'मैसेंजर ऑफ आर्ट' का मासिक स्तम्भ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' अपने प्रथम अंक से ही चर्चित है। फरवरी 2021 जहाँ 'प्रेम' माह के लिए सुख्यात है, तो वहीं अंत आते-आते 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के लिए भी। फरवरी माह में इसबार वसंतोत्सव मनाई गई। संसार भर के सभी ग्रंथों में 'महाभारत' न सिर्फ धार्मिक काव्य है, अपितु महाकाव्य है, जिनसे कई रोचक, पहेलीनुमा और सदाबहार कहानियाँ निःसृत होती रही हैं। ऐसे कथाकारों में एक सुनाम लेखक हैं- श्रीमान सौरभ कुदेशिया। फरवरी 2021 के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में हम लेखक सौरभ जी से रूबरू होते हैं। आइये, सौरभ जी के सुलझे विचारों से हम अवगत होते हैं.....
श्रीमान सौरभ कुदेशिया |
प्र.(1.) आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
इलेक्ट्रोनिक इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस पिलानी, आईआईएम बेंगुलुरु, सिम्बायोसिस पुणे से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के साथ मैं पिछले बीस वर्षों से बतौर पेशेवर लेखक और मैनेजर के तौर पर विभिन्न मल्टीनेशनल कंपनियों से जुड़ा रहा हूँ। अपने कॅरियर में मैंने भारत, चीन, अमेरिका और यूरोप में अनेक बहुराष्ट्रीय टीम और अनगिनत प्रोजेक्ट्स संचालित किए हैं। इसके साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनगिनत विषयों पर कई शोध-पत्र प्रस्तुत करने के साथ मैं अनगिनत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के लिए स्वयंसेवक के तौर पर जुड़ा रहा हूँ। ध्यातव्य है, वर्ष 2019 से मैंने ‘महाभारत आधारित पौराणिक रहस्य गाथा’ के साथ उपन्यास लेखन में कदम रखा है। ये गाथा आपको इतिहास के अनकहे, किन्तु शाश्वत सत्य से साक्षात्कार कराती है। इसकी शुरुआत प्रथम उपन्यास ‘आह्वान’ से रोहन और उसके बेटे निश्चल की दर्दनाक मौत के बाद मिली एक साधारण वसीयत से होती है। वसीयत के डरावने पहलुओं से घबराए रोहन के पिता श्रीमंत रोहन के दोस्त इंस्पेक्टर जयंत से वसीयत की जांच करवाते हैं। जांच के दौरान वसीयत से जुड़े अनेक उलझी और अविश्वसनीय घटनाओं का सामना करते हुए जयंत को यकीन होने लगता है कि रोहन की वसीयत का सच उसकी सोच से कहीं गहरा है। साधारण वसीयत से जुड़ी कड़ियों को जोड़ते हुए सभी इतिहास के उस छुपे हिस्से तक पहुँचते हैं जो प्रत्यक्ष से कही गुना अधिक विस्तृत, डरावना और अकल्पनीय है। सर्वस्व दांव पर लगे इस सफर में उनके अलावा कोई और भी इस गुप्त सत्य के निकट था और उसे अपने रहस्यमय स्वामी की विजय के लिए पानी की तरह पैसा बहाने और लाशें बिछाने में कोई गुरेज नहीं था। रहस्य और रोमांच से भरा यह उपन्यास शृंखला आपको सत्य और मिथक के बीच यात्रा कराते हुए कल्पना के आकाश और यथार्थ के धरातल से जोड़ती है। वैदिक शास्त्रों और समकालीन अनुसंधानों से अलंकृत रहस्य, रोमांच, अपराध, जासूसी, धर्म, अध्यात्म, रणनीति, युद्धनीति, इतिहास, पुराण के जटिल तारों से बुनी घटनाओं की पड़ताल करते हुए आप इस गाथा का हिस्सा बन जाते हैं।
प्र.(2.) आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
लेखन के प्रति बचपन से आकर्षण था। परिपक्वता बढ़ने के साथ मेरे कदम तकनीकी लेखन के क्षेत्र की ओर बढ़े। फिर लेखन से ऐसा जुड़ा कि गत बीस वर्षों से पेशेवर लेखक और मैनेजर के तौर पर विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कई प्रकाशन समूहों से जुड़ा रहने के बाद भी मैं इसके सहज आकर्षण से मुक्त नहीं हो पाया हूँ। विषय तकनीकी हो अथवा काल्पनिक लेखन द्वारा मुझे जो सहज आनंद प्राप्त होता है, उसकी कोई तुलना नहीं है।
प्र.(3.) आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किस तरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
लेखन क्षेत्र के अनगिनत आयाम हैं। मेरी रुचि तर्क आधारित कल्पना के निर्माण में है। ऐसी कल्पना जिसमें सच और कल्पना का भेद नहीं हो। इस लक्ष्य के लिए मुझे महाभारत उत्तम पृष्ठभूमि लगी। मैं महाभारत जैसे दिव्य महान ग्रंथ को संसार की सभी कहानियों का मूल मानता हूँ। इसमें जिस प्रकार अनगिनत जटिल विषयों का समावेश हुआ है वह अपने आप में अनुसंधान का विषय है। इसका हर पात्र अपने आप में सम्पूर्ण होते हुए भी अधूरा महसूस होता है। उसके कर्मों की व्याख्या कर आप उसे समझ भी सकते हैं और उसे एक अजनबी भी मान सकते हैं। आप उसे दोषी भी ठहरा सकते हैं और निर्दोष भी। हर पात्र के बारे में इतना कुछ लिखा जा चुका है, फिर भी लगता है जैसे उनकी कहानी पूरी नहीं हुई है। यह महाभारत की दिव्यता है जो अनेक पीढ़ियों को प्रभावित करती आई है और युगों पश्चात भी जिज्ञासा का विषय है। ऐसे ग्रंथ को किसी भी कहानी का मूल बनाना जितना आसान है, उसके विषयों को संतुलित करके वर्तमान परिपेक्ष में उनका विश्लेषण करना उतना ही कठिन। ऐसा विश्लेषण कल्पना के पंख के साथ एक नई दुनिया का सर्जन करता है। जब पहली बार मैंने इस नई दुनिया से साक्षात्कार किया तो मुझसे रुका नहीं गया और मैं उस कहानी की रचना में जुट गया जो पाठकों को महाभारत और उससे जुड़े सत्य को समझने का अवसर देने के साथ उससे जुड़ी कई भ्रांतियों को दूर करने में मदद करे। पाठकों की प्रतिक्रियाओं से प्रतीत होता है कि मैं इस प्रयास में काफी हद तक सफल भी रहा हूँ।
प्र.(4.) आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
महाभारत जैसे अद्वितीय और महान कथा में मुझे बचपन से रुचि थी। हालांकि उसे पूरी तरह पढ़ने और समझने का अवसर मुझे 2003 के बाद ‘आह्वान’ की कल्पना के दौरान प्राप्त हुआ। उसके बाद विषय-अनुसंधान में काफी लंबा समय बीत गया। कई ऐसे विषय थे जिनके बारे में मेरा ज्ञान शून्य था, पर जो उपन्यास के लिए जरूरी थे। फॉरेंसिक, पुरातत्त्व, इतिहास, वेद, तत्कालीन सामाजिक एवं राजनीतिक समीकरण, पात्रों की पृष्ठभूमि की रिसर्च का काम काफी चुनौती पूर्ण रहा। मैंने करीब 15 वर्ष से अधिक समय विषय-अनुसंधान में व्यतीत किया। महाभारत कथा के अनेक संस्करण, अन्य धार्मिक ग्रंथ और कई विशेषज्ञों के कार्यों ने कहानी को ठोस आधार प्रदान करने में सहयोग दिया है। रिसर्च के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी सभी तथ्यों को एक तर्कसंगत व्याख्या में बदलकर रुचिकर कहानी में बदलना। समकालीन और महाभारत कालीन प्रसंगों के लिए मुख्य और सहायक कथाओं को चुनना और कहानी की लय तोड़े बिना उनमें संबंध स्थापित करने का काम काफी थकाऊ और दबाव भरा था। इसमें त्रुटि होने की काफी संभावना थी। इसमें काफी समय लगा, पर अंततः यह एक सफल प्रयोग सिद्ध हुआ। मूल लेखन 2008 के आसपास शुरू हुआ। ऑफिस के कार्यों के बाद मुझे जो समय मिला अधिकतर लिखने में गया। हालांकि कहानी की जटिलता के कारण लिखने की गति उम्मीद से काफी धीमी रही।
प्र.(5.) अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:- नहीं !
प्र.(6.) आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उन सबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
मेरे लिए लेखन मेरे विचारों को प्रकट करने का अद्भुत माध्यम है, जो जिस रूप में प्रकट हो मुझे आत्मिक संतुष्टि प्रदान करता है। मैं इस क्षेत्र में जहाँ हूँ, जैसा हूँ अपने परिवार के निरंतर सहयोग और आशीर्वाद के बिना नहीं पहुँच सकता था।
प्र.(7.) आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
उपन्यास के रिसर्च और लिखने में 15 वर्षों से अधिक समय लगा है। इस बड़े अंतराल में मुझे अनेक लोगों का विभिन्न स्तरों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग प्राप्त हुआ, लेकिन इस कार्य के मुख्य सहयोगी पूरे देश में मेरे उपन्यासों के पाठक हैं, जिनका प्यार मुझे लगातार लिखने के लिए प्रेरित करता है।
प्र.(8.) आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
सनातन संस्कृति जीव को उसका सत्य खोजने के लिए प्रेरित करती है। यह हमारी विडंबना है कि सहज धरोहर रूप में मिली इस समृद्ध संस्कृति को अपनाकर अपना उद्धार करने के स्थान पर हम उसके गूढ़ अर्थों को समझे बिना उसे नकारने पर तुले हैं। अपनी संस्कृति को त्यागने और उसे नकारने वाली पीढ़ी भौतिक रूप से संपन्न होने पर भी खोखली रहेगी। मेरे उपन्यास शृंखला का उद्देश्य पाठकों को महाभारत के उस सत्य से परिचय कराना हैं जो हर व्यक्ति, हर पीढ़ी, हर सभ्यता का निजी विषय होता हैं। इस सत्य की व्याख्या संभव नहीं हैं, क्योंकि इसकी व्याख्या हमारे सत्य पर आधारित होती है, और अपने सत्य को स्वीकारना इस सृष्टि की सबसे कठिन साधना होती हैं। यदि मेरे कार्यों से मुट्ठी भर लोग भी इस सनातन संस्कृति को समझने का प्रयास करें तो मैं समझूंगा कि मेरा लेखन सफल रहा।
प्र.(9.) भ्रष्टाचार मुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
व्यक्ति और समाज एक-दूसरे के पूरक हैं। समाज में प्रकट हो रही सभी विसंगतियों का मूल व्यक्ति स्वयं है। इसीलिए हमारा प्रयास होना चाहिए कि हमारा प्रत्येक कार्य स्वयं एवं समाज के कल्याणार्थ समर्पित हो। सत्य से साक्षात्कार किया व्यक्ति ही अपनी जिम्मेदारी समझकर सुदृढ़ समाज और राष्ट्र निर्माण में सहयोग कर सकता है। मेरे प्रयास व्यक्ति को उस सत्य से साक्षात्कार कराते हैं जिसे वो भौतिकवाद की चकाचौंध में भूल चुका है और जिनकी विस्मृति समाज में उत्पन्न विसंगतियों का कारण है। मैं चाहता हूँ कि लोग अधिक से अधिक पढ़े। जो पढ़े, अच्छा पढ़े। उससे कुछ सीखकर अपना जीवन बेहतर बनाए। जो सीखे उसे अपने तक सीमित नहीं रखे, बल्कि उसे स्वयं एवं समाज के उत्थान में प्रयोग करें।
प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
आत्मप्रेरित कार्य को सहज आरंभ किया जाता हैं, उसके लिए किसी सहायता की प्रतीक्षा करना उस प्रेरणा का अपमान होता है। उपन्यास लेखन मैंने महाभारत की प्रेरणा से आरंभ किया था। यह प्रेरणा ही मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ सहयोग है।
प्र.(11.) आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:- जी नहीं !
प्र.(12.) कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
महाभारत आधारित पौराणिक रहस्य गाथा के आरंभिक दो खंड मार्केट में उपलब्ध हैं-
(i) आह्वान (महाभारत आधारित पौराणिक रहस्य गाथा खंड- 1)
(ii) स्तुति (महाभारत आधारित पौराणिक रहस्य गाथा खंड- 2)
शेष खंड शीघ्र उपलब्ध होंगे।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
@ Featured Winner, NE8x® LitFest 2020
@ Inspiring Author, NE8x® LitFest 2020
@ Voice of Indian Literature, NE8x® LitFest 2020
@ Author of the Year, NE8x® LitFest 2020
@ Top 100 Debut Indian Authors, Criticspace Literary Journal 2019
प्र.(14.) कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं पिछले बीस वर्षों से बतौर पेशेवर लेखक और मैनेजर के तौर पर विभिन्न मल्टीनेशनल कंपनियों से जुड़ा रहा हूँ। अपने कॅरियर में मैंने भारत, चीन, अमेरिका, और यूरोप में अनेक बहुराष्ट्रीय टीम और अनगिनत प्रोजेक्ट्स संचालित किए हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनगिनत विषयों पर कई शोध-पत्र प्रस्तुत करने के साथ मैं अनगिनत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के लिए स्वयंसेवक के तौर पर जुड़ा रहा हूँ।
आप हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
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