आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी शूद्रा की शानदार समीक्षा.......
प्रेमचंद की कहानी 'शूद्रा' !
क्या संज्ञा (जीवन) भूतकाल हो सकती है ? क्या शूद्र बिरादरी के लोगों को छोटे या निम्न कहनेवालों का प्रतिकार तब क्यों नहीं किया गया ? अगर संबंधित कथापात्रों द्वारा कोई कार्य नहीं किये जाते हैं, तो उनके भोजन-पानी का जुगाड़ कैसे होते होंगे ?
ऐसा क्यों है कि महिलाओं के लिए हमेशा ही कली व फूल का उपयोग किया जाता है ? क्या ऐसे शब्दों का प्रयोग हम पुरुषों के लिए क्यों नहीं कर सकते ? क्या कुछ महीनों में किसी अपरिचित भाषा पर बेहतरीन पकड़ हो सकती है ?
इतना ही नहीं, पति को देवता या परमेश्वर मानना कहाँ तक उचित है ? वहीं जब पति संकीर्ण मानसिकता के स्वामी निकल जाए, तब ! वह ब्राह्मण गौरा को कैसे जानते हैं ? वे समुद्र पार कर किस देश को गए या यात्रा किए ? जिसे अन्य देशों की भाषा नहीं आती हो, फिर वह इतनी अच्छा तरह से बातें कैसे कर लेते हैं ? क्या कोई बीमार तैराक अच्छी तैराकी कर सकता है भला ?
जो भी हो, प्रेमचंद रचित कथा 'शूद्रा' मर्मस्पर्शी प्रेम कहानी है, किन्तु इस कथा का शीर्षक से कहानी का कोई मेल क्यों नहीं है ? ....और इसतरह के शीर्षक से लेखक की मर्यादा तार-तार तो नहीं हो रही !
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