आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, श्रीमान पंकज त्रिवेदी जी की गंभीर कविता...
गज़ब का खेलता है
मेरे साथ
हरदम
हर दिन
हर पल
शायद ज़िंदगी भर साथ निभाएगा
चलो,
कोई तो है न !
ज्यादा मत सोचिए साहब !
और तो कौन होगा ?
अपने रुप बदलकर लौट आता है
बहुरुपिया बनकर
दर्द ही तो है !
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
0 comments:
Post a Comment