'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के मासिक स्तम्भ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' की प्रकाशन यात्रा बिना थके और बिना रुके अनवरत जारी है। मार्च 2021 की अंतिम सप्ताह रंगोत्सव 'फगुआ पर्व' बीते वर्ष की भाँति ही उदासी लिए रहा, कारण- कोविड 19 का दिशा-निर्देश ! इस माह के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए सुश्री तृष्णा राजर्षि से, जो अल्पायु में ही कवयित्री और लेखिका बन चुकी हैं। अभी तो उनकी पुस्तक-द्वय हिंदी में आई है, किन्तु भविष्य में वे मैथिली, उर्दू और संस्कृत में भी लिखना चाहती हैं। आइये, उनकी जुबानी ही उनके लेखनयात्रा और संक्षिप्त जीवनवृन्त को जानते हैं....
सुश्री तृष्णा राजर्षि |
प्र.(1.) आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
जी, मेरे लेखनकार्य सोशल मीडिया में भी जोरदार उपस्थिति लिए है और मैं सोशल नेटवर्किंग साइटों से निरंतर जुड़ी रही हूँ।
प्र.(2.) आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं ग्रामीण इलाके के एक किसान परिवार से संबंधित हूँ। माँ का देहांत बचपन में ही हो गया था। पिताजी हाईस्कूल के शिक्षक हैं और यह सब उनके मार्गदर्शन से ही हुआ है। अपनी आगे की शिक्षा भी पूरी करना चाहती हूँ।
मैं- तृष्णा राजर्षि, जन्म 2 सितंबर 1996 को श्री विद्यानन्द कर्ण (पिताजी) और स्व. चांदनी आनंद (माता) के यहाँ, तो मेरे 3 भाई और 1 छोटी बहन हैं। मेरी 8 वीं तक की पढ़ाई गाँव के प्राथमिक विद्यालय से पूरी हुई। मैं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से ग्रेजुएट हूँ। फिलहाल गाँव में रह रही हूँ। मैं कविताओं के अतिरिक्त गीत भी लिखती हूँ और भविष्य में मैथिली, उर्दू और संस्कृत में किताबें लिखना चाहती हूँ। मुझे खेल में भी काफी रुचि है। फुटबॉल और कबड्डी के मैचों को लाइव और टीवी पर देखना पसंद करती हूँ।
प्र.(3.) आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
अभी गृहकार्य तथा और कुछ विषयों के लिए शोधकार्य कर रही हूँ और भविष्य में एक प्रतिष्ठित लेखिका बनना चाहती हूँ, फिर लेखन के हर विधाओं में हाथ आजमाना चाहती हूँ। अपनी मातृभाषा मैथिली के विकास को लेकर प्रयास कर रही हूँ।
प्र.(4.) आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
जी, पारिवारिक स्थिति आर्थिक रूप से कमज़ोर थी, जिस कारण तकनीकी शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकी।
प्र.(5.) अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
जी, आर्थिक कमियाँ रही हैं, जिससे उबरने की कोशिश में लगी हूँ।
प्र.(6.) आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
लेखक बनना है, यह सोच नहीं थी। मुझे नियमित किताबें पढ़ने का शौक है। लेखिका बनना सिर्फ संयोग रही। मैं हेल्थ सेक्टर या इतिहास से जुड़ी कार्यों में जाना चाहती थी। घरवालों का काफी सहयोग रहा है। मेरे कार्यों से सब कोई खुश हैं। मैंने अनेक पुराने लेखकों को पढ़ी है, अगर उनकी आंशिक लेखन की झलक भी मेरी कविताओं में मिल सके, तो यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।
प्र.(7.) आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
मुख्य रूप से भाई-बहन, पिताजी और ईश्वर की कृपा कह सकते हैं।
प्र.(8.) आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
मैं साहित्य को अपने मनोभाव से समृद्धशाली बना रही हूँ और साहित्य में अपना योगदान देना चाहती हूँ।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
मैं अपने लेखों के जरिये लोगों को जागरूक बनाना चाहती हूँ और युग को एक नई रोशनी प्रदान करना चाहती हूँ।
प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
जी, जैसा कि मैंने कहा कि लेखन में आना महज संयोग लिए है, इसलिए किसी से कोई सहायता नहीं मिली। पुस्तक प्रकाशन में पिताजी ने सहयोग प्रदान किये।
प्र.(11.) आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
ऐसा कुछ नहीं हुआ।
प्र.(12.) कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
जी, मेरी एक पुस्तक पहले ही प्रकाशित हो चुकी है- 'मेघों की आशा' और दूसरी- 'तपते आकाश का नीला चादर' इधर ही प्रकाशित हुई है। पुन: अन्य दो किताबों पर लेखनकार्य जारी है।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
मैंने कहा न कि लेखक बनना सिर्फ संयोग-मात्र है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पहली पुस्तक प्रकाशित होने के सिर्फ छह माह पहले ही लिखना आरंभ की थी। अबतक कोई पुरस्कार प्राप्त नहीं हुई है।
प्र.(14.) कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
शिक्षा में लोगों की हर सम्भव सहायता करना मेरा लक्ष्य है। खासकर ग्रामीण परिवेश में रह रहे लोगों के लिए, क्योंकि हर सरकार ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों को तकनीकी शिक्षा देने में काफी पीछे हैं। इसपर सरकार को और भी कार्य करने की आवश्यकता है।
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