जून 2021 यानी जेठ-आषाढ़ २०७८ यानी भीषण गर्मी, मानसूनी वर्षा और सदाबहार सावनी फुहारें..... 2019-20 के महामारी का आतंक अभी मुँह बाये ही है कि 2021 में बिल्कुल नए-नए महामारियों के आगाज़ हो चुके हैं, किन्तु इसके संरक्षण के दृढ़ और दीर्घ उपायों को अमल में लाते हुए हम अपने मूल स्वभावों के प्रति विरमित नहीं हों ! तभी तो 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' ने मूल स्वभाव को बरकरार रखते हुए अपने मासिक स्तम्भ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' को जारी रखे हुए हैं। जून 2021 हेतु जिस शख़्सियत की 'इनबॉक्स इंटरव्यू' यहाँ प्रस्तुत है, उसने तो सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में मील का पत्थर गाड़ चुकी हैं। अपना मूल नाम और उपनाम तक बदल चुकी हैं। वे न सिर्फ शोषितों, वंचितों वर्ग के हिमायती हैं, अपितु नारीवादी संवेदनाओं से लबरेज़ होकर सेक्सवर्कर्स, किन्नर बंधुओं को समाज के मुख्य धाराओं से जोड़ चुकी हैं। आइये, हम 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के इस अंक में सोशल एक्टिविस्ट सुश्री आकृति विज्ञा 'अर्पण' के बारे में जानते हैं, उन्हीं के श्रीमुख से----
सुश्री आकृति विज्ञा 'अर्पण' |
प्र.(1.)आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
बात कहाँ से शुरू करूं ? बचपन से सब कुछ यूँ ही होता चला गया। 'डोम' कम्यूनिटी के लिये एजुकेशन की स्थिति समझने के दौरान मैने अपना नाम अर्पण दूबे से आकृति विज्ञा कर लिया, यह पहला अहम बदलाव था। मैं तब आठवीं दर्जे की छात्रा थी, फिर समय और परिस्थितियों ने समाज के अलग-अलग रूप दिखाए, जहाँ से मेरी कवितायें जन्मीं और साहित्यिक सफर अलग मोड़ पर ले आया। मंच संचालन के साथ घूमने को मिलता रहा तो और ठीक से समाज देखने को मिला और यह कारवां जारी है।
प्र.(2.)आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं एक गांव के मध्यम वर्ग परिवार की लड़की हूँ। समझ नहीं आता कि यह उपलब्धि है या विडंबना कि हमें आज भी शिक्षा, समाज को लेकर इतना सोचना पड़ता है। सब परिस्थितियों की देन है। परिवार का समर्थन और मित्रो का संबल है।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
लोग कई तरह से लाभान्वित हो रहे हैं। हम वर्तमान की आवश्यकताओं के लिये सजग रहते हैं, जैसे- शिक्षा, प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक वर्कशाप, सीधा संवाद, प्रतियोगिताओं का आयोजन कराते हुये हमने सकारात्मकता और परिवर्तन को महसूस किया है। जब कविताओं में समाज की विडंबना पढ़ती हूँ, तो लोग बाद में मिलते हैं और अपनी कमियां स्वीकारते हैं।
विज्ञान महोत्सवों में संचालन के दौरान फ्री स्लाट एक्सपेरिमेंट में जब गांव के बच्चों को या डरे सहमें बच्चों को प्रेरित करती हूँ, तो प्रत्यक्ष परिवर्तन महसूस होता है। आध्यात्मिक संवाद के दौरान लोगों के हृदय परिवर्तन का असर उनके जीवन पर देखने को मिला। तमाम वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाएं आज वह पेशा छोड़कर शिक्षण कार्य कर रहीं, किन्नर बंधु हमारे कार्यक्रमों का हिस्सा ही नहीं, अपितु सहयोगी भी हैं। आपदाओं के दौरान बढ़े हाथ ज़िंदगियां बदलते हैं और बहुत से लोग प्रेरित होकर आगे आते हैं। जब भोजपुरी में लोकगीत गाते हुये बॉटनी के लेक्चर्स देती थी, तो युवाओं को लगा कि भोजपुरी सुंदर है, यह गौरव है और अगली बार वो भी भोजपुरी बोलते मिले। यही सब तो जीवन की उपलब्धि है।
प्र.(4.)आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
शुरू में बहुत लोग अजीब व्यवहार करते थे, यहाँ तक कि दुर्व्यवहार भी। कुछ लोग चुपके-चुपके शरीर को कहीं भी छूने का प्रयास करते थे, लेकिन मुखर होने के कारण मैं चुप नहीं रहती थी इसलिए वो आगे का सोच ही नहीं पाते थे। कुछ लोगों ने बहुत चारित्रिक भ्रांतियां भी फैलायीं, लेकिन समय ने सब स्पष्ट किया, शहर ने बहुत स्नेह दिया और विश्वास किया। गांवों ने खुद पर अधिकार दिया। जब इंटरनेशनल सेमिनार में भोजपुरी बोलते हुये खड़ी होती थी, तो अपने लोगों ने सराहा वहीं बहुत लोग नीचा दिखाते थे, लेकिन मेहनत हर स्थिति को बदलती है। अस्मिता से जुड़ी चुनौतियां हमेशा बड़ी रहीं, लेकिन जो अच्छे लोग थे उनके स्नेह ने मनोबल हमेशा ऊँचा रखा।
प्र.(5.)अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
आर्थिक परेशानियों का सामना करना ही पड़ा, लेकिन पढ़ने में ठीक होने के कारण पढ़ाती भी ठीक हूँ, डिपेंडेंसी जैसा कुछ नहीं रहा। प्रोफेशनल कार्यक्रम में भी लोग संचालन के पैसे लेकर भाग जाते थे, जबकि मैं अस्सी प्रतिशत से अधिक चैरिटी ही करती थी, फिर भी लोग इस तरह के मिले। चूंकि बारह वर्ष की उम्र से फिल्ड में हूँ और यह सफर पढ़ाई के साथ रहा, तो अपने खर्चे बहुत नहीं रहे। पढ़ाई लगभग हमेशा सामान्य और सस्ते संस्थानों से की। अपना खर्चा मास्टर्स के दिनों से उठाने लगी और चुनौतियों के दिन तो अब शुरू होंगे। अब परिक्षाओं का दौर है, देखते हैं क्या होता है ? अब शोधार्थी जीवन प्रारंभ होगा। आर्थिक चुनौतियों से निपटने हेतु अपने कंटेंट पर काम, सही अवसर पर ध्यान देना और अपने हक के लिये मुखर होना यही उपाय हैं।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
मेरा क्षेत्र एकेडमिया ही होगा, एक संवेदनशील व्यक्ति को परिस्थितियों ने जैसा गढ़ा, वैसा वह बना। मैं कभी बंधी नहीं। परिवार के लोग खुश रहते हैं, क्योंकि एकेडमिया में प्रदर्शन हमेशा उन्हे संतुष्ट रखता है। मेरा परिवार मेरे हर गतिविधि के बारे में जानता है। कभी-कभी घर के काम और बाहर में तालमेल में दिक्कतें तनाव पैदा करती हैं तो सोच समझ कर और मिल बांटकर हल हो जाता है, लेकिन यह बहुत आसान नहीं होता है- बहुत धैर्य, संयम और मेहनत चाहिए होती है।
याद आता है कोविड वालंटियरिंग के चौबीस घंटे अविलेबल सेल का हिस्सा होने के नाते दिन-रात वालंटियरिंग होती थी तो घर का काम समय से नहीं कर पाने के कारण घर पर बहुत तनाव रहा, लेकिन फिर धैर्य से सब हल हुआ। कुछ अपनी मेहनत बढ़ी और कुछ परिवार ने समझा। आगे समय बतायेगा देखते हैं क्या होता है ?
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
बहुत से लोग हैं। हमने हर परिवर्त्तन को परिवार और रिश्तेदारों में प्रयोग करके किया है। शुरू में बहुत चुनौती थी, लेकिन अब सब काफी हद तक समझते हैं। गुरुजनों का सहयोग, मित्रों का सहयोग और बहुत से लोगों का साथ है किसका नाम लूं किसका छोड़ूं कहना मुश्किल है। कदम-कदम पर अच्छे लोग मिलते हैं, जो हमारे सहयोगी रहते हैं।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
मैं इस अद्वितीय विराट संस्कृति का अखंड हिस्सा हूँ, यह बात मेरे अभ्यास में है। यह मेरे जीवन का मेरे जीवन शैली का हिस्सा है। इस बारे में कहने जैसा कुछ नहीं है आप आयें देखें स्वत: समझ जायेंगे।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
यह तो नहीं पता, लेकिन जितना हो पायेगा उतनी बेहतरी का संकल्प खुद से था, है और हमेशा रहेगा। समाज के प्रति अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी का पूरा बोध है और उसमें कोई कोताही नहीं होगा, मुस्कराहटें बनाये रखने में अपनी मुस्कुराहटें जोड़ते-जोड़ते ज़िंदगी कट जाय और क्या चाहिये भला ? परिवर्तन और परिणाम समय तय करेगा और तय करता रहा है।
प्र.(10.)इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
आर्थिक मुरब्बा शब्द पहली बार सुना है। आर्थिक लफड़ों में कम पड़ती हूँ । जब पड़ी हूँ तो मुसीबतें आयी हैं, लेकिन सफलता भी मिली है। कुछ बालिकाओं के विवाह और कुछ लोगों के इलाज और कुछ लोगों की पढ़ाई के लिये यह स्थिति आयी, लेकिन आर्थिक मामले हमेशा मैंने अपने से अधिक अनुभवी लोगों के संज्ञान में दिये, उनके सानिध्य में रही। धन को हाथ नहीं लगाया। प्रोफेशनल ऐंकरिंग के फीस का अलग दायरा था, कभी इन्हें आपस में मिलने नहीं दिया।
प्र.(11.)आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
मैं सतर्क रहती हूँ, विसंगतियों से पाला नहीं पड़ा। आर्थिक विसंगतियों का संबंध प्रोफेशनल लाइफ से रहा, जिसे मैंने हमेशा इससे अलग रखा, बाकी हमेशा सलाह-मशविरे मजबूती देते हैं।
प्र.(12.)कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
आर्टिकल छपते रहते हैं, कविताएं छपती रहती हैं। प्रकाशन को लेकर सोचने का समय ही नहीं मिला । आगे सोचा जायेगा कि यह हो भी सकता है और शायद नहीं भी ! समय पर निर्भर करेगा।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
सम्मान तो लोगों का स्नेह है। टीवी, रेडियो और अखबारों में आने व सुने जाने व देखे जाने की खुशी से ज्यादा खुशी यह होती है कि मेरे गाँव का दखिन टोला और पूरब टोला एक साथ सुनता-देखता है और उन लोगों के जुड़ पाने का माध्यम मैं भी बन पाती हूँ।
पुरस्कारों के नाम इतने भयावह हैं कि हम डर जाते हैं, जैसे- सुपरवूमन, इमर्जिंग स्टार, सोशल वारियर, यूथ आइकन इत्यादि। असल में पुरस्कारों में बहुत दिलचस्पी रही नहीं तो कभी ध्यान नहीं दिया। आजकल के पुरस्कारों का मामला भी बहुत अजीब है, इस कारण दूर रहकर ख़ुश हूँ। लोग मुस्कुराते रहे कि इस नियति से यही पुरस्कार अपेक्षित है और नियति ने ख़ूब मौके दिये हैं, आशा है देती रहेगी। वैकल्पिक चिकित्सा में डॉक्टरेट इस साल की सुंदर और ऐसी उपलब्धि रही, जिसने प्रकृति के और करीब कर दिया, यह मित्रो और शुभचिंतकों की देन है।
प्र.(14.)कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
कवितायें, मंच सचालन, कार्यक्रम संचालन, इंटरव्यू कंडक्शन, साइंस क्लासेज में अध्यापन और लोककला, साहित्य व विज्ञान कार्यक्रम प्रबंधन (संचालन विशेषज्ञता के साथ)। वहीं संदेश की बात करें तो पाठकों से यही कहना है-
'अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी समाज के प्रति, प्रकृति के प्रति और समय के प्रति यह' एक ऐसा मूल कर्तव्य है जिसका संबंध स्वयं के बोध से है। अपने आप को जानें और अपना योगदान भी सुनिश्चित करें। जो कर रहे हैं, उसे ईमानदारी से करें और बस यह ध्यान में रहे कि कहीं आप किसी के नुकसान के हिस्सेदार तो नहीं बन रहे ? बाकी प्रेम ही बचेगा, इस दुनिया से और प्रकृति से स्वयं से प्रेम करें। आशान्वित रहें, मगन रहें और बेहतरी के लिये लगे रहें। क्षेत्र जो भी हो मुस्कुराते रहें। मुट्ठी भर मुस्कुराहट 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' की टीम और सभी पाठकों के लिए.... सादर।
आप यूँ ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
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