आइये, मैसेंजर ऑफ़ आर्ट में पढ़ते हैं, श्रीमान उज्ज्वल मल्हावनी की अनुपम कविता.......
उसने बड़े इतराकर,श्रीमान उज्ज्वल मल्हावनी
मुझसे कहा-
तुम खुदको कवि समझते हो
इतनी सारी कविताएँ लिखते हो
पर कभी 'महिला दिवस' पर
कुछ क्यों नहीं लिखते ?
मैंने कहा लिखता हूँ न
पर मेरी कविता थोड़ी अलग है
'कैसे?' उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखों को
थोड़ा और बड़ी कर कहा
ये कविता-
मैं बिना कलम के लिखता हूँ
और ये कविता सिर्फ 'महिला दिवस' के दिन नहीं
बल्कि हर दिन लिखता हूँ
ये कविता मैं स्त्रियों के प्रति
अपने 'सभ्य' आचार-व्यवहार से लिखता हूँ
क्योंकि मेरा मानना है-
महिलाओं का सम्मान किसी एक दिन का,
मोहताज़ नहीं होता।
नमस्कार दोस्तों !
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