अगस्त माह हम भारतीयों के लिए विनष्टता, संघर्ष और स्वतंत्रता का माह है। हिरोशिमा और नागासाकी में मनुष्यों द्वारा दूसरे मनुष्यों पर अणुबम का विनाशकारी परीक्षण, 1942 का स्वतंत्रता संघर्ष, 1947 की आजादी.... ये सब अगस्त माह में ही हुए। अगस्त 2021 में रक्षा पर्व और विश्व संस्कृत दिवस लिए सावन पूर्णिमा रही, तो भादो माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्मदिवस। 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' ने अगस्त 2021 के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए ऐसे शख़्सियत का चयन किया है, जो पहली पुस्तक से ही चर्चा में है। आइये, बगैर देर किए हम श्रीमान उज्ज्वल मल्हावनी जी से रूबरू होते हैं और उनसे ली गई 'इनबॉक्स इंटरव्यू' को पढ़कर आह्लादित होते हैं तथा अनुभवलोड़ित होते हैं। पढ़िए जरा तो-
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प्र.(1.)आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
सबसे पहले आपका सादर धन्यवाद ! 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' का कार्यक्षेत्र व्यापक है, पर साहित्य के प्रति आपका विशेष अनुराग हिंदी के बेहतर भविष्य के प्रति विश्वास जगाता है। मैं विगत कई सालों से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हूँ। मेरी लेखन यात्रा बहुत ज्यादा लम्बी तो नहीं है (क्योंकि उम्र अभी कुल जमा तेईस साल ही है),पर फिर भी यह रोचक रही। बचपन में स्कूल में 'देवपुत्र' नाम की एक पत्रिका आती थी। यह एक बाल पत्रिका थी। पत्रिका के किस्से, कहानियाँ, कविताएँ पढ़कर अक्सर मैं सोचा करता था कि क्या कभी मैं भी कुछ लिख सकता हूँ ? क्या कभी मेरा लिखा भी किसी पत्रिका में प्रकाशित हो सकता है ? एक दिन इसी प्रेरणा से मैं अपनी डायरी और कलम उठाकर लिखने बैठ गया और एक कविता लिख डाली, इस कविता का शीर्षक था 'देश का जग में नाम करेंगे'। जब पापा ने यह कविता पढ़ी तो उन्हें पसन्द आई। यह कविता पत्रिका में प्रकाशन हेतु भेजी गई और जब मेरी लिखी पहली ही कविता को 'देवपुत्र' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में स्थान मिला, तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उस पहली कविता से लेकर आज मेरी पहली किताब 'शर्मा जी का लड़का' तक साहित्य सृजन की इस यात्रा में मैंने बहुत कुछ सीखा। इससे जीवन भी बदला और जीवन-दृष्टि भी।
प्र.(2.)आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
यह प्रश्न ज़रूरी है, अच्छा हुआ आपने पूछा। साहित्य ही नहीं, समाज और जीवन के हर क्षेत्र में हमारी पृष्ठभूमि हमारे जीवन-चरित्र को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मेरे लिए लेखन के क्षेत्र में मेरी पृष्ठभूमि का योगदान कुछ ज्यादा ही रहा। जैसा कि आपको विदित है 'शर्मा जी का लड़का' एक कहानी संग्रह है। इसे लिखते वक्त मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि यह विविधताओं से भरा हुआ हो, क्योंकि समकालीन लेखन में प्रायः कहानी-संग्रह ऐसे आ रहे हैं, जिनमें एक या दो विषयों पर ही पूरी कहानियाँ लिख दीं जा रही हैं। एक ही विषय के इर्द-गिर्द लिखी कहानियाँ पढ़कर पाठक ऊबने लगे हैं । यही ऊब मैंने भी समकालीन कहानियों को पढ़ते हुए महसूस की, इसलिए 'शर्मा जी का लड़का' ऐसे कहानी संग्रह के तौर पर लिखा जाना था, जिसकी समस्त कहानियाँ अलग-अलग विषयों का प्रतिनिधित्व करती हों। ऐसा करने में मेरी पृष्ठभूमि सहायक सिद्ध हुई। मेरी स्कूल की पढ़ाई एक कस्बेनुमा शहर में हुई, जिससे मैं ग्रामीण जनजीवन पर बारीक दृष्टि डालने में सफल रहा। वहीं कॉलेज की पढ़ाई देश की राजधानी दिल्ली में हुई। जहाँ से महानगरीय जीवन को समझने का अवसर मिला। इससे मेरी कहानियों में विविधता आई। मैं एक खेल-प्रेमी भी हूँ, संग्रह की ऐसी विविधता में इस योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता !
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किस तरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
लेखन एक ऐसा क्षेत्र है, जो आम लोगों को प्रभावित करने के उद्देश्य से न भी किया जाए, तब भी यह आम जनजीवन को आकार देने में अपनी भूमिका निभाता है। प्रसिद्ध उक्ति है- साहित्य समाज का दर्पण होता है। मैं इसी को और आगे ले जाकर कहना चाहूँगा कि समाज भी साहित्य का दर्पण होता है। जो आप साहित्य में देख रहे हैं, वही आपको समाज में दिखेगा। इस रूप में एक लेखक होने के नाते मेरी भूमिका बढ़ जाती है। मैंने कहीं पढ़ा था कि प्रेमचंद तब तक कलम नहीं उठाते थे, जब तक कि वे आश्वस्त नहीं हो जाते कि जो भी वे लिखने जा रहे हैं, वह समाज और जीवन को किस तरह से प्रभावित करने जा रहा है ? क्या यह प्रभाव सकारात्मक है ? इससे मैं और मेरा लेखन प्रभावशाली हो पाए ! अत: साहित्य सृजन का उद्देश्य समाज को दिशा देना भी है, इसमें खोखले आदर्शों को थोपने की जगह आदर्शवाद और यथार्थवाद में सामंजस्य स्थापित करने का मेरा प्रयास रहा है। 'शर्मा जी का लड़का' एक ऐसी ही किताब है।
प्र.(4.)आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
रुकावटें ही जीवन को जीवन बनाती हैं। जिसे सब कुछ ही आसानी से सुलभ हो जाता है। वह कभी उसका महत्व नहीं समझता। वर्तमान हिंदी लेखन क्षेत्र में सबसे बड़ी अगर बाधा देखी जाए तो वह है इसे आय का एक सुरक्षित साधन नहीं माना जा सकता ! कितने ही अच्छा लिखने वाले साहित्यकार अपने जीवन में आर्थिक तंगी से जूझते रहे। बहुत से लेखकों ने आय के किसी न किसी अन्य स्रोत को अपनाते हुए लेखन किया। आज भी हिंदी में ऐसे गिने-चुने साहित्यकार ही हैं, जो सिर्फ लेखन से ही अपनी जीवनचर्या साध पा रहे हों ! यद्यपि यह उल्लेखनीय है कि विगत कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं और लग रहा है कि वह दिन जल्द ही आएगा, जब सिर्फ लेखक होना न सिर्फ समाज में सम्मान के लिए, बल्कि एक स्तरीय जीवन के लिए पर्याप्त होगा और यह होकर रहेगा।
प्र.(5.)अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
आज का समय इंटरनेट का है। हर जानकारी इंटरनेट के माध्यम से आसानी से सुलभ हो जाती है। भ्रम और विशेष रूप से आर्थिक भ्रम का शिकार वे लोग अधिक होते हैं, जिनके पास सूचनाओं का अभाव होता है। मैंने प्रकाशन हेतु आगे बढ़ने से पूर्व इसे काफी अच्छे से समझा और कोई भी निर्णय लेने से पूर्व उसके हर सम्भव परिणाम पर विचार किया । अत: मैं दिग्भ्रमित होने से बचा रहा। अन्य पाठकों/लेखकों से मैं यही कहना चाहूँगा कि सूचनाओं तक आपकी पहुँच है, तो फिर आप थोड़ा समय देकर निर्णय क्यों नहीं करते ? जीवन के हर क्षेत्र में यह कारगर है। उस क्षेत्र से सम्बंधित पूरी जानकारी जुटाने के बाद ही निर्णय करें और अगर निर्णय कर लिया है, तो किसी किंतु-परंतु में न उलझें, अपने फैसले पर अड़े रहें।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उन सबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
मैं जिस परिवार से आता हूँ, वह काफी सुलझा हुआ है। वहाँ कोई भी किसी पर कोई निर्णय नहीं थोपता, अपनी सलाह प्रेषित करता है। फिर लेखन में आगे बढ़ने की प्रारम्भिक प्रेरणा तो मुझे मेरे घर से ही मिली। पापा के पास किताबों का हुजूम हुआ करता था (अभी भी है), जिससे किताबें पढ़ने को लेकर मेरी रुचि बनी। लेखन के क्षेत्र में सबसे पहला कदम पढ़ना ही होता है। पढ़ने से लेकर लिखने की यात्रा भी मेरे अकेले की नहीं रही, पापा के साथ-साथ भैया और मम्मी का भी साथ रहा। जब भी लेखन के लिए एकांत की आवश्यकता मुझे हुई, उसमें कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं हुई। मेरी रचनाओं के शुरुआती पाठक भी मेरे परिवारजन ही रहे। न सिर्फ मेरा उत्साहवर्धन किया, बल्कि अपने अमूल्य सुझावों द्वारा रचनाओं को परिष्कृत भी किया। सार यह है कि एक किताब पर भले ही आपको लेखक का नाम अकेले रूप में दिखता हो, पर उसे बनाने में बहुत से कारकों का योगदान रहता है, मेरे लिए इस संदर्भ में मेरे परिवार का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
इसका उत्तर आपको पूर्व प्रश्न में मिल चुका है। फिर भी मैं कहना चाहूँगा कि परिवार के साथ और भी बहुत से कारक हैं, जो इस लेखन यात्रा में सहयोगी रहे। जिसने भी मुझे पढ़कर कहा कि 'आपने अच्छा लिखा' या फिर 'इसमें आप यह और कर सकते थे'-- उन सबों के योगदान की नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं ! इसके अतिरिक्त मेरे स्कूल के शिक्षक हैं - जितेंद्र कुमार पाठक सर, उन्होंने प्रारंभिक रचनाओं को पढ़कर प्रोत्साहित किया। दिल्ली यूनिवर्सिटी के मेरे कॉलेज की प्रोफेसर हैं - कुसुमलता चड्ढा मैम, उन्होंने भी समय-समय पर अपनी प्रतिक्रियाओं द्वारा मनोबल बढ़ाया। लेखक के लिखने की प्रेरणा समाज ही होता है । इस समाज ने भी मेरी लेखन यात्रा में अपनी भूमिका निभाई और अंतत: लेखक किसके लिए लिखता है ? पाठकों के लिए ही न ? वे सभी पाठक जिन्होंने मुझे पढ़ा, जो पढ़ रहे हैं और जो आगे पढ़ने वाले हैं, उन सभी का सहयोग भी मुझे लेखक बनाने में है।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
अभिव्यक्ति की आजादी के इस दौर में हर तरह का लेखन संभव है। तरह-तरह की किताबें लिखी जा रही हैं। कई किताबें भारत और भारतीय संस्कृति की एक अलग और एकदम विकृत छवि पेश करती हैं। इससे न सिर्फ हमारे देश में, बल्कि विदेशों में भी हमारी संस्कृति को चोट पहुँचती है। ऐसे में हर ऐसे लेखक का जो अपनी संस्कृति, अपने देश से प्रेम करता है, उनका दायित्व है कि उसका लेखन भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखने वाला हो और अगर वह इसतरह के विशेष प्रयास नहीं कर सकते हैं, तो कम से कम इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि उसका लेखन विघटनकारी तत्वों को तूल देने वाला न हो। मैंने लेखन में इस हेतु भी प्रयास किया है। 'शर्मा जी का लड़का' की कहानी 'स्वर्गों का स्वर्ग' विशेष तौर पर भारतीय संस्कृति के मूल्यों के अनुरूप समाज को दिशा देने का प्रयत्न करती है। लोगों की प्रतिक्रियाओं से यह ज्ञात भी हो रहा है कि यह प्रयास सफलता की ओर बढ़ रहा है।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
देश की आज़ादी के बाद से अगर देखें तो जो देश को सबसे ज्यादा खोखला करने वाला तत्व है, वह भ्रष्टाचार ही है। देश के आजाद होते ही बड़े-बड़े घोटाले सुनने को मिलने लगे थे। हम विदेशी ताकतों से आज़ाद होकर सोच रहे थे कि अब तो अपनी सरकार है, अब तो 'अपने लोगों' के लिए काम होगा पर हुआ सिर्फ 'अपने' लिए काम। राजनेताओं और अफसरों के गठजोड़ बने और वे अपने देश के संसाधनों से अर्जित पैसों को विदेशी बैंकों में जमा करने लगे। राजनेताओं के स्तर पर तो फिर भी पहले से अधिक पारदर्शिता बढ़ी है, पर अफसरशाही भ्रष्टाचार जैसे तत्वों से अभी भी लिप्त है, क्योंकि हमारे लेखन की प्रेरणा भी समाज ही होता है । अत: संग्रह की कहानी 'एक मनहूस कलश' और 'सिगरेट के ठूँठ' मैं मैंने अफसरों के इसी भ्रष्ट रवैये को उजागर करने का प्रयास किया है। 'एक मनहूस कलश' जहाँ एक गरीब मज़दूर की व्यवस्था द्वारा शोषण की कहानी कहती है, वहीं 'सिगरेट के ठूँठ' एक ऐसे पुलिस अफसर की कहानी है जो अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए गाँव की एक भोली लड़की को अपनी वासना का शिकार बनाते हुए उसके पूरे परिवार का खात्मा कर देता है।
प्र.(10.)इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
आर्थिक सहयोग तो विशेष नहीं मिला, पर सामाजिक सहयोग बहुत मिला। अच्छा लेखन अगर लोगों तक पहुँचे हैं तो वह तेजी से लोकप्रिय होता है। इस रूप में मुझे लोगों का सहयोग, स्नेह और आशीर्वाद मिल रहा है। 'आर्थिक मुरब्बे' जैसी स्थिति शायद भविष्य में बने।
प्र.(11.)आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
कॉपीराइट सम्बन्धी उल्लंघनों से लेखकों और प्रकाशकों को दो-चार होना पड़ता है। इस हेतु वे लोग कभी कोर्ट के बाहर तो कभी कोर्ट के अंदर अपना हक़ प्राप्त कर लेते हैं, पर क्योंकि मैं एक नया लेखक ही हूँ, सम्भवत: इसीलिए मैं इन सब चक्करों से अभी बचा हुआ हूँ।
प्र.(12.)कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
दैनिक समाचार पत्रों में लेखों, पत्रिकाओं में कविताओं-कहानियों के अलावा मेरी पहली पुस्तक 'शर्मा जी का लड़का' प्रकाशित हुई है। भविष्य में इस क्षेत्र में सतत प्रयास चलते रहेंगे।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
कोई उल्लेखनीय पुरस्कार तो अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है, पर दो अलग-अलग प्रतियोगिताओं में मेरी लिखी कहानियाँ एक बार प्रथम स्थान, तो एक बार शीर्ष 10 में शामिल हो चुकी है।
प्र.(14.)कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं एक विद्यार्थी हूँ। एक सिविल प्रतियोगी हूँ। समाज और जीवन में अनुकूल परिवर्तन लाने हेतु साहित्य सृजन और सिविल सेवा ये दोनों महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं। अत: मैं आश्वस्त हूँ कि मेरा योगदान भविष्य में भी सकारात्मक समाज हेतु होने जा रहा है। सभी से यही कहना है कि आप जिस भी कार्यक्षेत्र में हैं अपना काम पूरी ईमानदारी से कीजिये। अगर विद्यार्थी हैं तो ईमानदारी से पढ़िए, शिक्षक हैं तो ईमानदारी से पढ़ाइए और भी जितने कार्यक्षेत्रों से जुड़े लोग इसे पढ़ रहे हैं, वे सभी अगर अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं तो यह पर्याप्त होगा। देशभक्त होने के लिये सिर्फ सीमा पर जाकर लड़ना ही ज़रूरी नहीं होता, अपना काम ईमानदारी से करना भी देशभक्ति ही है।
अंत में यही कहना है कि आपका यह अभिनव प्रयास मुझे बेहद पसंद आया। आपके आगामी सभी कार्यक्रमों और योजनाओं के लिए मेरी तरफ से शुभकामनाएँ।
आप हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
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