आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी की लघु प्रेरक समीक्षा.......
'काकी' काकी/चाची होती है, वह न बूढ़ी होती है, न जवान ! अगर ऐसा है तो लोग बूढ़े बाप, बूढ़ी माँ, बूढ़े भाई, बूढ़ी बहन इत्यादि से रिश्ते को संबोधित करने लगेंगे, क्यों ? ....परंतु यह प्रेमचंद साहब का प्रायोगिक शब्द है और इसपर आलोचक बन्धु भी चुप्पी साधे हैं, क्योंकि इस 21वीं सदी के 21वें वर्ष में यदि कोई प्रयोग करने लगे, तो ट्रोल होने लगते हैं ?
जो भी हो, प्रेमचंद जी के प्रयोग को दिलश: प्रणाम !
कहानी 'बूढ़ी काकी' जहाँ वास्तविक जीवन की सच्चाई है, तो वहीं प्रेमचंद की इस कहानी को पढ़कर हिंदी पाठकगण सीखकर भी कुछ सीख नहीं पाए और अपने घर के बुजुर्गों को वृद्धाश्रम भेजते रहे !
काश ! प्रेमचंद कथा में और जान देते, तो वृद्धाश्रम व्यवस्था ही खत्म हो जाता !
नमस्कार दोस्तों !
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