प्रेमचंद की कहानी 'नबी का नीति-निर्वाह' !
क्या व्यापारी बन्धु हर जगह स्वतंत्र रूप से व्यवसायजन्य सत्य बोल वचन कर सकते हैं ? क्या किसी भी आस्था से पेट की क्षुद्धा यानी भूख मिट सकती है ?
क्या आस्था रखने के लिए नियम अथवा शर्तें मानना जरूरी है, तो फिर यह कैसे स्वच्छंदता के प्रतीकार्थ होंगे ? क्या प्रस्तुत कथानुसार कर्तव्य की परिभाषा जो अंकित है, वही सही है ?
जो भी हो, प्रेमचंद रचित कथा 'नबी का नीति-निर्वाह' नीतिकथा नहीं, अपितु दंतकथा व ग्रंथकथा का मिश्रण लिए है !
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