आइए, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री प्रेमलता ठाकुर जी की वर्त्तमान परिदृश्य पर वैचारिक कविता...
कवयित्री प्रेमलता ठाकुर |
धनाढ्य संस्कृति लाचार है
व्यवस्था ही बदल दी गई
मान प्रतिष्ठा बंधक बन गए
युग अब नींद से जागा है
जगी है सामाजिक चेतनाएं भी
सांस्कृतिक विकृतियों के
विघटन का
नया विधान रचने के लिए
बदल रही है युग की धाराएं
बीहड़ में नवीन पथ का
निर्माण हुआ
जमी हुई काई जड़ता
सड़ी गली जर्जर व्यवस्था
बहा ले जाएगी
नवयुग की ये वेगवती धाराएं
वर्तमान संदर्भ में छिपे
भविष्य के नए सूत्र
नवनिर्माण के संकेत देने लगे
अवसर की प्रतीक्षा सार्थक हुई
दिशाएं प्रकाशित होने लगी
स्पंदित चेतना अभिर्भूत हुई
पाशमुक्त व्यवस्था सक्रिय हो उठा
उम्मीद की नई राह में
हमने कदम बढ़ाएं है
दलदल अब सुख चुका है
ठोस जमीन पर
पगडंडियों के निशान दिखने लगे,
नई ऊंचाईयां हासिल करने के लिए
नए मुकाम की ओर
हम चल पड़े हैं !
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