपनी तेज रप्तार व गति से
इंजन और बोगी के साथ
निरंतर चलती रहती है, सिलीगुड़ी तक
इस लिए सुबह की हवा चल रही है
साहब !
कितने यात्रीगण ऐसे भी है
पलती पेट के लिए
इलाहाबाद के पथ पर निकल जाते हैं
अपनी परिवार व बाल बच्चों के लिए
दो वक्त की रोटी इंतजार रहती है
कभी-कभी वह राहें अनजान बन जाती
यह सुबह की हवा चल रही है
साहब !
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