कोविड 19 से हम इस कदर संपूर्ण संसार भयाक्रांत रहे कि लोग-बाग जीवन की भीख माँगने लगे। यमराज के डंडे इस भाँति से लोगों पर पड़ने लगे कि कोरोना वायरस को हीरो की तरह हो या विलेन की तरह 'पूजा' होने लगी। कई चरणों में यह वायरस आये, फिर चुप हुए, लेकिन उनकी सक्रियता अब भी कायम है, भले ही वैक्सीनेशन ने कुछ सफलताएँ हासिल की है। प्रश्न है, कुछ दिन पहले तक या यूँ कहिए कि इस वायरस का भय अब भी कायम है यानी लोग 'जीवन' के लिए भरोसा छोड़कर 'मृत्यु' की अनपेक्षित प्रतीक्षा में है, इसके बावजूद रूस और यूक्रेन के बीच जो अभी युद्ध हो रहे हैं, उनमें निर्दोष लोग भी अकाल मृत्यु को प्राप्त कर रहे हैं। अनपेक्षित मृत्यु के समय अकाल मृत्यु 'मानवता' की आकांक्षा न सिर्फ समाप्त करता है, अपितु संसार तृतीय विश्वयुद्ध की ओर बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में निर्दोष लोगों के लिए एक तरफ खाई है, तो दूसरी तरह कुआँ। ऐसे में दुनियाभर के कई देशों की यात्रा किए उपन्यासकार और कवि श्रीमान विनोद दूबे से रूबरू होते हैं 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में प्रकाशित होनेवाली मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में। आइए, फरवरी 2022 की 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में हम विनोद दूबे जी के जीवन और लेखकीय यात्रा से रूबरू होते हैं--
श्रीमान विनोद दूबे |
प्र.(1.) आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
पहला हिंदी उपन्यास 'इंडियापा' हिन्दयुग्म (ब्लू) द्वारा प्रकशित हुआ। उपन्यास "इंडियापा" पाठकों में विशेष चर्चित रहा और अमेज़न पर कई दिनों तक बेस्ट सेलर बना रहा। इसकी सफलता से प्रभावित होकर हिन्दयुग्म प्रकाशन ने अगले संस्करण में इसे हिन्दयुग्म (ब्लू) से हिन्दयुग्म (रेड) में तब्दील किया। ऑडिबल पर इंडियापा का ऑडियो वर्जन भी आ चुका है और इसका अंगेज़ी अनुवाद जनवरी 2022 में प्रकाशित हो चुका है। वहीं कविता लेखन और कविता वाचन में भी रूचि है और “वीकेंड वाली कविता” नामक यूट्यूब चैनल कविताओं की गुल्लक है, जो फ्लाईड्रीम प्रकाशन के जरिए किताब की शक्ल में भी लोगों तक पहुँच चुकी है। इस किताब को भारत और सिंगापुर में काफी पसंद किया जा रहा है।
प्र.(2.) आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
उत्तरप्रदेश के बनारस जिले के एक गाँव में जन्म हुआ। गदहिया गोल (आजकल का KG) से 12वीं तक की पढ़ाई हिंदी माध्यम के स्कूल से पूरा करने के बाद 'मर्चेंट नेवी' जॉब की खुशबू उसे समन्दर की यात्रा में तल्लीन करा गयी। वहीं IIT-JEE की रैंकिंग ने उन्हे भारत सरकार के इकलौते प्रशिक्षण पोत "टी एस चाणक्य" से मर्चेंट नेवी की ट्रेनिंग पूर्ण करने का अवसर प्रदान किया। ट्रेनिंग में "ऑल राउंड बेस्ट कैडेट" का खिताब मिला और नॉटिकल साइंस में की डिग्री मिली। उसके बाद जहाज की नौकरी में मैंने एक्सोनमोबिल जैसी फार्च्यून 500 में स्थान पानेवाली मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया। कैडेट से कैप्टेन बनने तक के 12 वर्षों के ख़ानाबदोश जहाजी सफर (सभी महाद्वीपों में भ्रमण) ने मेरे अनुभव के दायरे को विदेशों तक पहुँचाया। कैप्टेन बनने के बाद बहरहाल मैं सिंगापुर की एक शिपिंग कंपनी में प्रबंधक के पद पर नियुक्त हूँ और पारिवारिक घोंसला भी सिंगापुर की डाल पर प्रतिष्ठापित है। सिंगापुर में रहते हुए मैंने कार्डिफ मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी (UK) से MBA में गोल्ड मैडल हासिल किया और इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड शिपब्रोकर की मेम्बरशिप भी हासिल की। पढ़ाई -लिखाई का सिलसिला जारी है। पेशे से जहाज़ी और दिल से लेखक हूँ।
प्र.(3.) आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आम लोग किस तरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
मेरी रचनाएँ खुद के अनुभवों पर आधारित हैं। भारत के छोटे से गाँव से विदेश तक का रोमांचक सफर ने मेरे निजी दायरे को अभूतपूर्व विस्तार दिया है। कुछ हासिल करने का मोटिवेशन, जड़ों से प्रेम और जीवन की विभिन्न अवस्थाओं और उनके पायदानों की ज़द्दोज़हद मेरी रचनाओं में खूब दृष्टिगोचित होती हैं। यही कारण है कि छोटे शहरों और गाँवों में रह रहे बेहतर करने को व्याकुल एक खास पाठकवर्ग है, जो मेरी कृतियों से जुड़ाव महसूस करते हैं।
प्र.(4.) आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
ज्ञात हो, 'मर्चेंट नेवी' अंग्रेज़ियत के माहौल में ढला पेशा है। चारों तरफ इस तरह के माहौल में होते हुए अपनी मातृभाषा हिंदी को जिन्दा रखना आसान नहीं है, बावजूद इनमें मैं सफल रहा। मेरे पेशे में 24×7 जहाजों के संपर्क में रहना होता है, उनके सुचारु रूप से चालन-परिचालन का प्रबंध करना होता है। व्यस्त दिनचर्या में लेखनी के लिए वक्त निकाल पाना बेहद मुश्किल है, परन्तु अनुशासन और अपनी भाषा से सही लगाव ने मुझे इन बाधाओं को पार करने में काफी मदद की।
प्र.(5.) अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
चूँकि पहली किताब छपने से पहले मैं नौकरी में था, इसलिए मुझे कोई आर्थिक दिक्कत नहीं आयी, परन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रकाशक वर्ग नए लेखकों से पैसा कमाने की कोशिश करते हैं। अगर कोई लेखक जो आर्थिक रूप से मज़बूत नहीं है, उसे दिग्भ्रमित नहीं होना चाहिए और एक ऐसे प्रकाशक की तलाश करनी चाहिए, जो आपकी रचनाओं को सम्मान दे और उचित मूल्य पर छापे, ना कि उनसे पैसे ऐंठे।
प्र.(6.) आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
हिंदी भाषा से नैसर्गिक प्रेम ने ही मुझे इस क्षेत्र में ले आया। मेरे पारिवारिक सदस्य मेरे इस कार्य से संतुष्ट हैं और उनकी दखलंदाज़ी नहीं है।
प्र.(7.) आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
मेरे कुछ मित्र हैं, जो मेरी रचनाएँ न सिर्फ सुनते हैं, अपितु सुझाव भी देते रहते हैं और प्रोत्साहित भी करते हैं। सिंगापुर में कुछ हिंदी संस्थाएँ हैं, जिन्होंने मेरी रचनाओं को साहित्यिक पटल पर रखा और परिचय कराया है। मेरे परिजन मुझे सपोर्ट करते रहे हैं।
प्र.(8.) आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
विदेशों में वक्त गुजारते वक्त मेरी सोच को विस्तृत और तुलनात्मक दायरा मिला है। भारतीय संस्कृति की रूढ़ियों और परम्पराओं के बीच जो महीन रेखा है, वो बारीकी से और बेहतर देख पाता हूँ। मेरा पहला उपन्यास विवाहों में जाति व्यवस्था पर जोरदार कुठाराघात है। कोशिश तो यही रहेगा कि इसतरह की रूढ़िवादी विषयों को उठाता रहूँ।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
अपनी रचनाओं में इसतरह के मुद्दों पर दो टूक लिखने की कोशिश करता रहा हूँ, ताकि भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में ये रचनाएँ पूर्ण कारगर साबित हो।
प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
इस कार्यक्षेत्र के लिए कभी भी कोई आर्थिक सहयोग नहीं प्राप्त हुआ। यह निराशा भरी सोच को पनपाता है। उम्मीद करता हूँ कि हिंदी को बेहतर बाजार मिले और आगे चलकर हिंदी लेखकों को किसी नौकरी के वैशाखी का सहारा ना लेना पड़े।
प्र.(11.) आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
जी नहीं।
प्र.(12.) कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
मेरी प्रकाशित कृतियाँ हैं-
उपन्यास 'इंडियापा' और कविता संग्रह 'वीकेंड वाली कविता'।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
हिंदी के प्रति योगदान को लेकर सिंगापुर का HEP (Highly Enriched Personality) पुरस्कार। कविता के लिए सिंगापुर भारतीय उच्चायोग द्वारा पुरस्कृत किया गया है। 'संगम सिंगापुर' पत्रिका के हर अंक में कविताएँ और यात्रा वृत्तांत प्रकाशित हो रहे हैं। देश-विदेश के 100 से अधिक कवि सम्मेलनों में भाग लिया, जिसमें अशोक चक्रधर, लक्ष्मीकान्त वाजपेयी आदि शामिल रहे हैं। अनेक संस्थाओं से जुड़कर कविताएँ प्रस्तुत की हैं, जिनमें सिंगापुर (संगम, कविताई), नीदरलैंड (साँझा संसार), यू.के. (वातायन) शामिल हैं, तो नीदरलैंड की प्रवासी पत्रिका में यात्रा वृत्तांत प्रकाशित हुई है। आदरणीया मीराबाई चानू पर मेरी रचित कविता इंडियन हाई कमीशन ने मुझे ट्वीट कर बधाई दिया।
प्र.(14.)कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मर्चेंट नेवी में कैप्टेन बनने के बाद सम्प्रति मैं सिंगापुर की एक शिपिंग कंपनी में प्रबंधक के पद पर नियुक्त हूँ और मेरे पारिवारिक घोंसला भी सिंगापुर की डाल पर है। यही आजीविका का मुख्या साधन है। हम कोई भी काम करने जाते हैं, तो तमाम मुश्किलें सामने आ जाती हैं। हमें अनुशासन के साथ कदम बढ़ाने चाहिए और मंज़िल की चाह में कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। नियति पर सम्पूर्ण भरोसा और अपनी मेहनत पर विश्वास हमारे जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन करने का माद्दा रखता है।
नमस्कार दोस्तों !
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