आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी नमक का दरोगा की लघु प्रेरक समीक्षा.......
प्रेमचंद रचित 'नमक का दारोगा' एक ऐसी कथा है, जिसमें एक ईमानदार व्यक्ति एक रसूखवाले, किन्तु करप्ट व्यक्ति अलोपीदीन के गिरहबान पर हाथ डालने की कोशिश कर बैठता है और नमक के उस दारोगा 'वंशीधर' को अलोपीदीन द्वारा लालच दिया जाता है- रुपये-पैसे, हाबी-जाबी की; लेकिन ईमानदार वंशीधर टस से मस नहीं होता है, न ही इस प्रलोभन में फँसता है ! कथा का सारांश यही है, किन्तु वंशीधर जी अलोपीदीन के किसी अन्य प्रलोभन में जरूर जकड़ जाते हैं !
'नमक का दरोगा' का प्रथम प्रकाशन 1914 में हुई थी, कहानी लिखे जाने के तीन दशक पहले 1882 में ‘इंडिया साल्ट एक्ट’ नामक 'नमक कानून' बन गयी थी, जो कि महात्मा गांधी और अन्य द्वारा किये गए 'दांडी यात्रा' के खत्म होने के कुछ साल बाद ही खत्म हुई, तो फिर कैसे नमक की कालाबाजारी की इतनी बड़ी घटना हुई ? बाघ-बकरी को एक घाट में पानी पिलाने को लेकर ख्वाहिशमंद अंग्रेजकाल में नमक की इतनी बड़ी तस्करी संभव थी क्या ? अगर संभव थी, तो क्या अंग्रेज रसूखदार भारतीयों से डरते थे या उनके हिमायती थे या रसूखदार भारतीय देशविरोधी थे ? क्या दरोगा वंशीधर अंग्रेजी शासक में नौकर थे यानी अंग्रेजों के भक्त ?
जो भी हो, प्रस्तुत कहानी 'नमक का दारोगा' सत्य है भी और नहीं भी, क्योंकि उस काल में किसी व्यक्ति को 40,000 रुपये तक घूस देने की स्थिति भ्रम पैदा करता है, क्योंकि चालीस हजार रुपये उस समय मामूली रकम नहीं थी ! हो सकता है, इसतरह की एकाध घटनाएं हुई हों या यह भी हो सकता लेखक ही मुंशी वंशीधर की भूमिका में हो ? ....परंतु क्या हस्ताक्षर करने के बाद भी ईमानदार वंशीधर अपनी भूमिका ईमानदारवाला रख पाएंगे, जब उनका मालिक अलोपीदीन पूर्व हिमाकत लिए बदलने को तैयार नहीं हो !
नमस्कार दोस्तों !
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