अजब थी वो आग जो ज़माने से लगी
क्या जल रहा है आग को पता न था
क्या जल गया ज़माने को ख़बर न थी
आग सब तबाह करके बुझ भी गयी
राख में तो कुछ शोले सुलगते ही रहे
सुलगी तो मुझमें भी थी एक आग
वो सुलगती आग तो बुझ न सकी
उसमें ही सुलगते हैं जज़्बात
बस उनका ज़िक्र नहीं होता !
नमस्कार दोस्तों !
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