आइये, मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में पढ़ते हैं, निबंधकार और संपादक श्रीमान पंकज त्रिवेदी जी की अद्भुत कविता.......
नदी बहती है
मगर आज प्रवाह
धीमा है और
कलकल ध्वनि भी
मन ही मन
गुनगुनाती हो ऐसे
बस, बहती है और
मैं-
चुपचाप देखता हूँ !
नमस्कार दोस्तों !
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