आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर की समीक्षा.......
क्या सचमुच में पंच परमेश्वर होते हैं, पर अतीत से लेकर वर्त्तमानकालीन स्थिति-परिस्थित
जो भी हो, लेकिन हम ऐसे-जैसे फैसले सुनानेवालों को कैसे परमेश्वर कह पाएंगे, फिर तो 'मी लॉर्ड' कहना कितना समीचीन है ? ध्यातव्य है, 'पंच परमेश्वर' प्रेमचंद रचित ऐसी कहानी है, जोकि वास्तविक सच्चाई है यानी रियल कहानी है, किन्तु अब यह वास्तविक सच्चाई पुस्तकीय पृष्ठों तक ही सीमित है, क्योंकि उस काल से लेकर अब भी 'पंच की जुबान से खुदा बोलता है' -ऐसा तकियाकलाम हावी है, पर ऐसी बात नहीं है, भले ही आपवादिक सुकृत्य देखने को अवश्य ही मिल जाएंगे !
काश ! प्रेमचंद इस कहानी में यह भी बता देते कि अलगू ने जुम्मन से 'जिरह' में क्या-क्या सवाल किए, तो कहानी और भी अलंबरदार यानी दमदार बन जाती ! जहाँ यह कथा पशुओं के ऊपर हो रहे दुःखान्त पक्ष को जता रही है, वहीं दो धर्मों को मजबूती से जोड़ती भी है, परन्तु क्या सचमुच में लोग (पाठक) इस कथा से कुछ भी सीख पाएँ हैं या कि यह प्रश्न अब भी प्रतिप्रश्न लिए अब भी अनुत्तरित है ?
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