आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखित प्रेरणादायी रचना, जिसे पढ़कर युवा पीढ़ी कुछ बातें जान सके......
प्रियदर्शिनी इंदिरा 'इंदु' जब शांतिनिकेतन में 'रवीन्द्रनाथ ठाकुर' के सौजन्यत: पढ़ती थी, तब उनकी कक्षा विशेषत: हिंदी के लिए नहीं ही थी। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भी तब वहाँ हिंदी के शिक्षक हुआ करते थे, एकदिन सहेलियों के साथ नोंक-झोंक करती हुई व दौड़ती हुई द्विवेदीजी की कक्षा में वे प्रवेश कर गयी, तब आचार्यश्री हिंदी पढ़ा रहे थे, हिंदी कक्षा में अनुशासनपूर्वक खड़ी की खड़ी रह गयी, जबतक कक्षा समाप्त नहीं हुई, हालांकि इनसे पूर्व और बाद भी वे वहाँ हिंदी कक्षा में सम्मिलित नहीं हुई ! जब हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का निधन हुआ, तब इंदिरा नेहरू गाँधी भारत की प्रधानमंत्री थी और एक कक्षा - घंटी की इस छात्रा ने अपने गुरु के अंतिम यात्रा में कुछ समय के लिए शरीक होकर व उन्हें सादर नमन कर गुरु के उऋण होने की कुछ प्रयास की । यह उद्धरण आज के 'स्टूडेंट' के लिए सीख हो सकती है, जो अपने 'टीचर' को प्रणाम करना छोड़ दिये हैं ! उनकी सरकार ने आचार्यश्री को 'पद्म विभूषण' से सम्मानित भी की थी यानी ऐसे किये जाते हैं, शिक्षकों के सम्मान ।
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