आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री कांची सिंघल ओस जी की प्रेमपूर्ण कविता......
सुश्री कांची सिंघल 'ओस' |
दिल की आवाज,
तुमसे मिल के जाना कि,
रूह से जिस्म तक का सफ़र किसे कहते हैं,
तुम्हारे अनछुए स्पर्श, कहाँ तक छूते हैं मुझे, तुम क्या जानो,
तुमको न छू कर भी कहाँ तक छुआ है मैंने तुम क्या जानो,
कितनी बार कितनी शिद्दत से महसूस की हैं मैंने,
तुम्हारी चढ़ती उतरती सांसे,
जो बस महसूस ही तो होती हैं,
पर होती नहीं है,
कितनी बार चूमा है तुमको मैंने,
पर वो तुम्हारी तस्वीर ही तो होती है,
तुम कहाँ होते हो,
लफ़्ज़ों से तुम्हारी रूह तक का सफ़र,
बहुत बार किया है मैंने,
जहां सम्वेदनाओं के पुल बने हैं,
जिस्म तो कभी आड़े आया ही नहीं,
गवाह बनाया है पूनम के चाँद को,
जो सुनता रहा है मुसलसल तेरे वादों को,
मेरे हक़ में साथ खड़े होंगे ये सितारे,
जिन्हें गिना करती हूँ मैं अक्सर तेरे इंतज़ार में,
मुझे भरोसा नही इंसानी फ़ितरत का,
इसलिए तो इस हवा हो बोला है मैंने,
अपनी पैरवी के लिए,
इसलिए सुनो,
बेवफा होने से पहले सोच लेना,
कि तुम्हारा मुकदमा,
क़ुदरत की अदालत में लिखा जाएगा,
जहाँ मुकम्मल इंसाफ होता है !
नमस्कार दोस्तों !
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