आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, श्रीमान कमलेश झा की हृदयस्पर्शी रचना........
माई ढूंढू आँचल छाया नजर घुमाउँ चारों ओर।
पर चारो तरफ नजर घुमाकर भी हाथ लगती निराशा हीं और।।
दूर देश में डेरा अपना क्योँ लिया तुमने बनाय।
आने का क्या मन नहीं करता विलख रहा हूँ करके याद।।
छोड़ गए तुम बीच भवर में रोता विलखता पूरा परिवार ।
ईश्वर के इस नाइंसाफ़ी पर उनको क्यों न कोसना उनको बारंबार।।
बतला भी तो नहीं सकता हूँ मन के अंदर बैठा दर्द।
आँचल के छाया के नीचे किसे सुनाऊ अपना दर्द।।
हे माई ये कैसा जाल है जहाँ फँसा पड़ा हूँ मैं।
अलग लोक में आपका बसेरा विवश खड़ा देख रहा हूँ मैं।।
ऐसा क्यों नहीं विनती करती उस देव लोक के मालिक से।
अपने लाल से मिलने का गुहार क्यों नही लगती उस मालिक से।।
उनकी भी तो माई होगी उनसे पूछो कैसे मिलते अपने माई से।
उसी तरह मैं भी मिललूँगा अपनी प्यारी माई से।।
अगर न देते इसकी आजादी बीच रास्ते का कर लो इंतजाम।
आधा सफर तय कर के फिर पहुँच जाऊंगा आपके धाम।।
माई पापा को भी लेकर आना मिलने के लिए तुम साथ।
फिर मिलकर हम साथ लड़ेंगे उस देवलोक के मालिक के साथ।
जीत गया जो उनसे फिर लौट आएँगे तीनों साथ।
हार गया जो बाजी फिर से वहीं रहेंगे तीनों साथ।।
नमस्कार दोस्तों !
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