आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखित 'विश्व हिंदी दिवस' पर अद्वितीय आलेख.......
आज़ादी से पहले हिंदी के लिए कोई समस्या नहीं थी, आज़ादी के बाद हिंदी की कमर पर वार उन प्रांतों ने ही किया, जिनके आग्रह पर वहाँ हिंदी प्रचारिणी सभा गया था- मद्रास हिंदी सोसाइटी, असम हिंदी प्रचार सभा, वर्धा हिंदी प्रचार समिति, बंगाल हिंदी एसोसिएशन, केरल हिंदी प्रचार सभा इत्यादि। मेरा मत है, भारत की 80 फ़ीसदी आबादी किसी न किसी प्रकार या तो हिंदी से जुड़े हैं या हिंदी जरूर जानते हैं , बावजूद 80 फ़ीसदी कार्यालयों में हिंदी में कार्य नहीं होते हैं। अब तो हिंदी के अंग एकतरफ ब्रज, अवधी, मैथिली, भोजपुरी, मगही, बज्जिका इत्यादि अलग भाषा बनने को लामबंदी किए हैं। संविधान की 8 वीं अनुसूची की भाषा भी हिंदी के लिए खतरा है। हमें हिंदी के लिए खतरा नामवर सिंहों से भी है, जो सिर्फ नाम बर्बर हैं या नाम गड़बड़ हैं। हिंदी में मोती चुगते 'हंस' निकालने वाले भी हिंदी के लिए भला नहीं सोचते हैं। ये सरकारी केंद्रीय हिंदी संस्थान भी मेरे शोध-शब्द 'श्री' को हाशिये में डाल दिए हैं। 10 सालों की मेहनत के बाद लिखा 2 करोड़ से ऊपर तरीके से लिखा 'श्री' और 'हिंदी का पहला ध्वनि व्याकरण' को हिंदी गलित विद्वानों ने एतदर्थ इसके लिए अपने विधर्मी रुख अपनाये रखा। सम्पूर्ण संसार में हिंदी तीसरी बोली जानेवाली भाषा है।
नमस्कार दोस्तों !
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