आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं कवयित्री किरण यादव की सामयिक कविता...
कवयित्री किरण यादव |
वक़्त नहीं है और नहीं है फ़ुरसत भी
कैसे दिन दिखलाती है ये क़िस्मत भी
आईने तुझ से ये शर्त्त रही इक दिन
पहचानी जायेगी अपनी सूरत भी
सच को सबके आगे कह देना पल में
हम रखते हैं ख़ुद में इतनी हिम्मत भी
जिसको हम खो बैठे हैं जीवन भर को
फिर है उसको पा लेने की चाहत भी
जिस दिन साँसें मिट जायेगी दुनिया से
मिट जायेगी उस दिन दिल से नफ़रत भी !
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