आइये, मैसेंजर ऑफ़ आर्ट में पढ़ते हैं, दरभंगा (बिहार) के रहवासी श्री पूरन मिश्र द्वारा समीक्षित उपन्यासकार तत्सम्यक् मनु के हिंदी उपन्यास 'the नियोजित शिक्षक' की समीक्षा.......
'द नियोजित शिक्षक' के लेखक के नाम समीक्षात्मक पत्र।
लेखक बेटा !
मेरी उम्र 88 वर्ष है और यह समीक्षात्मक पत्र अपने बेटे से लिखा रहा हूँ. मैं जो-जो बोल रहा हूँ, वह मोबाइल पर लिख रहा है. मेरा बेटा पत्रकार है, कह रहा है- 'पिताजी आपका यह पत्र किसी न्यूज़पेपर में भेज दूँगा.'
उम्र के इस पड़ाव में मेरी आँखें अब साथ नहीं दे रही है, चश्मा पहनने का मन नहीं करता, लिखता हूँ तो हाथ कंपकंपाते हैं. कुछ दिन पहले बेटे ने मुझे तुम्हारी पुस्तक पढ़ने को दी ('बेटा, 'तुम' कह सकता हूँ न !), तो मेरे शिक्षकीय मन उतावला हो गए पढ़ने के लिए.
मुझे रिटायर हुए 28 साल हो गए हैं, किन्तु अब भी बच्चों को पढ़ाने को लेकर मन लालायित हो जाती हैं. तुम्हारे उपन्यास 'the नियोजित शिक्षक' पढ़ना शुरू किया, किन्तु बार-बार आँखों ने धोखा दिया. कुछ-कुछ पन्ने पोते से पढ़ा लेता हूँ, लेकिन 7 वीं में पढ़ रहा 'पोता' कई शब्दों के अर्थ को खोद-खोदकर पूछते रहता है. तुम तो जानते ही हो कि साहित्यिक दुनिया में लेखकों के ब्द कितने खतरनाक होते है ? तुम्हारेवाले शब्द तो बेहद प्रभावी केटेगरी में है, मैं पोते को समझाते जाता, किन्तु खेलने के युग में वह मुझ बुजुर्ग को जितना समय दे पाता है, काफी होता है.
2 दिसंबर को हाथ में आई किताब 10 दिसंबर को मैंने पूर्ण कर लिया है, लेकिन बुजुर्ग आँखों पर बड़ा जोर पड़ा. किताब ख़त्म करते-करते मैं रो पड़ा. घर के सदस्यों को लगा- मुझे क्या हो गया है ? मैंने सविस्तार से उपन्यास के बारे में घर के मेंबर्स को बताया और शिक्षकों की गाथा उन्हें सौंप दिया.
बेटा ! मैंने आजतक किसी पर आलोचना नहीं किया है, मेरा मानना है कि किसी को जब हम आगे बढ़ा नहीं सकते, तो फिर गिराने से क्या फायदा ?
किताब पढ़ते हुए कई घटनाएँ मुझे अचंभित किया, नया लगा, किन्तु साहित्यिक लोगों को ऐसी घटनाएँ 'पच' नहीं पायेगी कि वर्त्तमान समय में कोई लेखक गंभीर विषय पर इतने सलीके से भी लिख सकते हैं ?
चूँकि शिक्षकों की दुर्दशा से मैं वाकिफ हूँ, तुमने तो पूर्णतया उनके बारे में सटीक वर्णन किया ही है, वहीं उपन्यास की कविताओं ने मुझे खूब आकर्षित किया और इस बुढ़ापे में एक और चीज ने आकर्षित किया, हाँ, कथापात्र के 'हीरो' ने !
मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूँ, लेकिन अब बोला नहीं जा रहा है.
तुम्हारे आगामी उपन्यास के इंतजार में !
पूरन मिश्र
दरभंगा, बिहार.
नमस्कार दोस्तों !
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