आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री कांची सिंघल ओस जी की प्रेमपूर्ण रचना.......
मुझे बहुत अच्छा लगता है,
झुमके पहन के इतराना
लगता है जैसे,
टकरा रहे हैं तेरे बोसे मेरी कनपटियों से
झुमकों की सुनहरी रंगत !
चमकती है चेहरे पर सोना बन के
और मैं इतरा जाती हूँ ख़ुद पर ऐसे,
जैसे तुम सराह रहे हो मुझे,
जब झुमके के मोती बजते है
तो लगता है जैसे तुम बुदबुदा रहे हो,
अपनी मुहब्बत मेरे कानों में !
तुम जानते हो न,
मुझे बहुत पसंद है झुमकों में इतराना,
तो जब मुझसे मिलने आना
तो मेरे लिये तोहफे में
कोई सुनहरा झुमका लाना !
नमस्कार दोस्तों !
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