नवनीत वर्ष 2022 में 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' के आदरणीय पाठकगण ! आइये, पढ़ते हैं, श्रीमान अमिताभ बुधौलिया की अद्भुत रचना.......
श्रीमान अमिताभ बुधौलिया |
तुम सर उठाकर चाँद देखते हो
हम सर उठाकर आसमाँ देखते हैं
तुम चाँद की ख्वाहिश रखते हो
हमें आसमाँ का ख़्वाब हैं
तुम्हारी मुट्ठी में आ भी गया;
तो सिर्फ एक चाँद होगा
मेरी मुट्ठी में आया;
तो पूरा आसमाँ होगा
कई चाँद होंगे;
कई सितारे होंगे
तुम्हारे चाँद के स्वामित्व भी हमारे होंगे
मैं ये जानता हूँ-मानता हूँ कि ये इतना सरल नहीं है
लेकिन वो विचार ही क्या,
स्वप्न ही क्या,
जो विरल नहीं है
तुम्हारी कोशिशों से अगर चाँद का एक टुकड़ा भी हाथ आएगा
तो यकीं है हमें;
मेरी कोशिशों से ये आसमाँ कुछ तो करीब आएगा।
नमस्कार दोस्तों !
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