कोविड 19 की दूसरी लहर भयावहता लिए जारी है, ऐसे में विपद स्थिति अब भी कायम है, परंतु आपके 'इनबॉक्स इंटरव्यू' अनथक मासिकरूपेण 'इंटरव्यू' जारी करते आए हैं। आपदा को अवसर में ढाल कर अपनी साहित्यिक गतिविधियों को जारी रखी हैं- कवयित्री और लेखिका श्रीमती सुषमा व्यास राजनिधि जी ! आइये, 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के पाठकगण 'इनबॉक्स इंटरव्यू' से रूबरू होते हैं---
लेखिका सुषमा व्यास राजनिधि |
प्र.(1.)आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
परिचय---
●नाम : सुषमा व्यास 'राजनिधि' [लेखिका, कवयित्री, कथालेखिका, मंच संचालिका, सभी विधा में लेखन यानी शब्द नहीं भाव गढ़ती हूँ।]
●जन्म : 29 अप्रैल 1966 इंदौर, मध्यप्रदेश
●शिक्षा : हिन्दी साहित्य में एम. ए. (मेरिट में स्थान प्राप्त)
●संप्रति : उपाध्यक्ष, विचारप्रवाह साहित्य मंच ।
@ देश के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेखन, यथा-- वीणा, अनुगुंजन, उर्वशी, शुभ तारिका, आलोकपर्व, साहित्य अर्पण (दुबई),साहित्य सांदीपनी, प्रयास (कनाडा), स्वर्णवाणी, सदीनामा कलकत्ता ,पवनपुत्र, राईजिंग स्टेप, भारत भास्कर, नवीन कदम, शब्दाहुति जैसी अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं में कविता, कहानियां, आलेख, व्यंग्य प्रकाशित।
@ पत्रिकाओं में हर माह नियमित आध्यात्मिक (धार्मिक) लेख प्रकाशित।
@ प्रदेशवार्ता ई-पोर्टल में सफल नारी पर साक्षात्कार प्रेषित।
@ अब तक सफलतम 10 साक्षात्कार गूगल पर।
@अनेक ई-पोर्टल, यथा- हिन्दी लेखनी डॉट कॉम, मातृभाषा हिंदी, शुभसंकल्प डॉट कॉम, मैसेंजर आफ आर्ट, प्रदेशवार्ता, प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर, शब्द प्रवाह, अखंडनामा,अतुल्य हिन्दुस्तान इत्यादि में समीक्षा, आलेख , कविता, कहानियां प्रकाशित।
@ ऑडियो और वीडियो के जरिये भी कहानी , कविता का प्रसारण। प्रसिद्ध आर जे सिद्धार्थ द्वारा कहानी पठन।
@ इंदौर लेखिका संघ की अंगदान और राष्ट्रभक्ति पत्रिका में भी प्रकाशन।
@ शुभसंकल्प मंच के साझा संग्रह में भी लघुकथा और कविता प्रकाशित।
@ इंदौर के अभिनव संस्था में सतत् 13 घंटे चलने वाले कार्यक्रम में कहानी पाठ।
@ राष्ट्रीय पुस्तक मेले में काव्यपाठ में सहभागिता।
@ इंदौर लेखिका संघ की सांझा लघुकथा संग्रह में प्रकाशन।
@ विचारप्रवाह के सांझा लघुकथा संग्रह में प्रकाशित
@ 251 आलेख व्यंग्य संग्रह में प्रकाशन।
@ अब तक 75 व्यंग्य संग्रह में प्रकाशन।
@ प्रसिद्ध कहानीकार के साक्षात्कार संग्रह में प्रकाशन।
@ विश्वमैत्री मंच के लघुकथा संग्रह में प्रकाशन।
प्र.(2.)आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं एक गृहिणी हूँ। परिवार में सब कोई उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। हिन्दी साहित्य में एम.ए. हूँ, परन्तु शादी के बाद कोई सर्विस नहीं की तथा अपने बड़े से परिवार और दोनों बच्चियों को अपना सारा समय दिया। दोनों बेटियां सफल व्यवसायी हैं। बड़ी बेटी की शादी के बाद महसूस हुई कि पीछे छूट गयी जिंदगी का सिरा पकड़ लिया जाए और खुद को खुशी दी जाए। जो हर नारी को करनी चाहिए। समाज में भी अपना छोटा सा योगदान होना चाहिए, यह बात हमेशा मेरे मन में रही। उसी समय मेरे पास मोबाइल आई और फेसबुक, डिजिटल पोर्टल आदि पर मेरी कविता, कहानियां प्रसिद्ध होने लगी। परिवार का प्रोत्साहन मिला, पति ने बढ़ावा दिया। मित्रो ने बहुत प्रोत्साहित किया। डॉ. अनिल भदौरिया बालमित्र (जो स्वयं भी एक लेखक है) ने गाइड किया। प्रसिद्ध कहानीकार स्वाति तिवारी जी ने पत्र-पत्रिकाओं में लिखने को प्रेरित किया और राह बनती गयी, कारवां साथ चलता गया। इस प्रकार मैं एक साहित्यकार बन पाई।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
साहित्य हमेशा से ही समाज का दर्पण रहा है। समाज की हर अच्छाई और बुराई का विश्लेषणात्मक अध्ययन हर पाठक लेख, कविता, कहानी के माध्यम से कर सकते हैं। समाज की विसंगतियों को उजागर करने में एक साहित्यकार का बहुत बड़ा हाथ होता है। समाज के युवाओं को सही गलत की दिशा से अवगत कराना साहित्य का ही काम है। समाज में अच्छे और सुविचारों का आदान-प्रदान लेखन और पठन से ही हो सकता है। अतः साहित्य देश और समाज की महती आवश्यकता है। इससे एक उन्नत समाज का निर्माण होता है और ऊंचे विचारों की श्रृंखला देश का उज्ज्वल भविष्य होती है।
प्र.(4.)आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
साहित्य का क्षेत्र बहुत ही सभ्य और शांत तथा संतुष्टि देने वाला मार्ग है। अच्छे विचारों का आदान-प्रदान यहां हमेशा होता रहा है। गुरू शिष्य की पवित्र परम्परा यहां की विशेषता रही है। अतः ऐसी कोई बड़ी रूकावट यहां पर नहीं आई। सीखने को बहुत मिला। लेखन की अनेक बारीकियों से परिचय हुआ। हाँ, कभी-कभी अपने अहम में जीने वाले लेखकों से आमना-सामना भी हुआ। लेखन में अनेक कमियां भी निकाली गई। 'आपको लिखना नहीं आता' प्रारम्भ में यह भी सुना, परन्तु मेरा मानना है हमारा और हमारे लेखन का समीक्षात्मक अध्ययन पाठक ही बेहतर कर सकते हैं। वे हमारे सच्चे आलोचक होते है। यदि उनको हमारा लेखन पसंद है, तो हम बेहतर लेखन कर रहे है। अत: मैं हमेशा कोशिश करती हूँ, उत्तम से भी उत्तम लेखन से पाठकों का दिल जीत सकूं और मैं उसमें सफल भी रही हूँ।
प्र.(5.)अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
साहित्य के क्षेत्र में आर्थिक धोखाधड़ी का शिकार तो नहीं होना पड़ा, परन्तु हमेशा ही एक चुभन जरूर रही है कि बहुत सी संस्थाएं इस क्षेत्र में पैसे लेकर रचना प्रकाशित करती है, जो एक लेखक का अपमान है। लेखक भी खुशी-खुशी राशि देते हैं चाहे राशि कम ही हो अपनी ही कृति के लिए हम क्यों पैसे दें यह सरस्वती का अपमान है ? साथ ही कुछ संस्थाएं पैसे लेकर सम्मान देते हैं जो सर्वथा अनुचित है। एक लेखक का सम्मान तभी है, जब पाठक उन्हें पढ़े और सराहे उससे बड़ा कोई सम्मान नहीं। जब आपका लेखन पसंद किया जाने लगेगा तो, आप स्वयं ही प्रकाशित भी होंगे और सम्मानित भी होंगे !
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
समाज को स्वस्थ विचारों का आदान-प्रदान करना हर नागरिक की महती जिम्मेदारी है। मुझे लेखन ही आता है और इसी के माध्यम से मैं समाज की विसंगतियों, बुराईयों को हटाना चाहती हूँ। युवाओं को हिन्दी भाषा से जोड़ना चाहती हूँ। मेरा पूरा परिवार मेरे साथ है। मुझे हमेशा लेखन के लिए मेरी बेटियों, दामाद और पति ने प्रोत्साहित किया है, बल्कि सहयोग भी किया और हमेशा मुझ पर बहुत गर्व रहा है उन्हें। मेरी हर उपलब्धि पर मेरा परिवार और मित्र हमेशा गर्व करते रहे हैं और सराहते रहे हैं।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
परिवार से इस साहित्यिक क्षेत्र में आने में प्रेरित किया है- मेरे प्रोफेसर पति अरविंद व्यास जी ने, दोनों बेटियों कल्याणी, देवयानी व्यास, दामाद- मयंक, प्रसिद्ध कहानीकार डॉ. स्वाति तिवारी जी, लेखक अनिल भदौरिया जी ने, प्रसिद्ध लेखिका नाटककार सुषमा दुबे, पत्रकार और मीडिया पल्टन की संपादक संध्याराय चौधरी और इंदौर लेखिका संघ की अनेक सखियां। साथ ही व्यंग्य में आगे बढ़ाया- एन बी टी अध्यक्ष लालित्य ललित जी ने, रणविजय राव संसद पत्रिका के संपादक ने और उनसे जुड़े सभी साथियों ने। इससे मुझे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
साहित्य का जुड़ाव समाज से है। अनेक लेखकों और विचारकों ने हमारे देश भारत को लेखन के माध्यम से देश को नई दिशा दी है और इसी से प्रभावित होकर मैंने भी लेखन कार्यक्षेत्र को मन से, आत्मा से समर्पण दिया है। जब आप कोई कार्य सद्विचारों और मन से करते हैं तो वह मार्ग आनन्दायी और सुगम स्वत: ही हो जाता है। मेरी अनेक कहानियां , कविताएं भारतीय संस्कृति से ही जुड़ी हुई है। साहित्य औषधि का कार्य भी करता है। अच्छी औषधि हमेशा स्वस्थ बनाती है। मेरे लेख भी आध्यात्म और भारतीय परंपरा और अच्छे विचारों से जुड़े रहे हैं। नारी सशक्तिकरण, कन्या के सशक्त विचार, शिक्षा और स्वास्थय पर हमेशा मैंने अपनी कलम को सशक्त धार दी है और समाज की बुराई, विसंगति और अंधविश्वास के विरैध में अपनी पैनी कलम चलाई है।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
निश्चित रूप से सबसे सशक्त अस्त्र है लेखन। एक समाज को, देश को अगर भ्रष्टाचार मुक्त रखना है तो लेखक से बढकर सिपाही नहीं ! लेखक देश का बड़ा सेवक है। व्यंग्य हो या लेख या लघुकथा या कहानी वो उसके माध्यम से भ्रष्टाचारियों की पोल खोलता ही है तथा देश को एक स्वस्थ समाज देने का संकल्प करता है। मेरे अनेक व्यंग्य मैंने इसी पर लिखे हैं। लेखक की लेखनी में हृदय से उमड़ी क्रांति होती है तभी तो चाहे लोकमान्य तिलक हो या प्रेमचंद हो सबने समाज को प्रेम और पुख के साथ साथ देश की पीड़ा, दु:ख, अन्याय और अत्याचार से भी परिचित कराया। लेखन सत्य से परिचित कराता है।
प्र.(10.)इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
आर्थिक रूप से छोटे-छोटे सहयोग तो हमेशा मिलते रहे, परन्तु मेरे विचार से लेखक को उसके लेखन को आजीविका के रूप में प्राप्त हो तभी लेखक को उसका सही सम्मान प्राप्त होगा। वैसे मेरी कहानी संग्रह, कविता संग्रह, उपन्यास आने वाला है और मुझे विश्वास है कि प्रकाशक मुझे इसमें आर्थिक सहयोग भी करेंगे।
प्र.(11.)आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
किस कार्यक्षेत्र में दोष और विसंगतियां नहीं ? अगर हर क्षेत्र में अच्छाई और बुराई और दोष भी है। हमें तो इन सबसे जुझते हुए , हौंसले के साथ आगे बढ़ना आना है। मुझे कोई केस वगैरा तो कभी नहीं करना पड़ा, परन्तु हां मेरी कविताएं और लघुकथा मेरे बिना नाम के सोशल मीडिया पर जरूर वायरल होती रही है और मैंने बार-बार सबको सूचित किया कि मेरी रचना है कृपया बिना नाम के नहीं, नाम से वायरल करें। शब्दों को चुराना बेहद दु:ख देता है। साहित्य जैसे क्षेत्र में भी चोरी होती रहती है।
प्र.(12.)कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
देश के अनेक पत्र पत्रिकाओं में लेखन-- वीणा, अनुगुंजन , उर्वशी, शुभ तारिका, आलोकपर्व, साहित्य अर्पण (दुबई),साहित्य सांदीपनी, प्रयास (कनाड़ा), स्वर्णवाणी, सदीनामा कलकत्ता ,पवनपुत्र, राईजिंग स्टेप, भारत भास्कर, नवीन कदम, शब्दाहुति जैसी अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं में कविता, कहानियां, आलेख, व्यंग्य प्रकाशित। साथ ही उत्तर नं. 1 पर उल्लेख की जा चुकी है।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:- विशेष सम्मान--
@ साहित्यिक संस्थाओं में कहानी पाठ, कविता पाठ और संचालन का अनुभव।
@ इंदौर लिटरेचर फेस्टीवल में माॅड़रेटर ( संचालन) आमंत्रित।
@ कला संस्थाओं और स्कूलों में विशेष अतिथि के रूप में सम्मानित।
@ दिल्ली की संस्था मुक्तांगन में काव्यपाठ के लिये आमंत्रित
@ इंदौर लिटरेचर फेस्टीवल में परिचर्चा के लिए हर साल आमंत्रित।
पुरस्कार:-
@ दिल्ली की मुक्तागन संस्था में पूरे देश में आलेख पर प्रथम स्थान।
@ इंदौर के थैलिसिमिया ग्रुप में कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान।
@ इंदौर लेखिका संघ में लघुकथा में प्रथम स्थान।
@ विश्व रचनाकार मंच पर महादेवी वर्मा पुरस्कार से सम्मानित।
@ नवीनकदम छत्तीसगढ समाचारपत्र में सम्मानित।
@ लघुकथा के लिए क्षितिज संस्था में सम्मानित।
@ शुभसंकल्प द्वारा अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन में संचालन के लिए सम्मानित।
@ स्टोरी मिरर में लघुकथाओ के लिए सम्मानित।
@ शब्दाहुति पत्रिका द्वारा सम्मानित।
@ भारत उत्थान न्यास मंच द्वारा सम्मानित सहित और भी अनेक सम्मान।
प्र.(14.)कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
इस कार्यक्षेत्र के इतर मैं एक गृहिणी ही बनी रहना चाहूंगी। अच्छे विचार और स्वस्थ समाज में एक गृहिणी का बहुत बड़ा योगदान होता है। नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था- "एक मां सौ शिक्षकों के बराबर होती है।" साथ ही एक स्त्री से समाज की संस्कृति, परम्परा और रहन-सहन का पालन पोषण होता है। उसी के कारण ये समाज फलता फूलता है। अपने राष्ट्र से और खासतौर से युवा वर्ग और आने वाली पीढियों से कहना चाहूंगी कि हमारी हिन्दी सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषा है। हिन्दी पढ़िए, सीखें, बोले और इसका मान बढ़ाए। अनेक महान विद्वानों और विचारकों ने हिन्दी को अपनाया। हमारे संस्कारों में हिन्दी है। अतः दूसरी भाषा भले ही पढ़िए, परन्तु हिन्दी को जिओ, पढ़ो, सुनो और बोलो।
आप यूँ ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
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