आइये, मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में पढ़ते हैं, निबंधकार और संपादक श्रीमान पंकज त्रिवेदी की रचना.......
बूँदे-
जब भी गिरती है
थिरकते पत्तों पर
मन भी नाचता है
बूँदे-
जब भी गिरती है
प्यासे के होंठों पर
परितृप्ति होती है
बूँदे-
जब गिरती है
प्यार की गहराई में
जिस्मानी लहर होती है
बूँदें-
कभी यहाँ वहाँ गिरे
कभी मिट्टी सी सुंगध
बोआई हो जाती है !
नमस्कार दोस्तों !
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