आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवि श्री मिथिलेश कुमार राय की कविता.......
मेड़ पर जाकर दो मिनट खड़े होइए
तो नथुने तक जो हवा आएगी
लगेगा कि उसमें कोई खुशबू मिली है,
आप चारों तरफ निहारेंगे
लगेगा कि खेतों में फसल की एक दुनिया बसती है
उसमें एकता इतनी है कि जब हवा बहती है
सारे साथ झूमते हैं,
गेहूं जो है उसकी जड़ों के पास बथुआ ऊगा था
जितना भी खाद-पानी गेहूं को मिला था
उसने वह बथुआ को भी दिया
बदले में उसने
सबको एक नए स्वाद से अवगत कराया,
खेत के चारों ओर सरसों के पौधे उगे
और उनमें जो फूल आए
इससे समूचे दृश्य को रौनक मिली
फिर यह रौनक लोगों के चेहरे पर पसरी
मटर जल्दी-जल्दी बढ़े
उसे गेहूं से पहले पकना था
सरसों के डंठल ने सहारा दिया
लता उस पर चढ़कर खूब खिली,
बगल के खेत में राजमा के पौधे थे
उसमें भी फूल आए
उसके बगल में तेजी से बढ़ते मक्के के पौधे जैसे किसी से होड़ ले रहे थे
और ऐसा लगता था मानो
कि वह हवा में पत्ते को तलवार की तरह लहरा रहे हैं,
सरसों के फूल बहुत देख लिए होंगे आपने
कभी मटर के फूल देख आइए
जिस सुगंध को मैं सांस खींचते हुए महसूस कर रहा हूँ
वो इसी के फूलों से निकल रही है।
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