रूस-यूक्रेन में युद्ध जारी है और हल के लिए विश्व बेचैन नहीं दिख रहे हैं, इसी बीच मार्च 2022 में संपूर्ण भारत में रंगोत्सव मनाई गई। ऐसे में साहित्य सर्वाधिक जागरूक है और आपके प्रिय "मैसेंजर ऑफ आर्ट" भी। मासिक स्तंभ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' भी निरंतरता बरकरार रखी हैं। इस माह का इंटरव्यू ऐसी शख्सियत की है, जो फोर्थ स्टेज की कैंसर रोगी होकर भी साहित्यिक प्रतिमानों को कायम रखी हुई हैं। उनकी रचनाओं में निराशा कहीं नहीं हैं, वे तो छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और प्रेरणा बनी हुई हैं। कवयित्री व लेखिका महिमाश्री जी शीघ्र स्वस्थ हों, "मैसेंजर ऑफ आर्ट" की ओर से मंगलकामना है। आइए, हम "महिमाश्री" जी के इंटरव्यू के साथ आत्मसात होते हैं....
सुश्री महिमाश्री |
प्र.(1.) आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
मै स्कूल-कॉलेज के समय ही हरेक गतिविधियों में बढ-चढ़ कर भागीदारी करती रही हूँ। जहाँ स्कूल के कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं में कविता पाठ कर पुरस्कार पाया। वहीँ पटना विश्वविद्यालय, मगध महिला महाविद्यालय के साहित्यिक पत्रिका में भी कविता प्रकाशित हुई। दिल्ली में जब कॉरपोरेट सेक्टर में जॉब करने लगी, तो वहाँ के वार्षिक अंक में भी मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई। इसके अतिरिक्त ब्लॉग और फेसबुक पर लिखने के साथ दिल्ली की साहित्यिक कार्यक्रमों में भी सहभागिता रही है। कविता पाठ करती रही हूँ। कई बार काव्य गोष्ठियाँ भी संचालित की हैं।
प्र.(2.) आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मेरी साहित्यिक पृष्ठभूमि रही है। पितजी स्व. डॉ. शत्रुध्न प्रसाद जी हिंदी के विभागाध्यक्ष के साथ-साथ सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार रहे हैं तथा हिंदी साहित्य में अवदान के लिए कई बार सम्मानित किये गये। वर्ष 2016 में केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा प्रदान किया गया। वहीं 2018 में उत्तर प्रदेश हिंदी प्रदेश संस्थान द्वारा ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए पहला अवंती बाई सम्मान दिया गया। जब हम छोटे थे, पिता जी हर महीने घर पर काव्य गोष्ठी रखते और शहर के साहित्यिकारों को आमंत्रित करते थे, जिसके कारण मैं 12-13 वर्ष की उम्र से ही कविता लिखने लगी और सभी के बीच कविता पढ़ने भी लगी थी। मेरी शिक्षा स्नातकोत्तर पत्रकारिता (मा.च.रा.प.ज.वि.), एम.सी.ए.(इग्नु) है, तो मेरी लेखन विधाएँ अतुकांत कविताएँ, ग़ज़ल, दोहें, कहानी, बाल कहानी, यात्रा-वृतांत, सामाजिक विषयों पर आलेख , समीक्षा इत्यादि है। सामाजिक कार्यों में सहभागिता, कैंसर जागरुकता के लिए डॉक्टरों के अभियान में सहयोग शामिल है। सम्प्रति पब्लिक सेक्टर में सात साल (मार्च 2007-अगस्त 2014) काम करने के बाद पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना में गेस्ट फैक्लटी के तौर पर अध्यापन कार्य और स्वतंत्र लेखन कार्य में संलग्न हूँ।
प्र.(3.) आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
अक्टूबर 2021 से मैं 4th स्टेज लंग कैंसर से जुझ रही हूँ। कैंसर रोगी होते हुए भी मैं लेखन-पाठन कर रही हूँ। साथ ही सकारात्मक रहती हूँ। यह मेरे मित्रों और पाठकों को बहुत प्रेरित करता है। मेरे पाठक जब मेरी कविताओं से गुजरते हैं, तो वे बहुत प्रभावित होते हैं। उन्हें प्रेरणा मिलती है कि कितनी भी जीवन में कठिनाइयाँ आये, किन्तु खुद के मनोबल को टूटने नहीं देना चाहिए।
प्र.(4.) आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
हिंदी साहित्य न चुनकर मैंने पहले साइंस लिया, फिर एम.सी.ए किया। जिसके कारण वर्षों तक साहित्यिक वातावरण और पठन-पाठन से दूर हो गई। जिस तरह बचपन में मेरी गहरी रुचि साहित्य में थी अगर हिंदी साहित्य में शैक्षणिक डिग्रियाँ भी लेती तो जो लेखन में लंबा गैप आया, वह न होता। अपने शैक्षणिक चुनाव को मैं अपनी साहित्यिक यात्रा में बाधा के रुप में देखती हूँ।
प्र.(5.) अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
सात साल (2007 मार्च-2014 जुलाई) तक कॉरपोरेट कंपनी में जॉब करते हुये मुझे हमेशा लगता था कि मैं यहाँ के लिए नहीं हूँ, मुझे कुछ और ही करना है। कुछ सालों तक दिग्भ्रमित रही। जॉब छोड़ कर अपनी रुचि को आगे बढ़ाना चाहती थी, पर कोई न कोई सलाह दे देता कि आर्थिक नुकसान करोगी अपना। दिल्ली में रह कर जॉब छोड़ना मूर्खता है। अंतत:, 2014 में मैंने अपने अंतकरण की सुनी और मैंने ज़ॉब छोड़ दी। मेरे निर्णय में माता-पिता सहयोगी रहे। साथ ही आर्थिक सहयोग भी दिया। वर्ष 2015 में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्विधालय में स्नात्कोतर में नामांकन करा लिया। साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता के साथ दिल्ली की साहित्यिक गोष्ठीयों में शिरकत करने लगी, किंतु 2017 में जब मैं पत्रकारिता के अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी, तो थर्ड स्टेज कैंसर की शिकार हो गई। दिल्ली एम्स में इलाज कराने के साथ मैंने अपनी डिग्री पूरी की और साहित्यिक लेखन-पाठन भी करती रही।
प्र.(6.) आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
पिता जी पहले से ही चाहते थे, मैं कॉलेज में प्राध्यापिका बनूँ, डॉक्टर भैया चाहते थे मैं डॉक्टर बनूँ। बड़े भैया आईएएस अधिकारी हैं। छोटे भैया लीगल एडवाइजर हैं। अत: मुझसे सबों की बहुत अपेक्षाएं रही किंतु मैं किसी को संतुष्ट नहीं कर पाई। पिता जी को प्रसन्न करने के लिए जब मैंने 2019 में पीएचडी का इंट्रेस निकाला तो मुझे दूबारा कैंसर हो गया। जिसकी वजह से पीएचडी नहीं कर सकी। पिता जी का अकस्मात निधन जुलाई 2020 में हो गया, यह आघात बड़ा था। मैं उनके सामने ही स्वस्थ हो कर उनकी अपेक्षाओं को पूरा करना चाहती थी, किंतु मैंने अपने मनोबल को टूटने नहीं दिया और मैं थर्ड स्टेज कैंसर रोगी होते हुये भी 2021 में भारत सरकार कला एंव संस्कृति मंत्रालय से फेलोशिप पूरा किया। चूँकि उसे घर से ही पूरा करना था, इसलिए सफलतापूर्वक कर लिया। खराब स्वास्थ्य के बावजूद मुझे पढ़ते-लिखते और छपते देखकर तथा साहित्य के प्रति मेरे अनुराग को देखते हुये अब मेरे बड़े भाई-बहन मुझसे संतुष्ट हैं। माँ तो हमेशा मेरे हर निर्णय के साथ हैं।
प्र.(7.) आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
चूँकि मैं साढ़े चार साल से कैंसर जैसे रोग से पीड़ित हूँ और ढाई साल से लगातार कीमोथेरेपी के उपचार पर ही जीवन चल रहा है, इसलिए मेरा पूरा परिवार हमेशा मुझे प्रोत्साहित करने में रहता है। माँ की प्रार्थनाएं मेरे स्वास्थ्य के लिए अनवरत चलती ही रहती हैं। हम छह भाई-बहन हैं और मैं सबसे छोटी हूँ। सभी अपने तरीके से मेरे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का खयाल रखते हैं। कुछ करीबी मित्र भी हैं, जो जीवन और लेखन के प्रति मेरा उत्साह बनाये रखते हैं।
प्र.(8.) आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
भारतीय संस्कृति से प्रेम मुझे विरासत में मिला है। माँ-पिता जी दोनों की सामाजिक कार्यों में सहभागिता रही हैं। जहाँ माँ को गरीब बच्चियों को कढ़ाई-बुनाई और अक्षर ज्ञान सिखाते देखा है। वहीं पिता जी को राष्ट्र और हिंदी के प्रति अगाध प्रेम और उसके लिए प्रतिबद्धता को बालपन से देखा है। पिता जी ने 13 ऐतिहासिक उपन्यास लिखे हैं, जो देशभक्त वीरांगनाओं और वीरों की शहादत को नई दृष्टि देती है। कश्मीर की बेटी, सिद्धियों का खंडहर, शिप्रा साक्षी है, सुनो भाई साधो, दारा शिकोह : दहशत का दंश, तख्ते ताउस की छाया में, हेमचंद्र की आँखे, तुंगभ्रदा पर सूर्योदय, अरावली का मुक्त शिखर, सरस्वती सदानीरा आदि उनके चर्चित उपन्यास रहें हैं। इसके अलावा पटना से साहित्य त्रैमासिक पत्रिका पिनाक और सदानीरा का भी संपादन करते रहे। दोनों पत्रिकायें राष्ट्र और संस्कृति के लिए समर्पित रही हैं। मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं उस समय दिल्ली में थी, जिसके कारण पिताजी के साहित्यिक यात्रा की सहयोगी नहीं बन सकी।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
माता-पिता ने हमेशा सादा जीवन उच्च विचार की ही शिक्षा दी है। उनको जीवन भर इसी सिद्धांत का पालन करते हुए देखा है। पिता जी अपने छात्रों को भी भ्रष्टाचार से मुक्त समाज और राष्ट्र के लिए प्रेरित करते रहे। वे एक अनुशासित और ईमानदार शिक्षक, वक्ता, साहित्यकार के साथ देश और समाज के प्रति लगातार कार्य करनेवाले व्यक्ति के रुप में जाने जाते थे। उनके कार्यों में माता जी पूरा सहयोग करती थी। भले ही पिता जी के ईमानदार और भ्रष्टाचार के खिलाफ रवैये के कारण कई बार आर्थिक नुकसान हुए हों, किंतु पिता जी को अपने सिद्धांतों के प्रति हमेशा अडिग खड़े देखा है। मैं भी माता-पिता के दिए गए संस्कारों पर ही चल रही हूँ। किसी भी प्रकार के कार्य जिससे भ्रष्टाचार की बू आती हो और देश और समाज के लिए सही नहीं है। उसके लिए सजग रहती हूँ। अपनी लेखनी में उसके प्रति प्रतिरोध दर्ज करती हूँ।
प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
मैं हमेशा से मानती आई हूँ। लेखन स्वांत: सुखाय होती है। हाँ अगर मेरे लेखन की भावभूमि से पाठक जुड़ाव महसूस करते हैं, तो उससे बड़ा कोई भी पारितोषिक नहीं हो सकता।
प्र.(11.) आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
जीवन विसंगतियों का नाम है। समाज के किसी भी समुदाय या क्षेत्र में नजर डालें, तो पहले विसंगतियाँ ही दिखेंगी, जैसे- हमारी पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती हैं। वैसे ही लोग भी भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेंगे, जिसे जीवन में कभी धोखा न मिला हो। वह कार्यक्षेत्र भी हो सकता है और दोस्ती या रिश्तेदारी भी।
प्र.(12.) कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
मेरे दो एकल कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। एकल कविता संकलन “अकुलाहटें मेरे मन की” अंजुमन प्रकाशन 2015 से और “जरुरी है प्रेम करते रहना” लोकोदय प्रकाशन 2021 से प्रकाशित है। कहानी संग्रह में "एक और नई दीवार" लोकोदय प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य है। देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में यथा परिकथा, पाखी, नवकिरण मासिक पत्रिका, आधुनिक साहित्य, युद्धरत आम आदमी समकालीन युवा-स्त्री विशेषांक 2018, सदानीरा त्रैमासिक, सप्तपर्णी, सुसम्भाव्य, अंजुमन, आधुनिक साहित्य, अटूटबंधन, खुशबू मेरे देश की, किस्सा-कोताह, नेशनल दुनिया में कहानियाँ और कविताओं का प्रकाशन। आलेख का प्रकाशन अहा जिंदगी (दैनिक भास्कर), आधी आबादी (कुछ माह नियमित मासिक आलेख लेखन), दैनिक सन्मार्ग समाचार पत्र में। साझा काव्य-संकलन “आकाश की सीढ़ी है बारिश", “त्रिसुन्गंधी”, “परों को खोलते हुए-1", “ सारांश समय का, “काव्य सुगंध -2", “कविता अनवरत-3” "समकालीन हिंदी कविता खंड-2" सृजनआलोक प्रकाशन में रचनाएँ शामिल। साझा उपन्यास- "खट्टे मीठे रिश्ते"। साझा लघुकथा संकलन- “नई सदी की धमक”। 'मधुदीप' का संपादन। वेब पत्रिका और ब्लॉग्स य़था पुरवाई, हिंदी प्रतिलिपी डॉटकॉम, सदानीरा, विश्वगाथा, मातृभाषा डॉटकॉम में भी प्रकाशित। बाल कहानी- बालवाणी, चंपक, पायस बाल मासिक पत्रिका, बाल किरण ई पत्रिका में।
ब्लॉग्स, जैसे- पोषम पा, हिंदीनामा, पुरवाई, दैनिकजागरण डॉट कॉम, अमर उजाला डॉट कॉम, ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम, इ-पत्रिका-शब्द व्यंजना, जय-विजय में कविताएं प्रकाशित। पुस्तक समीक्षा- जनतंत्र ऑनलाइन, हिंदीचक्र ऑनलाइन तथा अन्य ऑनलाइन पत्रिकाओं में, अंतर्जाल और गोष्ठियों में साहित्य सक्रियता, विभिन्न प्रतिष्ठित काव्यमंचो से काव्य पाठ, काव्य-गोष्ठियों का संचालन। यूटयूब चैनेल TheFullvolume.com के लिए बिहार के साहित्यकारों का साक्षात्कार इत्यादि।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
सीनियर फैलोशिप, भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली से प्राप्त।
प्र.(14.) कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
लॉक डाउन से पहले गेस्ट फैक्लटी के तौर पर क़ॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट एंड साइंस, पटना के मास कम्युनिकेशन विभाग में मास कम्युनिकेशन पढ़ा रही थी। कैंसर से मुक्त होने के बाद फिर से सुचारु रुप से करना है। अपने कार्यक्षेत्र में ईमानदारी रखना और अपने बनाए गए सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता ही देश और समाज के उत्थान में सहायक होते हैं। तभी समाज और राष्ट्र का हर व्यक्ति लाभान्वित भी होंगे और देश उन्नति करेगा। यही मैंने अपने माता-पिता से सीखी है और यही संदेश मैं अपने छात्रों और अनुजों को भी देती रहती हूँ।
आप यूँ ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
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