प्रेमचंद की मर्मभेदी कथा 'स्त्री और पुरुष' !
क्या सुंदरता देह या चेहरे से झलकती है ? क्या रूपवती स्त्री गुणवती नहीं हो सकती या गुणवती स्त्री रूपवती नहीं हो सकती ? क्या सिर्फ सुंदरता महिलाओं में ही देखी जानी चाहिए, पुरुषों में नहीं ? क्या महिलाओं को शृंगार के अतिरिक्त कोई अन्य चीज भाता नहीं ? क्या महिलाएं हमेशा ही सेवा हेतु तत्पर रहती हैं ?
जो भी हो, प्रेमचंद रचित प्रस्तुत कहानी 'स्त्री और पुरूष' मर्मस्पर्शी तो है, किन्तु यह कथा और भी सत्य व शाश्वती सार्थक हो जाती, जब अगर इस कथा में 'हृदय परिवर्तन' नहीं होते !
क्या सुंदरता देह या चेहरे से झलकती है ? क्या रूपवती स्त्री गुणवती नहीं हो सकती या गुणवती स्त्री रूपवती नहीं हो सकती ? क्या सिर्फ सुंदरता महिलाओं में ही देखी जानी चाहिए, पुरुषों में नहीं ? क्या महिलाओं को शृंगार के अतिरिक्त कोई अन्य चीज भाता नहीं ? क्या महिलाएं हमेशा ही सेवा हेतु तत्पर रहती हैं ?
जो भी हो, प्रेमचंद रचित प्रस्तुत कहानी 'स्त्री और पुरूष' मर्मस्पर्शी तो है, किन्तु यह कथा और भी सत्य व शाश्वती सार्थक हो जाती, जब अगर इस कथा में 'हृदय परिवर्तन' नहीं होते !
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