आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के प्रस्तुतांक में पढ़ते हैं, श्रीमान पंकज विश्वजीत रचित प्रकृतिपूर्ण कविता.......
श्रीमान पंकज विश्वजीत
शरद की यह साँझ
दिन कितना छोटा
पर कभी-कभी
कितना आस्ते-आस्ते बीतती है यह साँझ,
कहीं खोया हुआ
स्मृतियों के जंगल में
खोजता हुआ कोई दृश्य
भटकता रहता है मन
हृदय होता बेचैन,
सरकता समय मद्धिम गति से
इस झिरझिराती सी ठंडी में
साँझ ढलते ही पांव पसार लेती है ख़ामोशी
और अंदर ऐसा ख़ालीपन
जो भर चुका होता है उदासी से !
नमस्कार दोस्तों !
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