कोरोना की कई लहर और लहरियाँ अभी बाकी ही हैं कि 'ओमिक्रोन' अतिक्रांत लिए धमक गए। बारिश के साथ ठंढ भी बढ़ी कि 'पूस की रात' ही नहीं 'पूस का दिन' भी 'ठंढक' को लेकर आत्मसात कर रहे हैं, तथापि 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' अपने नियमित मासिक स्तंभ के लिए साल 2021 का अंतिम 'इनबॉक्स इंटरव्यू' श्री मनमोहन भाटिया जी से लिए गए हैं, जो सादर प्रस्तुत है। उच्च शिक्षित श्री भाटिया के बारे में जानने के लिए आप पाठकजन रूबरू होइए, उनकी अभिरुचियाँ विशेषत: कहानी और उपन्यास लेखन में है। इसके साथ ही उसे हर विधा में पढ़ना और लिखना पसंद है। भाटिया जी ने प्रस्तुत इंटरव्यू के माध्यम से अपने अनुभव, कल्पना और साहित्य को जीवंतता प्रदान किए हैं। आइये, माह दिसंबर 2021 का 'इनबॉक्स इंटरव्यू' को पठन-स्पर्श करते हैं, इसके पूर्व आप सभी को नूतनवर्ष 2022 की शुभमंगलकामनाएँ.......
श्रीमान मनमोहन भाटिया |
प्र.(1.)आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
मैं अब वरिष्ठ नागरिक हूँ। मेरी उम्र 64 वर्ष है। सोशल और प्रिंट मीडिया में मेरी पहचान मुख्यता एक लेखक के रूप में स्थापित है। 1998 में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में सामयिक विषयों पर पत्र लिखने से मेरा लेखन आरम्भ हुआ। कहानी लेखन का सफर 2006 में आरम्भ हुआ, जब व्यवसाय से छुट्टी ले ली और नौकरी में शनिवार और रविवार को अवकाश रहने लगा। कुछ पारिवारिक जिम्मेदारी भी कम होने लगी। पढ़ने का शौक बचपन से था। लिखना भी नियमित रूप से आरम्भ हुआ। मैं सृष्टि होटल प्राइवेट लिमिटेड से अगस्त 2019 में सेवानिवृत्त हुआ। अब स्वतंत्र लेखक बन गया हूँ और विभिन्न शैलियों और विषयों पर उपन्यास लिख रहा हूँ। शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से बी. कॉम. ऑनर्स और एलएलबी है और कार्यक्षेत्र वित्त और टैक्स रहा। भारत की राजधानी यानी दिल्लीवासी हूँ, क्योंकि अब कौन जाए दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर ? मेरे अभिभावक भारत-पाकिस्तान विभाजन पर डेरा इस्माइलखान (वर्तमान में खैबर पख्तूनख्वा) से दिल्ली में आकर बस गए थे। बचपन से आजतक मैं दिल्ली का हूँ और दिल्ली मेरी है। बचपन संयुक्त परिवार में बीता। व्यापारिक परिवार की पृष्ठभूमि में पढ़ाई के संग व्यापारिक दांवपेंच सीखने का अवसर मिला। फाइनेंस, एकाउंट्स और टैक्स के पेशे से जुड़े होने के बावजूद मेरे मन और मिजाज में सदा एक लेखक छुपा रहा, जिसने कलम से फाइनेंस, एकाउंट्स और टैक्स की गुत्थियों को सुलझाते हुए रचनाओं को अंकित किया। मुझे इसका अहसास 48 वर्ष की उम्र में हुआ, जिसकी नींव बचपन में ही पड़ गई थी। बचपन में मेरी नानी मुझे कहानियाँ सुनाया करती थी। नानी राम और कृष्ण के जीवन से सम्बंधित छोटी-छोटी कहानियाँ सुनाती थीं। जिनको सुनकर मेरा रुझान कहानियों की तरफ बढ़ा। संयुक्त परिवार में मेरे से बड़े ताऊ के बच्चे उपन्यास पढ़ते थे। वह दौर गुलशन नंदा और राजहंस के उपन्यासों का था। उपन्यास प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर मिलते थे। उन उपन्यासों को मैं भी पलट लिया करता था, परंतु छोटी उम्र होने के कारण मुझे अधिक समझ में नहीं आते थे। स्कूल की पाठ्यक्रम की पुस्तकों में मुंशी प्रेमचंद की 'पंच परमेश्वर' और 'ईदगाह' पढ़ी। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के ठीक सामने दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी थी जहाँ ढेरो अनगिनित पुस्तकों का भंडार था और शाम के समय साहित्यिक समारोह भी हुआ करते थे, यह मैं अपने स्कूल के दिनों की बात बता रहा हूँ,1968 से 1973 तक की बात है। स्कूल अध्यापकों ने हम स्कूल विद्यार्थियों को लाइब्रेरी का सदस्य बनवाया और हम नियमित रूप से लाइब्रेरी से पुस्तकें लाकर घर पर आराम से पढ़ा करते थे। हम एक साथ दो पुस्तकें 15 दिन तक रख सकते थे। यहाँ से मेरी साहित्य में रुचि जागृत हुई। बचपन में नंदन, चंपक और चंदामामा पत्रिकाओं को खूब पढ़ा। कॉलेज में बी.कॉम. ऑनर्स के कोर्स में मेरा हिंदी वैकल्पिक विषय था जो सिर्फ एक वर्ष पढ़ना था। पाठ्यक्रम में मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास 'गबन' पहली बार पढ़ने का अवसर मिला। सही मायनों में साहित्य की समझ, लगन और प्रेम गबन से आरम्भ हुई।
विवाह के बाद पत्नी श्रीमती नीलम भाटिया हिन्दी पत्रिकाएँ पढ़ती थी यानी सरिता, गृहशोभा, मुक्ता इत्यादि। मैं उन पत्रिकाओं में कहानियों को पढ़ना पसंद करता था। फुरसत के पलों में मुंशी प्रेमचंद के साथ शरतचन्द्र, रविन्द्र नाथ टैगोर को पढ़ना आरंभ किया। खुशवंत सिंह, तस्लीमा नसरीन, रस्किन बांड, अमृता प्रीतम, शिवानी और कृष्णा सोबती की लेखनी से प्रभावित हुआ। सन 1998 में सामाजिक मुद्दों पर मैंने अपनी राय समाचारपत्रों में सम्पादक के नाम पत्रों के माध्यम से रखनी आरम्भ की। हिन्दुस्तान टाइम्स, नवभारत टाइम्स, इंडिया टुडे, सरिता, इकोनॉमिक्स टाइम्स और कई अन्य पत्र पत्रिकाओं में नियमित रूप से पत्र प्रकाशित होते रहे। मुख्यत: मैं अंतर्मुखी हूँ, ऑफिस में सहपाठियों के संग चर्चा और विचार विमर्श में मैंने महसूस किया, बेफजूल वादविवाद में समय बर्बाद करने से बेहतर पत्र, पत्रिकाओं के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करना है। इंटरनेट क्रांति में फेसबुक और सोशल मीडिया के बढ़ते चलन से अब अंग्रेजी समाचारपत्रों में पाठकों की भागीदारी लगभग समाप्त ही हो गई है, हालाँकि मुझे इस बात की खुशी है कि हिन्दी समाचारपत्रों में पाठकों के पत्र काफी संख्या में प्रकाशित होते हैं। सन 2004 में मेरी उम्र 46 वर्ष थी। इस उम्र में बच्चों की जिम्मेदारी से मैं लगभग फ्री हो गया था। उम्र के इस पड़ाव पर कुछ ठहराव आए, कुछ अपने लिए समय मिलने लगा। अब शनिवार और रविवार को अवकाश रहने लगा। खाली समय में साहित्य पढ़ते स्वयं ही लिखने की इच्छा जागृत हुई। सच में कहूँ, लिखने की इच्छा दिल्ली प्रेस की वार्षिक कहानी प्रतियोगिता को देख कर हुई। अब क्या लिखूं ? कैसे लिखूं ? इस समस्या से जूझने में मुझे दो वर्ष लग गए और मैं लिख नहीं सका। सन 2004 के बाद 2005 की भी वार्षिक कहानी प्रतियोगिता चली गई और मैं सोचता रह गया। इन वर्षों में मैं बस पढ़ता रहा। सन 2006 की वार्षिक कहानी प्रतियोगिता में दृढ़ निश्चय कर के मैंने तीन कहानियाँ लिखी। कहानी 'लाइसेंस' को प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार 3000 रुपये का मिला। द्वितीय पुरस्कार के साथ धनराशि ने मेरे अंदर के लेखक को जागृत किया और मैंने नियमित रूप से लिखना आरम्भ किया। प्रतियोगिता में भेजी गई मेरी दूसरी कहानी 'वो बच्चे' भी प्रकाशित हुई, तीसरी कहानी रिजेक्ट हो गई। दोनों कहानियाँ सामाजिक विषयों पर आधारित थी जिन्हें मैंने अपने इर्दगिर्द महसूस किया था।
विख्यात मोटिवेटर श्री दीपक चोपड़ा के पिता डॉ. कृष्ण चोपड़ा की एक पुस्तक 'आपका जीवन आपके हाथों में' पढ़ी। पेशे से डॉक्टर कृष्ण चोपड़ा जी ने कहानियों के माध्यम से बीमारियों के बारे में लिखा। मुझे उनके लिखने की विधा पसंद आई और मैंने सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय को कहानियों के माध्यम से लिखना आरम्भ किया। मेरी कहानियाँ दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होने लगी। मेरा हौसला और आत्मविश्वास बढ़ा। सामाजिक मुद्दों के साथ मैंने प्रेम और हॉरर की भी कहानियों को लिखना आरम्भ किया। बहुत सी अप्रकाशित कहानियाँ मेरी डायरी में कैद थी। 2014 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर राजकुमार ने मेरी एक कहानी 'बडी दादी' को राजकमल प्रकाशन की रिश्तों पर आधारित श्रृंखला कहानियाँ दादा-दादी, नाना-नानी में सम्मिलित किया। यह मेरे लिए गौरव की बात थी जब मेरी कहानी को मुंशी प्रेमचंद, कृष्णा सोबती, जैनेन्द्र कुमार, कामतानाथ जैसे दिग्गजों के साथ स्थान मिला। यह मेरी पहली कहानी पुस्तक में प्रकाशित हुई। इस प्रकाशन के बाद मैंने पुस्तक प्रकाशन की सोची परंतु पेड प्रकाशन के दौर ने मेरा इरादा कुचल दिया। मैं धन देकर पुस्तक प्रकाशन के हक में दो कारणों से नहीं था, एक मैं एक मोटी रकम देकर पुस्तकों का ढेर अपने घर में नहीं रखना चाहता था क्योंकि पेड प्रकाशक पुस्तक बेचने में रुचि नही रखते हैं और दूसरा कारण आर्थिक भी था, एक मोटी रकम को मेरा बजट इनकार करता रहा। एक फाइनेंस सम्बंधित व्यक्ति को पेड पब्लिकेशन्स का मॉडल कतई पसंद नहीं था। मेरी कहानियाँ पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही, फिर ऑनलाइन प्लेटफार्म प्रतिलिपि आया जिससे मेरे नाम को आगे बढ़ाने में थोड़ी बहुत सहायता मिली। प्रतिलिपि से 2016 का लोकप्रिय लेखक अवार्ड भी मिला। मुझे प्रोत्साहन मिलता रहा और मैं लिखता रहा। मैं लेखन में लगातार सक्रिय रहा। मेरा उद्देश्य एक खजाना बनाने का रहा कि जब भी कभी कोई प्रकाशक मिलेगा तब कहानियों का खजाना उसके सामने रखूंगा। कहते हैं, जहाँ चाह वहाँ राह, 2018 में फ्लाइड्रीम्स से मुलाकात हुई और पुस्तकें प्रकाशित हुई। व्यक्तिगत रूप से मुझे हर शैली में लिखना पसंद है। मैंने शुरुआत सामाजिक कहानियों से की। मैं अपनी कहानियों के पात्र जीवन के इंद्रधनुषी रंगों से लेता हूँ जिसमें जवलंत सामाजिक मुद्दे भी हैं, हास्य भी है, प्रेम भी है, डर भी है, रहस्य भी है, कपोल कल्पना भी है, संस्मरण भी है, अपराध भी है इसलिए जब भी जीवन का कोई रंग प्रभावित करता हैं उस पर कलम चलती है। मैं हर विधा की पुस्तकें पढ़ता हूँ इसलिए हर शैली में लिखना भी पसंद है। जीवन में हर रंग का अपना विशेष महत्व है, हमें एक रंग में नही बंधना चाहिए। हर रंग और विधा का हमें आनंद लेना चाहिए।
प्र.(2.)आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मेरा जन्म एक व्यापारिक परिवार में हुआ। मेरा बचपन पुरानी दिल्ली में एक संयुक्त परिवार में बीता। बचपन में मेरी नानी कहानियाँ सुनाया करती थी, जो श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित होती थी। उस दौर में ना तो टीवी था, ना मोबाइल, ना इंटरनेट। स्कूल से वापिस आने के बाद खाली समय किस्से कहानियाँ सुनने, सुनाने और खेलकूद में बीतता था। मेरे से बड़े ताऊ-चाचा के बच्चे उपन्यास पढ़ते थे। वो दौर गुलशन नंदा और राजहंस के सामाजिक उपन्यासों का था। साहित्य से लगाव सही मायने में बी.कॉम प्रथम वर्ष में वैकल्पिक हिंदी विषय में मुंशी प्रेमचंद का गबन उपन्यास पढ़कर हुआ। व्यापारिक परिवार की पृष्ठभूमि के कारण वित्त और टैक्स के कार्यक्षेत्र को चुना। बचपन से किस्से, कहानियों को सुनकर साहित्य में रुचि जागृत हुई।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
मुझे सेवानिवृत्त हुए दो वर्ष हो गए। मेरा कनिष्ठ आज भी मुझसे कार्य संबंधित स्पष्टीकरण और सहायता के लिए फोन करता है। हालाँकि वह मेरे पुत्र की उम्र का है, लगभग 12 वर्ष एक साथ काम करने के कारण हम मित्र बन गए हैं। वह हर कठिन मोड़ पर मेरे अनुभव से लाभान्वित हो रहा है। साहित्यिक सफर में पाठक मेरी कहानी, उपन्यास पढ़कर लाभान्वित होते हैं, क्योंकि मैं जीवन से जुड़े विषय, मसलों पर लिखता हूँ। मेरे पात्र आपको अपने आसपास मिल जाएंगे। मेरी कहानियों में मनोरंजन के साथ एक संदेश भी अवश्य होता है। पाठक मेरे अनुभवों से लाभान्वित होते है। मेरे दो कहानी संग्रह ‘रिश्तों की छतरी’ और अमरूद का पेड़’ इसी उद्देश्य से लिखे गए हैं।
प्र.(4.)आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
बाधा, रुकावट और परेशानी का हर किसी के जीवन से चोली-दामन का साथ है। अपने 64 वर्षों के अनुभव पीछे मुड़कर देखूँ, तब अनगिनत किस्से याद आते हैं। शायद एक लंबी सूची भी बन जाए। मैं उनको याद करते हुए उनके समाधान पर आता हूँ। मेरे विचार से सब्र ही एकमात्र समाधान है। सब्र से चिंतन करते हुए उनपर अपने जीवनसाथी, अभिभावक और व्यस्क बच्चों से उनकी राय लें। कोई भी रुकावट स्थायी नहीं होती। थोड़े समय में उसका समाधान मिल जाता है। परेशानी के आलम में भी कर्म से मुख मत मोड़िए। कर्म करते हुए हर रुकावट धीरे-धीरे दूर होती जाएगी। मिलजुल कर विचार और अनुभव साझा करने से कर्म का सकारात्मक फल अवश्य मिलता है।
प्र.(5.)अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
व्यवसाय में आर्थिक दिक्कत तोड़ देती है, जिस कारण एक लंबा अरसा नौकरी की। नौकरी प्रतिष्ठित कंपनियों में की। आर्थिक दिक्कत तो नहीं हुई, कई बार वार्षिक वेतन वृद्धि कम मिली, लेकिन संतोष करना पड़ता है। लेखन से अभी उतनी आय अर्जित नहीं हुई, जितनी होनी चाहिए। कई बार निराशा होती है, प्रकाशक लेखक को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझता है और एक ही बार झटके से उसके सपने तोड़ देता है। ऐसे प्रकाशक दिग्भ्रमित करते हैं, लेकिन मैं इनसे दूर रहता हूँ। वित्त और टैक्स के कार्यक्षेत्र से संबंध रखने के कारण मैं अपनी पूँजी का महत्व समझता हूँ, इसलिए मैं किसी के झांसे में नहीं आता हूँ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
व्यावसायिक पृष्ठभूमि के कारण मैंने वित्त और टैक्स का कार्यक्षेत्र चुना। बचपन से किस्से, कहानियों को सुनते-सुनते लेखन जुनून बन गया, इसलिए लिखता हूँ। मेरा परिवार मेरे कार्य से सदा संतुष्ट रहा।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
मैं अपनी जीवनसाथी नीलम भाटिया का आभार प्रकट करता हूँ, जिनके सहयोग से मैं जीवन की कठिनाइयों को पार करता हुआ अपने मुकाम को हासिल कर सका।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
मैं हिन्दू और भारतीय संस्कृति में विश्वास रखता हूँ। मेरे दोनों कहानी संग्रह 'रिश्तों की छतरी' और 'अमरूद के पेड़' की कहानियाँ इनके इर्दगिर्द हैं। पाठक पढ़कर और अधिक हिन्दू और भारतीय संस्कृति से जुड़ सकते हैं, क्योंकि मेरी कहानियों में मनोरंजन भी है और संदेश भी।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
इस विषय पर मैंने उपन्यास लिखा है 'नयन ग्रह' हालाँकि यह फंतासी उपन्यास है। इसका मुख्य विषय भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, भाई-भतीजा वाद के कारण भारत की राजनीति के कई कोण दिखाए है। देश की अखंडता और सुरक्षा को दांव पर लगाने वाले भ्रष्ट मंत्री और संत्री है। भगोड़े हैं। उनको सुधारने के उपाय भी हैं। जो नहीं सुधारते, उनके लिए जबरदस्त दंड का प्रावधान है। मैंने करमुक्त देश की कल्पना की है, जहाँ कर नहीं लगते, राजस्व से जनता में लाभांश का वितरण होता है। यह मैंने नयन ग्रह की कल्पना की मार्फत दर्शाया है, जहाँ मैंने रामराज्य की कल्पना की है जो वैज्ञानिक दृष्टि से सबसे उन्नत है और भारत की अखंडता और सुरक्षा के लिए कटिबद्ध है। एक ऐसा ग्रह जहाँ हर देशवासी रहना पसंद करेगा। नयन ग्रह की कार्यप्रणाली पर हमारा देश अमल करे तब सभी समस्याओं का हल मिल जाएगा।
प्र.(10.)इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
लेखन में तो कोई आर्थिक मुरब्बा नहीं मिला है। थोड़ी आय हुई जो नगण्य है। हर प्रकाशक, ऑनलाइन प्लेटफार्म मुफ्त में लेखन कराना चाहता है, जिसे मैं इनकार कर देता हूँ।
प्र.(11.)आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
अभी तक कोई धोखाधड़ी, केस, मुकदमे का सामना नहीं हुआ है और ईश्वर से दुआ करता हूँ, भविष्य में भी ऐसी किसी बात से सामना नहीं करना पड़े। साहित्य के क्षेत्र का सबसे बड़ा दोष है लेखकों का आर्थिक शोषण। कुछ चंद गिनती के लेखकों को एडवांस रॉयल्टी मिलती है, 99 प्रतिशत लेखकों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है।
प्र.(12.)कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
मेरी प्रकाशित पुस्तकें हैं- 1. अदृश्यम (भूत हॉरर उपन्यास) 2. नयन ग्रह (फंतासी उपन्यास) 3. रिश्तों की छतरी (समाजिक कहानी संग्रह) 4. अमरूद का पेड़ (समाजिक कहानी संग्रह) एक उपन्यास 'कुछ नहीं' अति शीघ्र प्रकाशित होने वाला है। यह सामाजिक प्रेम उपन्यास है। इस उपन्यास में हिन्दू विवाह के समय लिए साथ फेरों और वचनों का महत्व दर्शाया है। इसके अतिरिक्त 15 पांडुलिपि मेरे पास तैयार है। बस प्रकाशक ढूंढ रहा हूँ, जो परंपरागत तरीके से रॉयल्टी पर किताब को प्रकाशित कर सके। ये पांडुलिपि विभिन्न शैली और श्रेणी की है। मैंने कई प्रयोग भी किए हैं। हास्य, ऑफिस, प्रेम, धोखा, सामाजिक, आस्था, भूत हॉरर, थ्रिल सभी सम्मलित हैं। इस समय एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर फंतासी उपन्यास लिख रहा हूँ, यथा-
■ प्रकाशित रचनायें:-
कहानियाँ: सरिता, गृहशोभा, सरल सलिल, प्रतिलिपि, जयविजय, सेतु, अभिव्यक्ति, स्वर्ग विभा, अनहद कृति, हिन्दुस्तान और नवभारत टाइम्स में प्रकाशित।
उपन्यास "नयन ग्रह" जून 2021 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स"।
उपन्यास "अदृश्यम" नवंबर 2020 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स"।
कहानी संग्रह "अमरूद का पेड़" 2020 प्रकाशक "श्री सत्यम् प्रकाशन"।
उपन्यास "कुछ नहीं" अगस्त 2019 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स"।
कहानी संग्रह "रिश्तों की छतरी" मार्च 2019 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स"।
कहानी संग्रह "भूतिया हवेली" सितंबर 2018 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स"।
कहानी संग्रह "फासले" जनवरी 2021 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स" केवल किंडल संस्करण।
कहानी संग्रह "रसरंग" जनवरी 2021 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स" केवल किंडल संस्करण।
कहानी संग्रह "हौसला" अगस्त 2020 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स" केवल किंडल संस्करण।
कहानी संग्रह "पुरानी डायरी" मई 2020 प्रकाशक "फ्लाइड्रीम्स पब्लिकेशन्स" केवल किंडल संस्करण।
ऑडियो बुक धारावाहिक "तुम्हारी काव्या" ,पॉकेट एफएम अप्रैल 2020
काव्य संग्रह "दिल से" मार्च 2019 स्वयं प्रकाशन केवल किंडल संस्करण
प्रार्थना संग्रह "प्रार्थनाएं" मार्च 2019 स्वयं प्रकाशन केवल किंडल संस्करण।
विभिन्न कहानी संग्रह में प्रकाशित अनेकों कहानियाँ।
दस लेखकों द्वारा लिखित उपन्यास "डार्क नाईट" का दसवाँ अध्याय प्रकाशक "नोशन प्रेस"।
कुकु एफएम पर लगभग एक सौ कहानियों के ऑडियो।
कुकु एफएम पर उपन्यास "कुछ नहीं" का ऑडियो।
कहानी “ब्लू टरबन” का तेलुगु अनुवाद। अनुवादक: सोम शंकर कोल्लूरि
कहानी “अखबार वाला” का उर्दू अनुवाद। अनुवादक: सबीर रजा रहबर (पटना से प्रकाशित उर्दू समाचार पत्र इंकलाब के संपादक) बिहार उर्दू अकादमी के लिए।
हिन्दुस्तान टाइम्स, नवभारत टाइम्स, मेल टुडे और इकॉनॉमिक्स टाइम्स में सामयिक विषयों पर पत्र।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
सम्मान एवं पुरस्कार:-
(i) दिल्ली प्रेस की कहानी 2006 प्रतियोगिता में 'लाइसेंस' कहानी को द्वितीय पुरस्कार।
(ii) अभिव्यक्ति कथा महोत्सव - 2008 में 'शिक्षा' कहानी पुरस्कृत।
(iii) प्रतिलिपि सम्मान – 2016 में लोकप्रिय लेखक सम्मान।
प्र.(14.)कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
प्राइवेट नौकरी में पेंशन का कोई प्रावधान नहीं होता। जमापूँजी को सरकारी सुरक्षित योजनाओं में निवेश किया है और अर्जित ब्याज से घर खर्च चलाता हूँ। इसी कारण 15 पांडुलिपि प्रकाशन का मुँह देख रही हैं। संदेश के स्थान पर प्रकाशकों से विनती करूँगा, लेखकों का आर्थिक शोषण बंद करें। देश के नेताओं से विनती है कि नागरिकों को सोशल सिक्योरिटी दे। जैसे नयन ग्रह में सरकार राजस्व से जनता में लाभांश बांटती है और उनकी सुरक्षा के प्रति कटिबद्ध है। वैसे जरूरत के समय सरकार को जनता को आर्थिक सहायता करनी चाहिए और मुफ्त में चिकित्सा सेवा उपलब्ध करानी चाहिए। महँगी चिकित्सा के कारण देश की जनता बिना इलाज के रह जाती है। सरकार को निजी अस्पतालों का सरकारीकरण करना चाहिए ताकि समुचित चिकित्सा गरीब और मध्यवर्ग को मिल सके।
मैं सभी मित्रों से अनुरोध करता हूँ, वे सब्र से लिखते रहें। श्रीकृष्ण के कहे मार्ग पर चलते रहें, कर्म से कभी पीछे न हटें, कर्म ही पूजा है, लेखनी हमारा कर्म है, इसका फल आज नहीं तो कल अवश्य मिलेगा। मैं अपना उदाहरण आपके सामने रखता हूँ, लिखने के 12 वर्ष बाद मेरी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। मुझे भ्रमण, संगीत सुनना और सिनेमा देखना पसंद है। प्रकृति सौंदर्य के लिए मुझे हिल स्टेशन पसंद हैं। ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण में विशेष रुचि है। हर तरह का संगीत सुनना पसंद करता हूँ और हर तरह का सिनेमा देखना पसंद करता हूँ। अगस्त 2019 में सेवानिवृत्ति के पश्चात साहित्य सेवा के लिए फुरसत ही फुरसत है। अब मैं स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य कर रहा हूँ।
नमस्कार दोस्तों !
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