नववर्ष 2022 में ! मैसेंजर ऑफ आर्ट के आदरणीय पाठकगण ! आइये, पढ़ते हैं, सहरसा (बिहार) के रहवासी श्री दिलीप कुमार द्वारा समीक्षित उपन्यासकार तत्सम्यक् मनु के हिंदी उपन्यास 'the नियोजित शिक्षक' की समीक्षा.......
साहित्य ही ऐसी जगह है, जहाँ 'व्यक्ति' अपने-अपने भावों को अभिव्यक्ति दे पाते हैं। विशेषतया मैं शोधपरक किताबें पढ़ना पसंद करता हूँ। एक सप्ताह पहले मेरे मित्र संजीव ने मुझे एक उपन्यास पढ़ने को सुझाया और कहा- "प्रोफेसर साहब, मार्किट में एक उपन्यास आया है, जिसमें जिक्र है कि प्रेमचंद 'कवि' भी थे ?"
मेरा माथा ठनका- वाकई में ?
मित्र से कुछ देर बातें हुईं, उन्होंने उक्त पुस्तक के लिए लिंक भी भेजा। मैंने ऑर्डर कर दिया।
गत दिनों उपन्यास 'द नियोजित शिक्षक' पढ़ना शुरू किया। अध्यापन कार्य से जुड़े रहने के कारण उपन्यास को जल्दी से पढ़ने लगा। मैं पढ़ते-पढ़ते यह सोचने लगा कि प्रेमचंद के 'कवि' सम्मत बातें जहाँ उद्धृत है, पहले उसी पन्ने को पढ़ लेता हूँ, लेकिन फिर विचार बदला कि लेखक के मेहनत को शुरुआत से ही पढ़ा जाय।
उपन्यास ने कब मुझे अपने गिरफ्त में ले लिया, मालूम न चला। धीरे-धीरे मैं उस पन्ने पर भी आ गया, जिसका मुझे इंतज़ार था, यह एकदम से नई जानकारी थी मेरे लिए ! वैसे यह उपन्यास ही शोधपरक जानकारियों से अटे पड़े हैं। एक छोटे सवाल का जवाब दार्शनिक व वैज्ञानिक अंदाज में दिए गए हैं। निजी कोचिंग सहित सरकारी विद्यालय_महाविद्यालय में शिक्षकों के साथ क्या-क्या होता है ? इसे सटीक रूप से लिखा गया है।
संप्रति उपन्यास में-
मसाले भी हैं, तो दिल को दर्द देनेवाली बातें भी ! शिक्षकों के हालात को सुधारने के तरीके भी। अगर कुछ वाक्यों में उपन्यास के बारे में लिखूँ, तो यही लिखूँगा-
"'गोदान' के बाद ऐसा उपन्यास सचमुच में मैंने पढ़ा नहीं !"
नमस्कार दोस्तों !
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