आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, सोशल एक्टिविस्ट सुश्री आकृति विज्ञा 'अर्पण' जी की अद्भुत कविता.......
साँवरे की एकटक हम,
बाँसुरी में खो गए हैं
कह रही हैं सब दिशाएँ,
साँवरे हम हो गए हैं।
रंग टप-टप चू रहे हैं
भंगिमाओं के गगन से
एक तल में जब मिलेंगे
गर लगेंगे श्याम रँग से
साँवरी रंगत चढ़ी है
रंग बाक़ी खो गए हैं।
चाँद ने भी ओढ़ लीना
साँवरे सा स्याह कंबल
गीत गाते श्याम वारिद
झूमते संदल के जंगल
आसमाँ है गाढ़ श्यामल
सब सितारे सो गए हैं।
एक सरि नभ की धरा पर
अस्ति की धुन गा रही है
दो किनारों को निमंत्रण
हेतु ख़त भिजवा रही है
एक विरहिन-एक योगी
आज चयनित हो गए हैं।
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