आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट की टटका कड़ी में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी वासना की कड़ियाँ की लघु समीक्षा.......
प्रेमचंद की कहानी 'वासना की कड़ियाँ' !
प्रेम की अंतिम परिणति वासना है क्या ? इसे अन्यथा नहीं लेंगे कि शादी 'वासना' तक पाने का रजिस्ट्रेशन या षड्यंत्र है क्या ? क्या शादी को दैहिक सुख या वासना तक पाने के परिप्रेक्ष्य में 'संस्कार' नाम दे दिया गया है ? अन्यथा प्रस्तुत कथालोक में 'वासना' का अर्थ सिर्फ कामोत्तजना भर है क्या ? वासना किसी अन्य चीजों के लिए गृहीत क्यों नहीं की जा सकती ?
प्रेम को प्रेम ही रखा जाय, इसे वासना तक नहीं पहुँचाया जाय ! अगर ऐसा नहीं हो सकता है, तो इसतरह के 'प्रेम' किस काम के ? सनद रहे, प्रेम का तारतम्य त्याग से है, देह पाने से नहीं !
क्या शहजादी (शाहजादी !) हमेशा सुंदर ही होती है, तो फिर भारतीय 'रंगशास्त्र' से कुछ और ही निःसृत होते हैं ? जब शहजादी के पास दो बंदियाँ होती थी, तो उन्हें कथापात्र कासिम का आने का भनक क्यों नहीं लग सका ?
जो भी हो, प्रेमचंद रचित 'वासना की कड़ियाँ' सत्य और असत्य के बीच झूलती कहानी है, जो मानव की अर्द्धमानवीय सत्यता को प्रदर्शित करती है !
नमस्कार दोस्तों !
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