प्रेमचंद रचित 'रामलीला' काल्पनिक जीवन की वास्तविक सच्चाई है, किन्तु यह सच्चाई उस समय गश खा जाती है, जब कथासम्राट दुनिया की विशालता को एक ही वस्तुस्थिति में न सिर्फ 'केंद्रित', अपितु एकाकार मान बैठते हैं ! वे यह नहीं उद्बोधित कर पाते हैं कि हर काल में 'लाइफ स्टाइल' में परिवर्त्तन लाजिमी है !
जो भी हो, प्रस्तुत कथा व्यंग्य तो करती ही है और साथ ही सामाजिक सत्य को उजागर भी करती है ! ध्यातव्य है, यह कथा पौराणिक मान्यताओं से परे की वस्तुस्थिति लिए है।
नमस्कार दोस्तों !
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